धर्म के विरूद्ध खड़ा जो, हरकतों को ताड़ना,
दुष्ट हो तो मिलनी चाहिए, दुष्ट को प्रताडना।
अर्थ का अनर्थ करते, सनातन के विरूद्ध खड़े,
अर्थ की सामर्थ्य क्या, निज नज़र में ही गाड़ना।
सनातन का संदेश है, सत्य की अवधारणा,
पापियों के हृदय में भी, पुण्य की हो धारणा।
घृणा करें हम पाप से, पापी का सुधार कर,
सुधारने से सुधरे नहीं, तब पापी को भी तारना।
धर्म का बिगुल बजे, बस कृष्ण यही चाहते रहे,
पांडवों को पाँच गाँव, कौरवों को समझाते रहे।
अधर्म और अहंकार, कब कहाँ किसकी सुने,
भीष्म द्रोण कर्ण दुर्योधन, असमय जाते रहे।
अ कीर्ति वर्द्धन
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