सत्ता के लिए तुष्टिकरण

सत्ता के लिए तुष्टिकरण

सत्ता के लिए तुष्टिकरण, खेल चल रहा है,
मुफ़्त के माल पर देश में, षड्यंत्र पल रहा है।
आज के सुख में सनातनी, गहरी नींद सो रहे,
इस्लामिक राष्ट्र बने भारत, कोई मचल रहा है।

आधुनिक बनने की होड़ में, हम स्वयं बदल रहे,
संस्कारों को त्याग कर, सनातन से विलग रहे।
क्या हमारी संस्कृति, धर्म का जरा भी भान नही,
संकट मुँह बाये खड़ा, अब भी कहाँ संभल रहे।

खेल ऐसा खेला गया, इतिहास सारा बदल दिया,
था रक्त में शौर्य प्रवाहित, कायरता में बदल दिया।
राम कृष्ण राणा शिवा, दुर्गा लक्ष्मी बिसरा दिये,
दु्ष्टों से भी दया- विनम्रता, बेबसी में बदल दिया ।

राम मर्यादा के प्रतीक, धनुष बाण धारण किये,
कृष्ण कूटनीतिज्ञ धर्म हित, सुदर्शन धारण किये।
धर्म की घुट्टी पीकर, क्यों हम कायर बनते जा रहे,
दुष्ट दलन सभी देवगण, अस्त्र शस्त्र धारण किये।

कब तलक मुँह ढाँप कर, सोने की नाटक करेंगे,
वसुधैव कुटुम्ब की बातें, आततायियों से करेंगे?
छल कपट में लिप्त जो, कब तलक उनको सहें,
जीवन मिला- मृत्यु निश्चित, मौत से सामना करेंगे।

शस्त्र और शास्त्र से, समन्वय करना सीख लो,
बलात्कारी कोई भी हो, घात करना सीख लो।
मुफ़्त के टुकड़ों पर पल, स्वाभिमान मर रहा,
भीख की रोटी से बेहतर, काम करना सीख लो।

डॉ अनन्त कीर्ति वर्द्धन
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