नानी घर की होली

नानी घर की होली

नन्हा-सा वह प्यारा बचपन, बचपन की वह हँसी-ठिठोली।
याद आ रही, याद आ रही, मुझको नानी घर की होली।।
नानी जी के पीछे-पीछे अगजा-स्थल तक पैदल जाना।
झिंगरी तथा नीम के पत्ते अग्नि-ज्वाल में झोंक जलाना।।
पका होरहा चना सभी को देना, और स्वयं भी खाना।
कहाँ गये वे दिन मस्ती के, मिल-जुल होली पर्व मनाना?
सुनने को अब मिलती नहीं, बुजुर्गों की वह स्नेहिल बोली।
याद आ रही, याद आ रही, मुझको नानी घर की होली।।
मामी जी के हाथों से भभरे, पकौड़ियों का मिल जाना।
धनिया और पुदीने की चटनी का छककर लुत्फ़ उठाना।।
पिसी सौंफ की मीठी शर्बत, कुल्फी मधुर बनारस वाली।
तुलसी के पत्ते, पूजा की ताम्र-तश्तरी, पीतल-थाली ।।
पुए, पूरियाँ, दहीबड़े, मेवों का मिश्रण, मिस्री गोली।
याद आ रही, याद आ रही, मुझको नानी घर की होली।।
मामा जी के द्वारा बड़े ड्राम में रंग का घोला जाना।
पिस्टन वाली पिचकारी से, दौड़ सड़क पर रंग पड़ाना।।
गुब्बारों में भर गुलाल, होली के गीत झूम कर गाना।
छोटे भाई-बहनों का रंग देख-देख रोने लग जाना।।
कहाँ गयी मेरे अनुजों, अनुजाओं की वह सूरत भोली?
याद आ रही, याद आ रही, मुझको नानी घर की होली।।
स्मरण आज भी है नाना जी का वह सुमधुर कृष्ण भजन।
हरे मुरारी, श्री नारायण का वह जाप, दिव्य सुमिरन।।
मौसी जी का स्नान-ध्यान उपरांत निकलकर बाहर आना।
भींगे वस्त्र देख बच्चों के, मम्मी द्वारा डाँट लगाना।।
कहाँ गये बबलू, आलोक, रश्मि, ज्योति, आभा औ' डॉली?
याद आ रही, याद आ रही, मुझको नानी घर की होली।।
आंगन में मम्मी, मौसी, मामी जी का वह धूम मचाना।
एक दूसरे को दबोचकर, हँस-हँस जबरन रंग लगाना।।
तसले, जग, लोटे, झंझरे, चम्मच ले फगुआ राग बजाना।
चापाकल को चला-चला अपने आनन से रंग छुड़ाना।।
होते शाम, लगाना चरणों पर अबीर, मस्तक पर रोली।
याद आ रही, याद आ रही, मुझको नानी घर की होली।।
रंग-रंगीली, छैल-छबीली, लाल-हरी, नीली औ' पीली।
लगने लग जाती थीं हर घर की दीवारें सुघड़ सजीली।।
झुमटे वाले दिन मटकों का चौराहों पर टंग-टंग जाना।
फोड़ उसे मक्खन खाने के लिए जुगत अनगिनत लगाना।।
कृष्ण तथा गोपालों सी करतब करती युवकों की टोली।
याद आ रही, याद आ रही, मुझको नानी घर की होली।।
डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी, गया (बिहार)

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