खुद से नजरें चुराने के दिन आ गए

खुद से नजरें चुराने के दिन आ गए


दर्द में मुस्कुराने के दिन आ गए
प्यार के गीत गाने के दिन आ गए


फूल बनने को कलियाँ मचलने लगीं
भ्रंग के गुनगुनाने के दिन आ गए


भूल पाएंगे तुमको नहीं हम कभी
ऑसू-ऑसू हो जाने के दिन आ गए


जान पाए न हम उनकी चालाकियां
दिन में तारे दिखाने के दिन आ गए


चोट पर चोट दे घाव दिल में किया
सिर्फ दिल को दुखाने के दिन आ गए


लूटकर ले गया दिल के अरमान सब
फिर बहाने बनाने के दिन आ गए


जाल में उसके फिर जिंदगी फस गई
जान उससे बचाने के दिन आ गए


जो हुई भूल हमसे है वो किससे कहें
खुद से नजरें चुराने के दिन आ गए


बैठ कर साथ में एक दूजे की 'जय'
सिर्फ सुनने-सुनाने के दिन आ गए
*
~जयराम 'जय'
'पर्णिका'इ-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ०प्र०)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ