सुरक्षित नहीं है देश में कोई भी आजकल,
सोचकर मुझको खुद से ग्लानी होती है।
देखकर वातावरण अपने शहर का,
विकास के पैमाने पर हैरानी होती है।
घट गयी कपड़ों की लम्बाई आजकल,
नंगा बदन देखकर, परेशानी होती है।
होते नहीं फिक्रमंद माँ- बाप देखिये,
पढ़- लिख बेटी जब सयानी होती है।
करती है नौकरी, चाहे जितनी धनी हो,
शादी के मामले में मनमानी होती है।
होती थी निर्भर जो माँ-बाप पर सदा,
हुनर सीख कर स्वाभिमानी होती है।
सौम्यता, सरलता, नारीत्व त्याग कर
पैसों का खेल देखिये, अभिमानी होती है।
पच्छिम की सभ्यता का अनुकरण कर,
आज की युवा पीढ़ी दीवानी होती है।
त्याग रही संस्कार अपने धर्म- देश के,
"स्वछंदता" सफलता की कहानी होती है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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