"छिपी हुई खुशियाँ"

"छिपी हुई खुशियाँ"

भूल-भुलैया में ताउम्र तलाशता रहा,
खुशियाँ छिपी थीं ना जाने कहाँ,
हर ख्वाहिश प्यास बनकर
तरसता रहा उम्र भर यहाँ!


दौड़ता रहा मैं मृगतृष्णा की ओर,
जो हाथों में आती थी, वो फिसलती गई,
हर पल बढ़ती थी ख्वाहिशों की ज्वाला,
मन में उथल-पुथल मची रही।


दौड़ता रहा मीलों,
मंजिल थी दूर नज़रों से,
खुशियों के सपने बुनता रहा,
पर टूटते रहे हर पल सपनों से!


कभी धन में ढूंढता रहा,
कभी शोहरत में,
पर खुशियाँ मिलीं ना कहीं,
खाली रहा मन हर पल में!


एक दिन थक हार कर बैठा,
सोचा जीवन के बारे में,
समझा खुशियाँ बाहर नहीं,
बल्कि मेरे अंदर ही हैं!


छोटी-छोटी बातों में खुशियाँ ढूंढीं,
प्रकृति के सानिध्य में खो गया,
अपनों के साथ हँसा-बोला,
और खुशियों का नया रास्ता ढूंढ लिया!


समझा खुशियाँ कोई मंजिल नहीं,
बल्कि जीवन जीने का तरीका है,
हर पल का आनंद लेना,
यही खुशियों का सच्चा सार है!


स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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