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अमर कोई नहीं है

अमर कोई नहीं है

हँसते खेलते गुजर गई
अब तक की जिंदगी।
वक्त कैसे निकल गया
जिंदगी को पता नहीं चला।
पर अब जिंदगी न जाने
क्यों सहमी सहमी है।
इसका कारण कुछ
पता नहीं चल रहा।।


जिंदगी जीना चाहता हूँ
हर दम मौज मस्ती से।
न गम दू मैं किसी को
न गम दे लोग किसी को।
मैत्री भाव बने जगत में
इर्षा का हो नाश यहाँ।
मानव को मानव समझे
और रखें इंसानियत को जिंदा।।


आना जाना तो लगा रहता है
इस मायावी संसार में।
जो आया है यहाँ पर
उसे एक दिन जाना है।
हाँ पर आने जाने का
वक्त किसी को नहीं पता।
न ही यहाँ अमर होकर
अब तक कोई आया है...।।


जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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