नया दौर
नए दौर के इस युग में
सब कुछ उल्टा दिखता है,
महँगी रोटी सस्ता मानव
गली-गली मे बिकता है।
कहीं पिंघलते हिम पर्वत
हिमयुग का अंत बताते हैं,
सूरज की गर्मी भी बढती
अंत जहां का दिखता है।
अबला भी अब बनी है सबला
अंग प्रदर्शन खेल में,
नैतिकता का पतन हुआ है
जिस्म गली मे बिकता है।
रिश्तों का भी अंत हो गया
भौतिकता के बाज़ार में,
कौन पिता और कौन है भ्राता
पैसे से बस रिश्ता है।
भ्रष्ट आचरण आम हो गया
रुपैया पैसा ख़ास हो गया,
मानवता भी दम तोड़ रही
स्वार्थ दिलों मे दिखता है।
पत्नी सबसे प्यारी लगती
ससुराल भी न्यारी लगती,
मात पिता संग घर मे रहना
अब तो दुष्कर लगता है।
पर्वत से वृक्षों का कटना
नदियों से जल का घटना,
तनाव ग्रस्त मानव का देखो
जीवन संकट दिखता है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com