कल कल करती , छल छल करती ,
मां गंगा तेरी धारा ।पाप नाशिनी मोक्षदायिनी,
मां तेरी अविरल धारा ।
ब्रह्म कमंडल से निकलकर ,
इस धरती पर आयी हो ।
हिमालय पर्वत को मां तुम ,
अपना उद्गम बनायी हो ।
भारत की पावन धरती पर ,
पुण्य तुम्हारा छाया है ।
जीवन उसका पाप मुक्त हुआ ,
तुममें जो डुबकी लगाया है ।
हे माता, हे जटा शंकरी ,
तुम को है शत् बार नमन ।
आशीर्वाद हमें दो माता ,
शांत चित्त और निर्मल हो मन ।
जय प्रकाश कुंअर
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