नववर्ष
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
उदासीन हूँ,
न खुश,न उदास।
लोग कहते हैं, एक साल गुजर गया ,
मैं भी हामी भर देता हूँ बदस्तूर।
ऐसा न करूँ, तो लोग नाराज हो जाएँगे,
कहेंगे ,कैसा मनहूस है यह आदमी!
लिहाजा नये साल के अभिनन्दन में
मैं भी सिजदा कर देता हूँ।
सच तो है कि एक साल नहीं गुजरा,
अपितु मैं ही गुजर गया एक कदम और,
"कालो न यातो वयमेव याताः "-
गलत नहीं कहा है।
सरसों भर सुख और पहाड़-भर दुःख देकर
गुजर गया एक साल ,
यह तो स्वाभाविक था, कोई अजगुत नहीं
खण्ड काल का यही धर्म ठहरा।
प्रपर्ण होते आयु-तरु से
काल के निर्मम पुरजोर झोंके ने
एक और पत्ते को निपातित कर
मिट्टी में मिला दिया।
दोस्त! मिथ्या है खण्ड-काल की कल्पना
भूत-वर्तमान-भविष्य।
अविच्छिन्न है काल-प्रवाह
महाकाल
महावर्त्तमान
सुख-दुःख से ऊपर महावर्त्तमान में जियो, मेरे प्राण!
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