भारत के अंदरूनी मामलों में बढ़ता विदेशी हस्तक्षेप- मनोज कुमार मिश्र

भारत के अंदरूनी मामलों में बढ़ता विदेशी हस्तक्षेप- 

लेखक मनोज मिश्र इंडियन बैंक के अधिकारी है|

भारत का राजनीतिक फलक अभी घोर उठापटक से गुजर रहा है। इंडी एलायंस और एनडीए के बीच की रस्साकसी अभी थमी भी नहीं थी कि प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली के निवर्तमान मुख्यमंत्री को दो घंटे की पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया। यह राजनीति की विद्रूपता की पराकाष्ठा ही है कि एक आरोपित और गिरफ्तार राजनीतिक नेता अपने पद से त्यागपत्र देने से मना कर रहा है और उसका दल कहता है कि केजरीवाल जेल से ही प्रशासन संभालेंगे। राजनीति में व्यक्तिगत क्षरण का ऐसा उदाहरण अभी तक के स्वतंत्र भारत के इतिहास में नहीं है। केजरीवाल की गिरफ्तारी अप्रत्याशित नहीं है क्योंकि एक अन्य अभियुक्त विजय नायर के सरकारी गवाह बनने के बाद यह पूरी तरह प्रत्याशित था। केजरीवाल ने एक योजना के तहत ईडी के समन को टालते रहे, टालते रहे। पानी जब नाक से ऊपर हो गया और केजरीवाल को किसी भी न्यायालय से कोई राहत नहीं मिली तब ईडी ने उनके घर पर 10 वां सम्मन देने के लिए छापेमारी की और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। अभी स्थिति यह है कि केजरीवाल के समर्थन में पूरा विपक्ष एकजुट हो गया है। केजरी के सही या गलत होने पर बहस ही नहीं हो रही है सब का कहना है कि यह कार्यवाही सरकार का शक्ति प्रदर्शन है और वे इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। राजनीति में इससे बड़ी अवसरवादिता का उदाहरण नहीं हो सकता। चुनाव का ऐलान हो चुका है और कार्यपालिका की सभी शक्तियां अभी चुनाव आयोग में निहित हैं। जिस प्रकार से मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और संजय सिंह को किसी भी अदालत से कोई राहत नहीं मिल रही है वह यह इंगित करने को काफी है कि दाल में कुछ काला नहीं बल्कि पूरी की पूरी दाल ही काली है और केजरीवाल किसी भी प्रकार से बच नहीं सकते। परंतु विपक्ष है कि मानता नहीं। प्रधान मंत्री और बीजेपी के चाणक्य अमित शाह इसी तरह के अवसर की तलाश में रहते हैं। अब भ्रष्टाचार पर प्रहार का मुद्दा गरमाएगा और बीजेपी इसे चुनाव में भुनाने के लिए पूरा जोर लगा देगी। भारतीय मीडिया अभी केजरीवाल के पक्ष में प्रतीत होता है कम से कम उनकी गिरफ्तारी के मुद्दे पर। आप के नेताओं और प्रवक्ताओं को ज्यादा टीवी टाइम दिया जा रहा है। आप पार्टी का पूरा जोर _ कोई रकम नहीं मिली है_ पर है जबकि ईडी कह चुका है कि उगाही की रकम "आप" ने गोवा के चुनाव में खर्च की है।
केजरीवाल की गिरफ्तारी की सुर्खियां विदेशी अखबारों में भी हैं। वाशिंगटन पोस्ट हो या न्यू यॉर्क टाइम्स, अलजाजीरा हो या द गार्डियन सभी इस खबर को ऐसे प्रसारित कर रहे हैं जैसे भारत सरकार ने विपक्ष को परेशान कर रखा हो, लोकतंत्र प्रश्नोंके घेरे में हैं। दरअसल मेरा यह मानना है कि भारतीय राजनीति में केजरीवाल का उत्थान हमारे राजनीतिक दर्शन में सीआईए द्वारा अपने एजेंट को भेजने सरीखा है। केजरीवाल के सारे यूटर्न और उनको मिले विभिन्न विदेशी पुरुस्कार इस धारणा को पुख्ता करते हैं कि सीआईए को भारत में एक ऐसे व्यक्तित्व की जरूरत थी जो पहले से स्थापित राजनीतिक दलों को धूल चटा सके। इसीलिए केजरीवाल अपने कार्यकलापों का प्रचार प्रसार देश के बाहर के अखबारों पत्रिकाओं के माध्यम से बराबर करवाता रहता है। रहे भारतीय मतदाता तो वे तो फ्री बिजली जैसे अनुत्पादक नारों पर रीझ जाते हैं। अतः केजरीवाल की गिरफ्तारी पश्चिमी देशों सहित चीन को चुभ रही है। चीन ने तो वैसे भी देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के युवराज को खरीद रखा है।
इस बीच जर्मनी के विदेश विभाग ने एक बयान जारी कर दिया जहां वे केजरीवाल को एक सही न्यायोचित प्रक्रिया मिलेगी ऐसी उम्मीद जाहिर कर रहे हैं। मानो भारत में न्याय मिलने में राजनीतिक बाधा रहती है।
हाल के दिनों में हमने देखा है कि पश्चिमी शक्तियों द्वारा भारत को कमजोर करने और नीचा दिखाने को कोशिशें सामान्य राजनीति व्यवहार मान ली गई हैं।
पर यह भारत अब पुराना भारत नहीं है। भारत सरकार ने तुरंत जर्मनी के राजदूत को तलब किया और 5 मिनिट से कम समय में चलता कर दिया। ऐसी बेइज्जती इससे पहले मालदीव वाले करवा चुके थे। जर्मनी को इस मामले में क्या जरूरत थी अपनी नाक घुसाने की। इसे समझना है तो आपको वृहत्तर योजना को समझना पड़ेगा। 2014 में कांग्रेस के पतन के साथ ही पश्चिमी देशों का प्रभाव भारतीय राजनीति पर शनैः शनैः कम होता जा रहा है। रही सही कसर अपने जयशंकर जैसे विदेश मंत्री पूरी कर देते हैं जो इन शक्तियों को उनकी ही भाषा में जवाब देते रहते हैं। दरअसल भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का उदय पश्चिमी देशों के एकाधिकार को तोड़ रहा है। नरेंद्र मोदी जी की भारतीय जनता पर बढ़ती हुई पकड़ इन्हें असमंजस में डालती है और ये; उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। ये अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत का विपक्ष आज पूरी तरह से दिशाहीन है और वह इस प्रकार के षड्यंत्रों को अपना पूर्ण समर्थन देगा। जहां बीजेपी भारत को एक राष्ट्र के रूप में मजबूत कर रहे हैं वहीं विपक्ष इसी भारत को किसी महाशक्ति पर आश्रित देखना चाहता है। मीडिया में जॉर्ज सोरोस जैसे व्यापारी छाए हुए हैं जिन्होंने घोषित रूप में नरेंद्र मोदी को हटाने का बीड़ा उठा रखा है। इसके अलावा कनाडा अमेरिका जैसे देश जो अपने कृषि उत्पादों के लिए भारतीय बाजार चाहते हैं, किसी भी कीमत पर इस सरकार को हटाना चाहते है। अब यह आधिकारिक रूप से साबित हो चुका है कि खालिस्तान का आंदोलन भी सीआईए की शह पर चल रहा है। गुर पतवंत सिंह पन्नू, जो भारत द्वारा घोषित इनामी अपराधी है, को बचाने के लिए सीआईए कनाडा सरकार को अग्रिम जानकारी देती रहती है ताकि उसकी सुरक्षा हो सके यहां पेंच यह है कि पन्नू अमेरिका का भी नागरिक है। अमेरिकी नागरिक पर हमला अमेरिका पर हमला माना जा सकता है पर वह भूल जाता है कि ओसामा बिन लादेन को उसने कैसे ढूंढ कर मारा था।
आप कह सकते हैं कि अमेरिका को कमजोर भारत कभी मान्य नहीं होगा क्योंकि उसे चीन को साधना है पर वह ऐसा भारत भी नहीं चाहता जो उसके इशारे पर नाचने से ही इंकार कर दे। रूस और यूक्रेन युद्ध में भारत का रुख उसके लिए हमेशा परेशानी का सबब रहा है। रूस से तेल लेकर उसी तेल को यूरोप को भारत के माध्यम से बेचना उसकी आंख में हमेशा से ही खटक रहा है। अतः वह मोदी को सत्ता में तो चाहता है पर इतना मजबूत नहीं। कमजोर बढ़त के साथ मोदी सरकार उसे मंजूर होगी ताकि समय समय पर उसे भारत की बांह मरोड़ने का मौका मिलता रहे और दुनिया पर उसकी चौधराहट बनी रहे। अफसोस उसकी यह चाहत मोदीजी पूरी नहीं करने दे रहे अतः स्वयं आगे न आकर उसने जर्मनी को आगे कर दिया है। जर्मनी से भारत का व्यापार कुछ खास नहीं है किसी समय में वह भारत का 7 वाँ सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर था अब 12 वें नंबर पर है। जर्मनी से सिर्फ लग्जरी आइटम का इंपोर्ट होता है अतः भारत को भी जर्मनी को ठिकाने लगाने में देर नहीं लगी। आगे आने वाला समय बहुत ही महत्वपूर्ण है मोदी की तीसरी पारी निश्चित रूप से विदेशी शक्तियों को धूल चाटने पर मजबूर कर देगी मगर कहीं मोदी पुनः सत्ता में वापिस नहीं आ सके तो इस शक्तियों की बांछे खिल जाएंगी क्योंकि भारत के विपक्ष के पास न तो भारत को आगे बढ़ाने का दर्शन है न इच्छा शक्ति। 
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