बिहार के द्विवेदी' थे आचार्य रामलोचन शरण, 'शुक्ल' हैं डा शिववंश पाण्डेय

बिहार के द्विवेदी' थे आचार्य रामलोचन शरण, 'शुक्ल' हैं डा शिववंश पाण्डेय

  • ९३वें जन्मोत्सव पर सम्मानित हुए डा पाण्डेय, साहित्य सम्मेलन में रागिनी प्रसाद को दिया गया स्मृति-सम्मान|
पटना, ११ फरबरी। हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में अप्रतिम अवदान देनेवाले मनीषी विद्वान, प्रकाशक और संपादक आचार्य रामलोचन शरण 'बिहारी', खड़ी बोली के अभिनव गद्य शैली के प्रवर्तक माने जाते हैं। आचार्य शिवपूजन सहाय ने उन्हें 'बिहार का द्विवेदी' कहा था। वहीं दूसरी ओर ९२वर्ष की आयु पूरी कर चुके साहित्यकार डा शिववंश पाण्डेय का कार्य पं रामचंद्र शुक्ल की भाँति आदरणीय है।
यह बातें, रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, आचार्य शरण की जयंती और पं शिववंश पाण्डेय के ९३वें जन्म-दिवस पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि शरण जी ने हिन्दी भाषा के अध्यापन और उन्नयन के समक्ष उपस्थित अनेक अभावों की भी पूर्ति की। 'मास्टर साहेब' और 'बिहारी जी' लोक-नाम से लोकप्रिय शरण जी ने समाज,शिक्षा, साहित्य और हिन्दी-सेवा का अत्यंत दुर्लभ और अतुल्य उदाहरण प्रस्तुत किया।
डा शिववंश को पुष्पहार और वंदन-वस्त्र से सम्मानित करते हुए डा सुलभ ने कहा कि यह साहित्य सम्मेलन के लिए और बिहार के लिए गौरव का विषय है कि इस आयु में भी वे सक्रिए और अहर्निश साहित्य-सेवा कर रहे हैं। साहित्यालोचन में निरन्तर हो रहे इनके अवदान को आनेवाली पीढ़ियाँ गौरव से स्मरण करती रहेंगी।
इस अवसर पर, समारोह में उपस्थित आचार्य शरण जी के पुत्र सीता शरण सिंह के आलेख को आचार्य शरण के पौत्र मिहिर लोचन शरण ने पढ़कर सुनाया। संस्मरण के रूप में प्रस्तुत इस आलेख में उनके साहित्यिक व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष और बिहार सरकार में विशेष सचिव रहे डा उपेंद्रनाथ पाण्डेय ने कहा कि आचार्य शरण जैसी महान साहित्यिक विभूतियों के कारण ही हिन्दी वह स्वरूप और स्थान पा सकी, जिससे हिन्दी विश्व-व्यापिनी हो रही है। इस अवसर पर मुंबई की वरिष्ठ कवयित्री रागिनी प्रसाद को 'आचार्य रामलोचन शरण स्मृति -सम्मान' से विभूषित किया गया तथा सम्मेलन दिन-पत्रिका भी लोकार्पित की गयी।
अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन प्रधान मंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि आचार्य शरण की 'मनोहर-पोथी' पढ़कर हम सबने हिन्दी सीखी। इस और ऐसी अनेक पुस्तकों के माध्यम से शरण जी ने बिहार में हिन्दी भाषा और साहित्य का मार्ग प्रशस्त किया। आधुनिक हिन्दी के उन्नयन में उनका योगदान अतुल्य है। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा ध्रुव कुमार, डा पूनम आनन्द, डा पुष्पा जमुआर, सुमेधा पाठक, प्रो सुशील कुमार झा, डा शलिनी पाण्डेय, सागरिका राय, शकुंतला अरुण आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-गोष्ठी का आरम्भ कवयित्री आराधना प्रसाद ने अपनी वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, जय प्रकाश पुजारी, डा मेहता नगेंद्र सिंह, मनोज कुमार सौमित्र, सिद्धेश्वर, डा सरिता सिन्हा, ई अशोक कुमार, मीरा कुमार श्रीवास्तव, डा मीना कुमारी परिहार, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, शायरा तलत परवीन, नरेंद्र कुमार, अरविन्द कुमार वर्मा, डा रणजीत कुमार, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्त आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपने काव्य-पाठ से काव्यांजलि अर्पित की। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। समारोह में डा मुकेश कुमार ओझा, ई अवध किशोर सिंह, नन्दन कुमार मीत, सुजाता मिश्र, शम्भु नाथ पाण्डेय, बाँके बिहारी साव, डा नागेशवर प्रसाद यादव, प्रवीर पंकज, डा कुमार राजीव नयन, मीरा श्रीवास्तव, डा ज्योतिर्मय, रविकान्त पाण्डेय, श्रद्धा कुमारी, नीलाभ कुमार मिश्र आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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