नयन से नयन जोड़ते क्यों नहीं हो?

नयन से नयन जोड़ते क्यों नहीं हो?

कई दिन हुए बोलते क्यों नहीं हो?
नयन से नयन जोड़ते क्यों नहीं हो?

हमें देखकर फेर लेते हो नज़रें,
हमारी तरफ़ देखते क्यों नहीं हो ?


खता क्या हुई ये बताने के खातिर,
अधरअपने तुम खोलते क्यों नहीं हो?


अगर वास्ता तुमको रखना नहीं है
तो पीछा मेरा छोड़ते क्यों नहीं हो?


मिलेगा तुम्हें क्या दुखाकर के दिल को,
कि जीवन में रस घोलते क्यों नहीं हो ?


बड़े प्यार से रोज़ आते थे मिलने,
मगर अब इधर डोलते क्यों नहीं हो?


पता तो चले यार नाराज़ क्यों हो,
ये ज़िद अपनी 'जय' छोड़ते क्यों नहीं हो?
*
~जयराम जय
'पर्णिका'बी-11/1,कृमष्ण विहार,आवास विकास,कल्यणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.)
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