आज का सच

आज का सच

मियां-बीबी दोनों मिलकर कमाते हैं
तीस लाख का पैकेज दोनों पाते हैं
सुबह सुबह नौकरी पर जाते हैं
देर रात तक वापिस आते हैं।।


परिवारिक रिश्तों से कतराते हैं
अकेले रहकर कैरियर बनाते हैं
कुछ मांग न ले इसलिए मुंह छुपाते हैं
भीड़ में रहकर भी अकेले रह जाते हैं।।


मोटे वेतन की नौकरी छोड़ नहीं पाते ।
अपने बच्चों को पाल नहीं पाते।
फुल टाइम की मेड ऐजेंसी से लाते है।
जिसके जिम्में बच्चें छोड़ जाते हैं।।


परिवार वालो को बच्चा नहीं जानता।
केवल आया'आंटी' को वो पहचानता।
दादा -दादी ,नाना-नानी कौन होते है?
अनजान है सबसे किसी को न मानता।।


आया ही नहलाती है आया ही खिलाती है
टिफिन भी रोज़ आया ही बनाती है।
ड्रेस पेहना के स्कूल बस में बिठाती है।
छुट्टी के बाद बस से आया ही घर लाती है।


नींद जब आती है तो आया ही सुलाती है
जैसी भी आती है लोरी वो सुनाती है।
बच्चे सुलाने में वो ही सो जाती है।
बच्चा मचलता है तो टीवी दिखाती है।।


टीचर जो बताते है उसे ही वो मानते है।
देसी खाना छोड़कर पीजा बर्गर खाते है।
वीक एंड पर मौल में पिकनिक मनाते है।
संडे की छुट्टी मौम-डैड के संग बिताता है।।
वक्त नही रुकता है तेजी से गुजर जाता है
वह स्कूल से निकल के कालेज में आता है
कान्वेन्ट में पढ़ने पर इंडिया कहा भाता है
आगे पढ़ाई करने वह विदेश चला जाता है
वहां नये दोस्त बनते हैं उनमें रम जाता है।।
मां-बाप के पैसों से ही खर्चा चलाता है
धीरे-धीरे वही की संस्कृति में रंग जाता है
मौम डैड से रिश्ता पैसों का रह जाता है
फिर काम भी उसे वही मिल जाता है।।


जीवन साथी ढूंढ़ कर वहीं बस जाता है
माँ बाप ने जो देखा ख्वाब वो टूट जाता है
बेटे के दिमाग में भी कैरियर रह जाता है
बुढ़ापे में माँ-बाप अकेले रह जाते हैं।।


जिनकी अनदेखी की उनसे आँखें चुराते हैं
क्यों इतना कमाया ये सोच के पछताते हैं
घुट घुट कर जीते हैं खुद से भी शरमाते हैं
हाथ पैर ढीले हो जाते चलने में दुख पाते हैं


दाढ़- दाँत गिर जाते मोटे चश्में लग जाते हैं
कमर झुक जाती, सुन कान से नहीं पाते हैं
वृद्धाश्रम में रहकर जिंदा ही मर जाते हैं
सोचना की बच्चे अपने लिए पैदा कर रहे हो या विदेश की सेवा के लिए...?


बेटा एडिलेड में, बेटी है न्यूयार्क।
ब्राईट बच्चों के लिए, हुआ बुढ़ापा डार्क।
बेटा डालर में बंधा, सात समन्दर पार।
चिता जलाने बाप की, गए पड़ोसी चार।


ऑन लाईन पर हो गए, सारे लाड़ दुलार।
दुनियां छोटी हो गई, रिश्ते है बीमार।
बूढ़ा-बूढ़ी आँख में, भरते खारा नीर।
हरिद्वार के घाट की, सिडनी में तकदीर।।


तेरे डालर से भला, मेरा इक कलदार।
रूखी-सूखी में सुखी, अपना घर संसार।
बस अपना घर संसार।।

संजय जैन "बीना" मुंबई
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