अशिव वेष शिव धाम कृपाला

अशिव वेष शिव धाम कृपाला

डॉ सच्चिदानन्द प्रेमी
विवाह भावी जीवन का मंगल - आधार है, विवाह सृष्टि का आधार है, विवाह, जन्म जन्मांतर से चली आ रही दो जीवात्माओं के एकिकृत भावना की पूजा है, विवाह प्रणय का आधार है। भोगे हुए यथार्थ के शेष संसार का दर्पण होने से इसे जीवन का सबसे मंगल कार्य माना गया है। इसीलिए जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मांगलिक कार्यों में विवाह की गिनती होती है। शिवरात्रि भगवान शंकर और जगज्जननी अम्बा पार्वती के विवाह का महापर्व है ।
विवाहादि प्रसंग सभी लोकों में मंगलकारक होता है, इसलिए देवता भी इससे बंचित नहीं रहे। यह विवाह उनके लिए भी मंगल कारक है ।सृष्टि में जहां तक देवताओं की कल्पना की गई है या उपस्थिति पाई गई है उनमें दो ही देवताओं को विवाह करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । त्रिदेवों में से एक -भगवान शंकर और दूसरे अवतारों में से एक श्री राम प्रभु।
भगवान शंकर का विवाह विचित्र विवाह सा लगता है। जगज्जननी जगदंबा तपस्या करती हैं और उस तपस्या में भगवान शंकर के प्रति इतना अनुराग है कि जगज्जननी कहती हैं-
जनम-जनम की रगड़ हमारी।
बरऊँ शम्भू न त रहऊँ कुमारी॥
मन तप में रम गया।यह तपस्या भी लम्बी चली-
संबत सहस मूल फल खाए।
सागु खाई सत बरस गँबाए॥
कछु दिन भोजन बारि बतासा।
और आगे-
बेल पाति महि परइ सुखाई।
तिनि सहस सम्बत सोइ खाई ॥
ऊमहीं नाम तब भयऊ अपर्णा॥
भगवान शंकर उस अनुराग को और बढ़ाना चाहते हैं-
यह उत्सव देखिए भरि लोचन।
लेकिन यह प्रेम ,अनुराग, श्रद्धा एक जन्म का नहीं है। जगदंबा कहती हैं-
तुम्हरे जान काम अब जारा ।अब लगी शंभू रहे सविकारा ॥
हमारे जान सदा शिव जोगी ।अज अनवद्य अकाम अभोगी ॥
इस विवाह में कितनी मंगल कामना है ! महर्षि नारद कुंडली देखते हैं और लगन स्पष्ट करते हैं ।ब्रह्मा लगन धरते हैं-
सादर मुनिबर लिए बुलाई ॥
सुदिन सुनखत सुघरी सोचाई ।
वेगि वेदबिधि लगन धराई ॥
पत्री सप्त ऋषिन्ह सो दिन्ही।
लग्न पत्री ब्रह्मा को दी गई ।विधिपूर्वक विवाह का मंगल कार्य आरंभ हुआ।सब जगह मंगल ही मंगल। देवता बहुत खुश,सुमनों की वर्षा हुई।
सुमन बृष्टि नभ बाजन बाजे ।मंगल कलश दसहुँ दिसि साजे॥
भगवान शिव दूल्हा बने हैं।बारात जाने की तैयारी हो रही है। दशों दिशाओं में मंगल ही मंगल है। वे तो स्वयं ही महामंगल हैं। इस मंगल वेला में बारात जाने के पूर्व दूल्हे का श्रृंगार होता है।खूब सज- धज कर दूल्हा बारात जाता है ।क्योंकि, विवाह तो मंगल कार्य है और एक ही बार होता है ।दूल्हा अपने ससुराल में सब को आकर्षक दिखे, सब को दूल्हा के प्रति आकर्षण हो। इसके लिए तरह-तरह के सजने वाले आते हैं और दूल्हा का साज- शृंगार करते हैं ।यहां भगवान शंकर भी सजाए जा रहे हैं -
सिवहिं संभूगन करहीं सिंगारा ।
जटा मुकुट अहि मौर सँवारा ॥
कुंडल कंकन पहिरे ब्याला ।
तन विभूति पट केहरी छाला ॥
ससि ललाट सुंदर सिर गंगा ।
नयन तीनि उपबीत भुजंगा ॥
गरल कंठ उर नर -सिर माला ॥
असिव वेस शिवधाम कृपाला ॥
कर त्रिशूल अरु डमरू बिराजा ।
चले बसह चढ़ि बाजहिं बाजा ॥
शिवधाम भगवान सदाशिव विवाह करने जा रहे हैं ।दूल्हे का श्रृंगार किया गया है। माथे पर मौर के बदले में बड़ा सा जटा बना है, कान में कुंडल स्वर्ण का नहीं सर्प का पहनाया गया है। सारे शरीर में श्मशान की राख का उबटन लिपटा गया। बाघाम्बर दूल्हे का वस्त्र बना है।बाजा बजे और दूल्हा अपनी पसंदीदा सवारी पालकी नहीं बसहा बैल पर बारात चले। वे सबसे आगे चल रहे हैं और उनका मुख पीछे बारातियों की ओर है ,यानी बैल की पूंछ तरफ वे मूंह किए हुए हैं ।क्या सुंदर दृश्य था!
दूल्हे का यह रूप देवताओं को अच्छा नहीं लगा ।भगवान विष्णु के निर्देश पर सभी देवताओं की जमात अलग हो गई-
विलग विलग होइ चलहु सब सजि सजि अपन समाज।
बारात भगवान शंकर के ससुराल पहुंची ।उधर मैना अम्मा बारात की अगवानी और दूल्हे के परीक्षण के लिए निकलीं । देवताओं ने इनके स्वभाव से अपने को अलग करते हुए अपनी व्यवस्था पहले ही अलग कर ली थी । अलग -अलग तरीके से बारात पहुंची ।
बारात नगर भ्रमण के लिए निकली । मैना अम्मा आरती का थाल लिए परीक्षण हेतु बारात की अगवानी में खड़ी थी ।सबसे पहले ब्रह्मा की सवारी गुजरी। पके -पके बाल चतुर्मुख देखकर अम्मा ने पूछा- यह कौन हैं ।देवर्षि ने बताया- यह दूल्हे के बड़े भाई हैं ।समधी के रूप में बरात में उपस्थित हैं ।मैना अम्बा बहुत खुश हुईं ,जब समधी इतने सुन्दर हैं तो दूल्हा कितना सुन्दर होगा !उनकी सवारी आगे बढ़ी । कई देवताओं की सवारियों को देखकर अम्मा बहुत खुश हुईं ।
दूल्हे की बरात में इतने सुंदर देवगन आए हैं तो दूल्हा कैसा होगा !
सबसे अंत में दूल्हे के पहले विष्णु की सवारी थी ।उनके सौंदर्य लावण्य पर खुश होते हुए अम्मा ने पूछा- यह कौन हैं ? यहीं वर हो सकते हैं ।देवर्षि ने बताया कि नहीं ,ये वर के भाई हैं। उनकी सवारी आगे बढ़ गई ।
सबसे पीछे भयरव के साथ भूत पिशाच मगन मतवारे की सवारी आई ।उनके बीच में भूत भावन भगवान सदाशिव नावते गाते आ रहे थे। मैना ने अपनी आंखें बंद कर लीं।सखियों ने कहा कि देखो- देखो! कैसा बैल पर चढ़ा हुआ एक राक्षस आ रहा है। मैना ने कहा- नहीं नहीं! अरे बहुत डर लग रहा है ।मैं आंखें नहीं खोलूँगी जब तक यह नहीं जाएगा ।देवर्षि ने उन्हें समझाया -अरे यही तो दूल्हा है ।अब क्या था -आरती का थाल हाथ से गिर गया और विलाप करती हुई चिल्लाने लगी । बच्चे डरकर भाग गए।परिवार के लोगों ने पूछा तो बताया-
जमकर धार किन्हौं बरियाता ॥
सिव समाज जब देखन लागे ।बिडरी तजे सब वाहन भागे॥
मैना ने अपना फैसला सुना दिया -
तुम सहित गिरि तें गिरौं पावक जरौं जलनिधि परौं।
घर जाउँ अपजस होउ जग जीवत बिवाह न हौं करौं ॥
चाहे जो भी हो ,मैं इस दूल्हे से अपनी लड़की का विवाह नहीं कर सकती।
अम्मा को बिकल देख उमा ने समझाया-
अस विचारि सोंचहिं मति माता।
सो न टरइ जो रचइ बिधाता ॥
जनि मातु लेहु कलंकु करुना परिहरहु अवसर नहीं।
दुख सुख जो लिखा लिलार हमरे जाब जँह पाउब तहीं॥
मैना अम्मा मान गईं,बिबाह हो गया ।
इस विवाह में पूजा किसकी हुई-
मुनि अनुशासन गणपति ही पूजेउ शंभु वानी।
कहीं से भी इस विवाह का भौतिक दृश्य मंगल का विधान करता नहीं दिखता ।परन्तु यही तो भूतभावन की मंगलभावना है,मंगलकामना है।और यही शिवत्व है-
अशिव वेस सिव धाम कृपाला॥
आज शिवरात्रि के अवसर पर मन कर्म वचन से भगवान शंकर को सर्व समर्पण है। - 
डॉ सच्चिदानन्द प्रेमी
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