पिरो रही जो पूरे विश्व को

पिरो रही जो पूरे विश्व को 

डॉ कैलाश शर्मा "गोविन्द"
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

पिरो रही जो पूरे विश्व को एक सूत्र में ।
वह हिंदी है ,वह हिंदी है , वह हिंदी है ।।


पृथ्वीराज चंदवरदाई का, कीर्तिलता विद्यापति ।
ख्याति प्राप्त है आदिकाल में जगनिक, खुसरो ,नरपति ।।
वीर रस के संग में तो प्रेमाख्यानों की सुगन्धि है ।
वह हिंदी है ,वह हिंदी है , वह हिंदी है ।।

सूरदास और मीरा ने पद, कबीर ने साखी गाई है ।
जायसी का पद्मावत और तुलसी की चौपाई है ।।
रचनावली तो रसखान की , बहती बन कालिंदी है ।
वह हिंदी है ,वह हिंदी है , वह हिंदी है ।।

रीतिकाल के काव्य में तो केशव, देव ,बिहारी हैं ।
घनानंद, पद्माकर, आलम की शोभा तो न्यारी है ।।
श्रृंगार रस के माथे पर ,भूषण के वीर रस की बिंदी है ।
वह हिंदी है ,वह हिंदी है , वह हिंदी है ।।

भारतेंदु और द्विवेदी आधुनिक युग के पुरोधा है ।
वर्मा, गुप्त और पन्त ,निराला छायावाद के योद्धा है ।।
प्रगति प्रयोग और नव लेखन से छू रही बुलंदी है ।
वह हिंदी है ,वह हिंदी है , वह हिंदी है ।।

डॉ कैलाश शर्मा "गोविन्द"
खंडेला सीकर स्वरचित©
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