आसमां की चाहतें, लेकर चला था

आसमां की चाहतें, लेकर चला था,

चाँद मुट्ठी में होगा, सोचकर चला था।
क्या मिला, परवाह नहीं की मैंने कभी,
बुलन्द हौसलों की उँगली, पकड़ चला था।


कुछ मिला तो ख़ुश हुआ, कुछ तो मिला,
कुछ नहीं पर मस्त हूँ, नया रास्ता मिला।
उम्र बढ़ना, है बढ़ते अनुभवों की कहानी,
ज्ञान था मगर, सच का पता अब मिला।


जीवन मरण है हाथ ईश्वर, जानता हूँ,
यश अपयश खेल उसका, मानता हूँ।
तौल कर फिर बोलना, शास्त्र कहते,
नीम कड़वा पर गुणों को पहचानता हूँ।


क्या कहा किसने कहा और क्यों कहा,
तर्क और कुतर्क से सार तुमने क्या गहा?
हर विषय पर बोलना ज़रूरी नहीं होता,
आत्म चिंतन कर सोचना क्या बाक़ी रहा।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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