वासंती हवा जो चली

वासंती हवा जो चली

डॉ रामकृष्ण मिश्र

बोझिल पलकों में कुछ चित्र लगे झाँकने
अंतर की छुई -मुई भावना उघारने
भौंरों से अनचाहे पूछती कली।।

पीपल की टहनियाँ हुलास में पगीं
शीर्ण पत्र सरक गये लताएँ सगी
किशलय सी ललछौंहीं कामना फली।।
कोकिल के कंठ मधुर रागिनी उचारे
वातायन गुमसुम शुभ शकुन -सा विचारे
आगंतुक की आहट मधुरस डली। । 
**********रामकृष्ण
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ