जानकी वल्लभ शास्त्री से हिन्दी गीत को साहित्य में विशेष स्थान मिला,चिंतक साहित्यकार थे पं शिवदत्त मिश्र:-डा अनिल सुलभ

जानकी वल्लभ शास्त्री से हिन्दी गीत को साहित्य में विशेष स्थान मिला,चिंतक साहित्यकार थे पं शिवदत्त मिश्र:-डा अनिल सुलभ

  • दोनों साहित्यिक विभूतियों की जयंती पर साहित्य सम्मेलन में दी गयी गीतांजलि ।
पटना, ५ फरवरी। हिन्दी साहित्य के पुरोधा और गीत के शलाका-पुरुष आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री बिहार के ही नहीं, साहित्य-संसार के गौरव-स्तम्भ हैं। वे संस्कृत और हिन्दी के मूर्द्धन्य विद्वान तो थे ही साहित्य और संगीत के भी बड़े तपस्वी साधक थे। कवि-सम्मेलनों की वे एक शोभा थे। अपने कोकिल-कंठ से जब वे गीत को स्वर देते थे, हज़ारों-हज़ार धड़कने थम सी जाती थी। कवि-सम्मेलनों के मंच पर उनकी बराबरी राष्ट्र-कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' और गीतों के राज कुमार गोपाल सिंह नेपाली के अतिरिक्त कोई भी नहीं कर सकता था। हिन्दी गीत को उनके कारण ही साहित्य में विशेष स्थान प्राप्त हुआ।
यह बातें रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री और चिंतक साहित्यकार पं शिवदत्त मिश्र की जयंती पर आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, यदि बिहार में जानकी जी और नेपाली जी नहीं होते तो हिन्दी-साहित्य से गीत की अकाल मृत्यु हो जाती। शास्त्री जी ने अपनी साहित्यिक-यात्रा संस्कृत-काव्य से आरंभ की थी। किंतु महाप्राण निराला के निर्देश पर उन्होंने हिन्दी में काव्य सृजन आरंभ किया और देखते ही देखते गीत-संसार के सुनील आसमान में सूर्य के समान छा गए। साहित्य की सभी विधाओं में जी भर के लिखा। कहानी,उपन्यास , संस्मरण, नाटक और ग़ज़लें भी लिखी। उनके गीतों से होकर गुज़रना दिव्यता के साम्राज्य से होकर गुज़रने के समान है।
डा सुलभ ने पं शिवदत्त मिश्र को स्मरण करते हुए कहा कि, मिश्र जी एक संवेदनशील कवि और दार्शनिक-चिंतन रखने वाले साहित्यकार थे।'कैवल्य' नामक उनके ग्रंथ में, उनकी आध्यात्मिक विचार-संपन्नता और चिंतन की गहराई देखी जा सकती है। वे साहित्य में उपभोक्ता-आंदोलन के भी प्रणेता थे। वे एक मानवता-वादी सरल और सुहृद साहित्यसेवी थे। साहित्य-सम्मेलन के उद्धार के आंदोलन में उनकी अत्यंत मूल्यवान और अविस्मरणीय भूमिका रही। वे सम्मेलन के यशमान उपाध्यक्ष रहे। वे एक समर्थ कवि और संपादक थे।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने कहा कि शास्त्री जी ने अपने साहित्य में स्त्री-विमर्श को विशेष स्थान दिया। उनकी विश्रुत कृति 'पाषाणी' में स्त्री-व्यथा का अत्यंत मार्मिक चित्रण है। उन्होंने अपने साहित्य में नारी को बहुत ही बल प्रदान किया। प्रो सुखित वर्मा और अप्सरा रणधीर ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ स्वर्गीय शिवदत्त जी की पत्नी और कवयित्री चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। सम्मेलन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश' ने अपनी ग़ज़ल “कोई रहमत न इनायत न कि इमदाद नहीं/ मुश्किलें ग़म हैं सितम हैं भी तो फ़रियाद नहीं/ जिस परींदे की बचायी हो जान व्याध ने/ उसकी नज़रों में फ़रिश्ता है वो सैय्याद नहीं” का सस्वर पाठ कर महाकवि को अपनी श्रद्धांजलि दी। उन्होंने भारत सरकार से शास्त्री जी को 'भारत-रत्न' की उपाधि प्रदान करने की माँग की।
वरिष्ठ कवि डा शंकर प्रसाद ने अपनी ग़ज़ल "मुझे पता है कि ये वजह दुश्मनी क्या है/ मुझे खबर है कि अंजामे-दोस्ती क्या है/ उदासियों के मनाज़िर हसरतों के चिराग़/ ख़ुदा के फ़ज़ल से घर में मेरे कमी क्या है", को तर्रनुम से सुनाकर श्रोताओं का दिल जीत लिया। गीत के चर्चित कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय, जय प्रकाश पुजारी, डा शालिनी पाण्डेय, श्रीकांत व्यास, सदानंद प्रसाद, कृष्णा मणिश्री, अशोक कुमार, अभिलाषा कुमारी, अर्जुन प्रसाद सिंह, सागरिका राय, दिवाकर कुमार, नूतन सिन्हा, डा कुंदन लोहानी, नेहाल कुमार सिंह 'निर्मल', अजित कुमार भारती तथा निशा पराशर ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन डा अर्चना त्रिपाठी ने किया।समारोह में, डा सुशील कुमार मिश्र, वंदना प्रसाद, शिखा कुमारी, विष्णु प्रसाद, जितेंद्र कुमार सिन्हा, रामाशीष ठाकुर, अमन वर्मा, दुःख दमन सिंह, मनोज कुमार झा, सरिता सिंह, डौली कुमार, दिगम्बर जायसवाल समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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