रेलवे – पूर्वोत्तर भारत के नए विकास का इंजन
डिब्रू-सादिया रेलवे के पहले लोकोमोटिव ने 1882 में ब्रह्मपुत्र के साथ दूर के चाय-बागानों को जोड़ा, ताकि वस्तुएं अंततः कोलकाता तक पहुंच सकें। दशकों बाद, रेलवे डिब्रूगढ़ से कोलकाता तक यात्रा की अवधि को 15 दिनों से घटाकर 24 घंटे तक करने में सफल रहा है। हालांकि, 2014 तक, पूर्वोत्तर में रेलवे की सेवाएं मुख्य रूप से वर्तमान के असम तक ही सीमित रहीं। पिछले 8 वर्षों में, पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में रेलवे के विस्तार को सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर कार्य किए गए हैं और जिस धैर्य व दृढ़ता से इस सपने को साकार किया गया है, उसे लोगों के सामने लाये जाने की आवश्यकता है।
एक नई सुबह– पूर्वोत्तर में बदलाव
भूतल परिवहन की तेजी से प्रगति, किसी भी क्षेत्र के त्वरित विकास के लिए महत्वपूर्ण है और इसके लिए भारतीय रेलवे पूर्वोत्तर में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। दशकों की उपेक्षा और विकास की धीमी गति को देखते हुए, सरकार ने इस क्षेत्र में परिवहन-संपर्क को अभूतपूर्व बढ़ावा दिया है। पिछले 9 वर्षों में, भारतीय रेलवे ने अग्रणी भूमिका निभाते हुए इस क्षेत्र में नई रेल लाइनों, पुलों, सुरंगों आदि के निर्माण पर 50,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं और लगभग 80,000 करोड़ रुपये की नई परियोजनाओं को मंजूरी दी है।
पूंजीगत व्यय पर विशेष जोर ने यह सुनिश्चित किया है कि राजधानी रेल-संपर्क परियोजना, जिसका उद्देश्य पूर्वोत्तर राज्यों की सभी राजधानियों को जोड़ना है, अब एक वास्तविकता है। इसके हिस्से के रूप में, भारत, जिरीबाम-इम्फाल रेल लाइन का निर्माण कर रहा है, जिसमें 141 मीटर की ऊंचाई पर दुनिया का सबसे ऊंचा लंबा तटबंध पुल है। इन परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए, भारत सरकार द्वारा पूर्ण समर्थन और संसाधन प्रदान किए गए हैं। 2009 और 2014 के बीच प्रति वर्ष 2,122 करोड़ रुपये के खर्च की तुलना में, औसत वार्षिक बजट आवंटन में 370 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 9,970 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
अवसंरचना विकास के सन्दर्भ में, पूर्वोत्तर की स्थलाकृति हमेशा से एक कठिन चुनौती रही है। हालांकि, मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों से क्षेत्र के सुदूर स्थलों को भी रेल-संपर्क से जोड़ना सुनिश्चित हुआ है। वर्तमान में 121 नई सुरंगों का निर्माण किया जा रहा है और इनमें 10.28 किलोमीटर लंबी सुरंग संख्या 12 शामिल है, जो देश की दूसरी सबसे लंबी सुरंग होगी।
रोजगार के अवसरों का सृजन- युवाओं का सशक्तिकरण
स्थानीय व्यवसायों और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे ने 2022 में असम और गोवा के बीच पहली पार्सल कार्गो एक्सप्रेस ट्रेन का परिचालन किया। रानी गाइदिनल्यू, नागालैंड और मणिपुर की एक महान आध्यात्मिक गुरु हैं। एक उपयुक्त श्रद्धांजलि के रूप में, पहली मालगाड़ी ने मणिपुर के तमेंग्लॉन्ग जिले के रानी गाइदिनल्यू रेलवे स्टेशन में प्रवेश किया था।
जो लोग पूर्वोत्तर जाते हैं, वे इस क्षेत्र की शानदार पर्यटन क्षमता से अभिभूत हो जाते हैं। मनोरम दृश्य, वन्यजीव और संस्कृति व त्योहारों के रूप में अमूर्त विरासत, सम्पूर्ण पूर्वोत्तर की विशिष्टता है। पर्यटकों को पूर्वोत्तर भारत की लुभावनी प्राकृतिक सुंदरता का आनंद मिले, इसके लिए पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे ने कई अत्याधुनिक विस्टाडोम कोच शामिल किए हैं। इससे पर्यटकों की संख्या में वृद्धि की उम्मीद है, परिणामस्वरूप महिलाओं और आदिवासियों जैसे वंचित समुदायों के लिए रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी।
इस क्षेत्र में युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने में रेलवे भी महत्वपूर्ण रहा है। पिछले 3 वित्त वर्षों में, रेलवे ने बीस हजार से अधिक अकुशल श्रमिकों को रोजगार दिया है और कुशल काम के लिए रिक्तियां पैदा की हैं। इस प्रकार, रेलवे ने क्षेत्र के बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में योगदान दिया है।
समय के साथ, स्थानीय समुदायों को अपने घरों के करीब रोजगार के अवसरों के मिलने से देश के अन्य हिस्सों में उनके प्रवास में कमी आयेगी। इससे क्षेत्र की संस्कृति और पहचान को बनाए रखने में मदद मिलेगी तथा भावी पीढ़ियां यहां की विशिष्टताओं से अवगत हो सकेंगी। एक सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त युवा, क्षेत्र और राष्ट्र के लिए हितैषी होंगे।
पूर्वोत्तर- भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का प्रवेश द्वार
अर्थव्यवस्था, व्यापार और शक्ति के वैश्विक केंद्र के रूप में एशिया के उदय के कारण, 21वीं सदी को अक्सर एशियाई सदी के रूप में जाना जाता है। भारत इस उदय का इंजन है।
2014 में, भारत की "लुक ईस्ट पॉलिसी", जिसने भारत के पूर्वी पड़ोसियों के साथ बेहतर आर्थिक संबंधों को बनाने पर ध्यान केंद्रित किया था, को अधिक प्रभावी, परिणाम-केन्द्रित और भू-रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण "एक्ट ईस्ट" नीति में बदल दिया गया। विभिन्न मंचों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उल्लेख किया है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र; एक जीवंत ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को लागू करने का प्रवेश द्वार होगा।
इस नीति का एक शानदार उदाहरण है, अगरतला– अखौरा रेल लिंक, जिसे भारत और बांग्लादेश के बीच 1,100 करोड़ रुपये से अधिक की लागत के साथ निर्मित किया जा रहा है। यह न केवल हमारे पूर्वी पड़ोसी के साथ ऐतिहासिक रेल लिंक स्थापित करेगा, बल्कि क्षेत्र में विकास और समृद्धि के एक नए युग की भी शुरुआत करेगा। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय (डोनर) और विदेश मंत्रालय इस परियोजना को वित्त-पोषित कर रहे हैं। इसी तरह, इम्फाल रेलवे लाइन को मोरेह तक बढ़ाया जाएगा और वहां से, यह कलय में म्यांमार रेलवे से जुड़ जाएगी। इस प्रकार, एक ट्रांस-एशियाई रेलवे का उदय होगा।
इसके अलावा, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए क्षेत्र के भू-रणनीतिक महत्व की पहचान करते हुए, सरकार ने एक रेल-सड़क गलियारे का निर्माण करने का फैसला किया है; जो असम और अरुणाचल प्रदेश को आपस में जोड़ देगा। इसमें ब्रह्मपुत्र नदी में भारत की पहली पानी के नीचे की रेल सुरंग का निर्माण शामिल होगा। रेल–सड़क संपर्क के निर्माण से भारत की उत्तर-पूर्वी सीमाओं तक कनेक्टिविटी सुनिश्चित होगी और हम राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों का गति एवं तत्परता से जवाब देने में सक्षम होंगे।
इसी तरह, 2017 में, उत्तरी असम को पूर्वी अरुणाचल प्रदेश से जोड़ने वाले और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण धोला- सादिया ब्रिज को यातायात के लिए खोला गया था। यह भारत में पानी पर बनाया गया सबसे लंबा पुल है, जो भारत के युद्ध टैंकों के वजन को सहन करने में सक्षम है और भारत की उत्तर-पूर्वी सीमाओं के लिए सैनिकों के त्वरित परिवहन की सुविधा प्रदान करता है।
भारतीय रेलवे ने इस क्षेत्र में अपने नेटवर्क का विस्तार करने के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया है। असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर बोगिबिल पुल, जो एशिया का दूसरा सबसे लंबा रेल-सह-सड़क पुल है, का 2018 में उद्घाटन किया गया था। यह पुल असम और अरुणाचल के बीच यात्रा की अवधि को 80 प्रतिशत तक कम कर देगा और भारतीय रक्षा बलों को लॉजिस्टिक्स सुविधा भी प्रदान करेगा। इस पुल को रिक्टर स्केल पर 7.0 तक परिमाण वाले भूकंपों का सामना करने के लिए डिज़ाइन किया गया है और इसका उपयोग फाइटर जेट के उतरने के लिए भी किया जा सकता है।
रेलवे– नए पूर्वोत्तर को गति प्रदान कर रहा है
परंपरागत रूप से, गौरवपूर्ण हिमालय और शक्तिशाली ब्रह्मपुत्र ने पूर्वोत्तर के लगभग हर नागरिक के जीवन को प्रभावित किया है। अब रेलवे भी इस सूची में शामिल हो गया है, क्योंकि इसने अपने परिचालन को क्षेत्र के विभिन्न इलाकों तक फैला दिया है। इस क्षेत्र का विकास, भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य में अपना योगदान देगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि यदि भारत को समृद्ध होना है, तो पूर्वोत्तर के विकास को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है और रेलवे निश्चित रूप से इस आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देने वाले इंजनों में से एक है। नौ साल बाद, प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक वास्तविक स्वरूप प्रदान किया गया है और भारतीय रेलवे बदलाव की इस यात्रा में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।(जी. किशन रेड्डी, केंद्रीय उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास, पर्यटन और संस्कृति मंत्री हैं)
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