ऊर्जा को लेकर कल की भी सोचें

ऊर्जा को लेकर कल की भी सोचें

(रमेश सर्राफ धमोरा-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
हमारे जीवन में प्रतिदिन के विभिन्न कार्यो के संचालन के लिए ऊर्जा अत्यंत महत्वपूर्ण साधन है। दुनिया की अर्थव्यवस्था में वृद्धि के साथ-साथ प्रतिवर्ष ऊर्जा की मांग भी बढ़ती जा रही है। हम प्रतिदिन विभिन्न रूपों में ऊर्जा का उपयोग करते है। अतः भविष्य में ऊर्जा की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इसका संरक्षण आवश्यक है।
ऊर्जा संरक्षण से तात्पर्य विभिन्न उपायों के माध्यम से ऊर्जा का संरक्षण करना है। ऊर्जा संरक्षण के अंतर्गत विभिन कार्यो के माध्यम से ऊर्जा का उपयोग इस प्रकार किया जाता है जिससे वर्तमान की आवश्यकता की पूर्ति के साथ भविष्य की जरूरतें भी पूरी हो सकें। ऊर्जा संरक्षण से तात्पर्य ऊर्जा का विवेकपूर्ण उपयोग है। इसका अर्थ है ऊर्जा का अनावश्यक उपयोग न करना एवं कम से कम ऊर्जा का उपयोग करते हुए कार्य को करना।
बिजली आज पूरी दुनिया की सबसे अहम जरूरत बन गयी है। बिजली के बिना कोई भी देश तरक्की नहीं कर सकता है। थोड़े से समय के लिए बिजली चली जाने पर हमारे अधिकतर काम रूक जाते हैं। बिजली हमारे जनजीवन का कब मुख्य हिस्सा बन गयी, हमें पता ही नहीं चल पाया। आज हमारा पूरा जनजीवन बिजली से जुड़ा हुआ है। बिजली का उत्पादन मशीनो से किया जाता है। ऐसे में हमें हर हाल में बिजली का दुरूपयोग नहीं करना चाहिये।
भारत में हर साल 14 दिसम्बर को राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाता है। भारत में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाने का मकसद लोगों को ऊर्जा के महत्व के साथ ही ऊर्जा की बचत के बारे में जागरुक करना है। भारत सरकार ने वर्ष 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 लागू किया था। इस अधिनियम में ऊर्जा के गैर पारम्परिक स्त्रोतों को इस्तेमाल में लाने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी करना, पारम्परिक स्त्रोतों के संरक्षण के लिए नियम बनाना आदि शामिल था। भारतीय संसद द्वारा पारित ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 में ऊर्जा संरक्षण में ऊर्जा के कम या न्यूनतम उपयोग पर जोर दिया जाता है और इसके अत्यधिक या लापरवाही पूर्ण उपयोगों से बचने के लिए कहा जाता है।
भारत एक ऐसा देश है जहां पूरे साल सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत में साल भर में लगभग 310 दिनों तक तेज धूप खिली रहती है। भारत भाग्यशाली देश है जिसके पास सौर ऊर्जा के लिए खिली धूप की उपलब्धता, पर्याप्त मात्रा में भूमि की उपलब्धता, परमाणु ऊर्जा के लिए थोरियम का अथाह भंडार तथा पवन ऊर्जा के लिए लंबा समुद्री किनारा नैसर्गिक संसाधन के तौर पर उपलब्ध है। जरूरत है तो बस उचित प्रौद्योगिकी का विकास तथा संसाधनों का दोहन करने की।
देश की ऊर्जा की मांग और आपूर्ति में बहुत बड़ा अन्तर है। देश में बिजली संकट लगातार गहराता जा रहा है। अगर इस समय बिजली संकट को गंभीरता से नहीं लिया गया तो यह भारत के विकास के लिए बड़ा अभिशाप सिद्ध हो सकता है। क्योंकि किसी भी देश की तरक्की का रास्ता ऊर्जा से ही होकर जाता है। सरकार को अब वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर गंभीरता से विचार करते हुए ऊर्जा बचत के लिए जरूरी उपाय अपनाने पड़ेंगे। इस मायने में सूर्य से प्राप्त सौर ऊर्जा अत्यंत महत्वपूर्ण विकल्प है।
सौर ऊर्जा प्रदूषण रहित, निर्बाध गति से मिलने वाला सबसे सुरक्षित ऊर्जा स्रोत है। भारत में सौर ऊर्जा लगभग बारह महीने उपलब्ध है। सौर ऊर्जा को और अधिक उन्नत करने के लिए हमें अपने संसाधनों का उपयोग करना चाहिए। ऊर्जा के मामले में अधिक समय तक दूसरों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है। ऊर्जा के क्षेत्र में हमें अपनी तकनीक और संसाधनों का उपयोग कर आत्मनिर्भरता हासिल करनी ही होगा। यह दुख का विषय है कि बहुत लम्बे समय तक हमने सौर ऊर्जा के उत्पादन व उपयोग पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। हमारे देश की परिस्थितियां विषम होने के कारण हमें सभी उपलब्ध ऊर्जा विकल्पों पर विचार करना होगा। इसके साथ ही ऊर्जा संरक्षण के व्यावहारिक कदमों को अपनाना होगा ताकि बड़े पैमाने पर बिजली की बचत हो सके।
हमारे देश में ऊर्जा की मांग तीव्रगति से बढ़ रही है लेकिन उत्पादन में खपत की तुलना में बढ़ोत्तरी नहीं हो पा रही है। देश में चल रही पुरानी बिजली परियोजनाएं कभी पूरा उत्पादन नहीं कर पाईं है। नई स्थापित होने वाली परियोजनाओं के लिए स्थितियां अनुकूल नहीं होती हैं। देश में बिजली के इस संकट को अगर अभी समय रहते दूर नहीं किया गया तो आने वाले समय में गंभीर संकट का सामना करना होगा। दुर्भाग्यवश हमारे देश में खनिज, पेट्रोलियम, गैस, उत्तम गुणवत्ता के कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधन बहुत सीमित मात्रा में ही उपलब्ध हैं। ऊर्जा की बचत किये बिना हम विकसित राष्ट्र का सपना नहीं देख सकते हैं।
हमारे देश में 15 सितंबर 2022 तक स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 404,132.96 मेगावाट थी जिसमें कोयले से 210,699.5 मेगावाट अथवा 52.14 प्रतिशत, हाइड्रोपावर (पनबिजली) से 46,850.17 मेगावाट यानि कुल क्षमता का 11.5 प्रतिशत, प्राकृतिक गैस का योगदान 24,856.21 मेगावाट यानि क्षमता का महज 6 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा और परमाणु ऊर्जा का योगदान 6780 मेगावाट है। देश के सभी घरों तक 24 घंटे बिजली पहुंचाने के लिए मौजूदा क्षमता कम पड़ेगी। इसके लिए वर्तमान क्षमता से कम से कम 30 फीसदी अधिक बिजली की जरूरत होगी। इसके लिये देश में पावर प्लांटों में 100 फीसदी बिजली उत्पादन करना होगा।
आज जिस तेजी के साथ हम प्राकृतिक और पराम्परिक ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग कर रहे हैं, उस रफ्तार से 40 साल बाद हो सकता है हमारे पास तेल और पानी के बड़े भंडार खत्म हो जाएं। उस स्थिति में हमें ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्त्रोतों यानि सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा जैसे साधनों पर निर्भर होना पड़ेगा। लेकिन ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्त्रोतों को इस्तेमाल करना थोड़ा मुश्किल है और इस क्षेत्र में कार्य अभी प्रगति पर है। इन स्त्रोतों को इस्तेमाल में लाने के लिए कई तरह के वैज्ञानिक शोध चल रहे हैं जिनके परिणाम आने और आम जीवन में इस्तेमाल लाने के लायक बनाने में अभी समय लगेगा। इसे देखते हुए अगर हमने अभी से ऊर्जा के स्त्रोतों का संरक्षण करना शुरू नहीं किया तो आगे चलकर हालात बहुत बदतर हो सकते हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि देश के अब सभी 5 लाख 97 हजार 464 गांवों का विद्युतीकरण हो गया है। सरकार की परिभाषा के मुताबिक वे गांव इलेक्ट्रिफाइड माने जाते हैं जहां बेसिक इलेक्ट्रिकल इंफ्रास्ट्रक्चर हो और गांव के 10 फीसदी मकानों और सार्वजनिक जगहों पर बिजली हो। भारत में बीते एक दशक के दौरान बढ़ती आबादी, आधुनिक सेवाओं तक पहुंच, विद्युतीकरण की दर तेज होने और सकल घरेलू आय में वृद्धि की वजह से ऊर्जा की मांग काफी बढ़ी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस मांग को सौर ऊर्जा के जरिए आसानी से पूरा किया जा सकता है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अपार संभावनाओं को देखते हुए अब विदेशी कंपनियों की निगाहें भी भारत पर हैं।
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