परिवार के लिए जीते हैं

परिवार के लिए जीते हैं

तुम लाख मना लो,
मदर डे, फादर डे
वेलेंटाइन डे।
हम तो हर दिन
हर पल
परिवार दिवस मनाते हैं
परिवार के लिए जीते हैं
परिवार के लिए हीं मरते हैं।


जब-जब सुनाती
माँ लोरी
हम सो जाते हैं
बनाती मेरे लिए खाना
हम खाते हैं
मिलती जो माँ के चरणों में सुख
वह हम कहाँ पाते हैं
होती जब-जब कष्ट हमें
माँ की शरण में जाते हैं
सच मानो हम उस दिन
मातृ दिवस मनाते हैं।


सुबह सुबह जब पापा
नींद से हमें जगाते हैं
कराते हैं नित्य क्रिया
पढने के लिए बैठाते हैं
सिखाते हैं
अंगुली पकड़कर चलना
विद्यालय पहुंचाते हैं
करता हूँ जब जिद्द
बाजार,मेला घुमाते हैं
करता हूँ जब गलती
चांटा भी लगाते हैं।
सिखाते हैं अनुशासन
मेरा भविष्य बनाते हैं
सच मानो उस दिन
पितृ दिवस मनाते हैं।


जब-जब हमारी धर्म पत्नी
सुबह सुबह
नींद से जगाती है
बनाती है चाय
मुस्कुराकर जब लाती है
दिल हो जाता है बाग-बाग
जागता है उनके लिए अनुराग
सच मानो हम उस दिन
प्रेम दिवस मनाते हैं।


नहीं जाते हम
माता-पिता,पत्नी से दूर
रहते हैं हम साथ-साथ
लेकर हाथों में हाथ ।
हम तो हर दिन
हर पल
मातृ दिवस
पितृ दिवस
प्रेम दिवस
परिवार दिवस मनाते हैं।


जनाब
हम बाजारवाद में नहीं जीते
परिवारवाद में जीते हैं
परिवार के लिए हम जीते हैं
परिवार के लिए हीं मरते हैं।
-----00---- अरविन्द अकेला,पूर्वी रामकृष्ण नगर,पटना-पूर्वी रामकृष्ण नगर,पटना-27
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