केजरीवाल का अमेरिकी कनेक्शन:-मनोज कुमार मिश्र

केजरीवाल का अमेरिकी कनेक्शन:-मनोज कुमार मिश्र

लेखक मनोज मिश्र इंडियन बैंक के अधिकारी है|

अरविंद केजरीवाल की हालत अब धोबी के कुत्ते जैसी हो गई है - न घर का न घाट का। एक ओर उसका कट्टर ईमानदार का मुखौटा उतार चुका है और वह ईडी की हिरासत में है, वहीं अब इस मामले में अमेरिका के कूदने से एक और नया मोड़ आ गया है। भारत का जनमानस हमेशा से ही अमेरिकी हस्तक्षेप के विरोध में रहा है चाहे वह भारत पाक बांग्लादेश युद्ध के दौरान उसके पाकिस्तान के पक्ष में 7 वें जंगी बेड़ा उतारने की बात हो या अभी हाल हाल तक मोदीजी को वीजा न देने की बात हो। अमेरिकी लोकतंत्र में खुद भी बहुत क्षरण हो चुका है और उसका पिछला चुनाव किस प्रकार वामपंथी विचारकों की बेइमानी से जीता गया था आज वहां कायर दुनियां की सोशल मीडिया की सुर्खियों में है। यहां तक कि उसके राज्यों के सुप्रीम कोर्ट जो हमारे हाई कोर्ट के समकक्ष हैं की ट्रंप के खिलाफ की गई कार्यवाही भी न्यायपालिका पर धुर वाम पंथी गुटों के प्रभाव को इंगित करती हुई चर्चा में है। हालांकि अब वहां के सुप्रीम कोर्ट ने ये भी फैसला दिया है कि ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव लड़ सकते हैं। पर मूल प्रश्न अभी अमेरिकी चुनाव का नहीं वरन एक आधे राज्य के मुख्यमंत्री की हिरासत में उसकी दिलचस्पी का है। अब यह अपुष्ट समाचार सत्य प्रतीत होता है कि केजरीवाल भारत की कार्यपालिका में कार्यरत महत्वपूर्ण व्यक्तियों की, यहां तक कि प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और सीबीआई के प्रमुखों तक की जासूसी करवा रहा था। पहले जर्मनी और अब अमेरिका की चिंता में यह साफ कर दिया है कि केजरीवाल जैसे देशद्रोही किस प्रकार भारत को अंदर से खोखला करने का खेल खेल रहे थे। फोर्ड फाउंडेशन, बराक ओबामा, राष्ट्रपति बिडेन आदि सभी इसकी गिरफ्तारी में अनावश्यक एवं जरूरत से ज्यादा रुचि ले रहे हैं।
आखिर इसका कारण क्या है? दुनिया तेजी से बदल रही है और भारत का प्रभाव विश्व के राजनीतिक पटल पर उतनी ही तेजी से बढ़ रहा है। प्रधान मंत्री मोदी अपने हरेक संबोधन में विकसित आत्मनिर्भर भारत की बात कहते हैं। ज्ञातव्य है कि भारत 150 करोड़ लोगों का घर है। इतना बड़ा बाजार अगर आत्मनिर्भर हो गया तो व्यापार पर आधारित पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्थाएं बड़ी चोट खायेंगी। दुनिया का ऊर्जा समीकरण बदल रहा है। भारत ने प्रयास करके डॉलर में होने वाली द्विपक्षीय व्यापारों को रुपया केंद्रित व्यापार बनाने का अभियान सा छेड़ा हुआ है। इससे डॉलर का महत्व कम हो रहा है। भारत को देखादेखी अन्य छोटे छोटे देशों के समूहों ने भी व्यापार के इसी मॉडल को अपनाना शुरू कर दिया है। यह सब अमरीकी अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है। तेल और प्राकृतिक गैस के उत्पादक देशों से भारत ने इतने घनिष्ठ संबंध बना लिए हैं कि धुर इस्लामी देश अब अपनी सरजमीं पर हिंदू मंदिरों की स्थापना की इजाजत दे रहे हैं। ये देश कल तक सिर्फ अमेरिका की ही सुनते थे इसके कहने पर ही अपने यहां तेल का उत्पादन बढ़ाते घटाते रहते थे पर अब नहीं। रूस और यूक्रेन के युद्ध में जब अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगाया तब भी भारत न केवल इससे अप्रभावी रहा वरन यूरोप, जो अमरीकी दबाव में रूस से सस्ता तेल नहीं खरीद पा रहे थे, को भी रूसी तेल की उपलब्धता अपने मांध्यम से करवा रहा है। अमेरिकी कंपनियां जो सिर्फ और सिर्फ मुनाफे कैसे होगा में यकीन करती हैं अब भारत को अपना घर बना रही हैं। ऐसे में भारत के राजनीतिक परिदृश्य में अगर कोई अमेरिका का हित साधने वाला मिल जाय तो क्या ही बढ़िया होगा। हमारे अरविंद केजरीवाल इसी मुखौटे में फिट बैठते हैं। इसलिए विगत 18 वर्षों से उनको पोषित किया जा रहा था। उसकी गिरफ्तारी ने अचानक ही अमेरिका के आगे एक शून्य उत्पन्न कर दिया। उसे पता है कि कांग्रेस पहले से ही चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी से समझौता किए बैठी है अन्यों का प्रभाव उसके राज्य विशेष में ही है अतः एक नई पार्टी जो उनके इशारे पर चलने को अपना सम्मान समझती है, में अमेरिका ने विशेष निवेश किया। ज्ञात हो कि आप पार्टी के सांसद राघव चढ्ढा अभी ब्रिटेन में हैं और वहां उनकी खालिस्तान समर्थक ब्रिटिश संसद प्रीत कौर गिल से मुलाकात चर्चा के केंद्र में है हालांकि खुद राघव ने ऐसी किसी मुलाकात से इंकार किया है पर तस्वीरें झूठ नहीं बोलती। यह भी उतना ही सत्य है कि इसी समय अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और अमेरिकी निवेशक जॉर्ज सोरोस भी ब्रिटेन में लंदन में ही हैं। केजरीवाल में निवेश भी सोरोस और फोर्ड फाउंडेशन के विभिन्न एनजीओ के माध्यम से हुआ। यह अमेरिकी दुर्भाग्य ही है कि भारत की वर्तमान सरकार ने 17000 से ज्यादा ऐसे एनजीओ पर रोक लगा दी। बच्ची खुची कसर कश्मीर से धारा 370 हटाकर और कश्मीरियों को मुख्य धारा में लाकर पूरी कर दी। भारत और पाक के बीच शांति बनी रहे यह दोनों देशों के हितों में है पर इससे अमेरिकियों को चोट पहुंचती है। पाकिस्तान को करीब करीब भिखारी बना देने से अब अमेरिका उसे हथियार भी नहीं बेच पा रहा है। इसी प्रकार कोविड जैसी भयावह महामारी में भी भारत ने अमेरिकी वैक्सीन नहीं खरीदी अपितु खुद की वैक्सीन की इजाद कर अफ्रीकी देशों में भी मुफ्त में बांट दी। हाल में ही भारत ने अपनी सामरिक सामर्थ्य अपने दम पर बढ़ानी शुरू कर दी है और उसके बनाए जंगी विमानों की मांग अब छोटे छोटे उन देशों में हो रही जो अब तक पश्चिमी देशों पर निर्भर थे। यानी अमेरिका अर्थव्यवस्था के तीनों प्रमुख बिंदुओं यथा तेल फार्मा और हथियार, को मोदी ने झिंझोड़ डाला है। एक दीर्घसूत्री कार्यक्रम के तहत अमेरिका धीरे धीरे अपना दखल भारतीय राजनीति में केजरीवाल के माध्यम से बना रहा था। शायद सफल भी हो जाता पर सब कुछ जल्दी पा लेने की केजरीवाल की उत्कंठा ने उसकी गिरफ्तारी का मार्ग प्रशस्त कर अमेरिकी योजनाकारों के सभी मंसूबों पर पानी फेर दिया। कहते हैं की सत्ता आपको भ्रष्ट बनाती है और निरंकुश सत्ता पूर्ण रूपेण भष्ट बना देती है। 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल के पास 63 सदस्य हैं। अमेरिका अपने इस एजेंट को बचाने का आखिरी प्रयास कर रहा है। मजे की बात यह है कि जितना पश्चिमी ताकतें केजरीवाल के पक्ष में बोलेंगी उतनी ही भारत की जनता इसके खिलाफ होती जायेगी। यह केजरीवाल के लिए भी सांप छछुंदर की स्थिति है। अब देखना हैं कि भारत सरकार इस तिलिस्म को कितनी निपुणता से तोड़ पाती है ताकि अपराधी भी बचने न पाए और अमेरिका से रिश्ते भी बिगड़ने न पाएं।
मनोज कुमार मिश्र
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