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यात्रा का आनंद

यात्रा का आनंद

सफर में आनंद आता है।
जब एक जैसे मिल जाए।
पता ही नहीं पड़ता है।
कब मंजिल पर पहुँच गए।


लोगों की बातें हमें
बहुत कुछ सिखाती है।
जो जिंदगी में हमारे
बहुत ही काम आती है।
कहने को सभी लोग
हमें अंजान लगते है।
पर कुछ ही समय में
अपने से लगने लगते है।।


उदासी और मायूसी
झलती है जिन चेहरे पर।
जो लोगों की बातों से
जल्दी ही दूर होती है।
फिर देखते ही देखते
वो हँसमुख हो जाते है।
और अपने होने का भी
वहाँ एहसास कराते है।।


इस तरह से सफर हमारा
हंसी खुशी से कट जाता है।
और थकान सफर की हमें
मेहसूस नहीं होती है।
सभी का साथ पाकर
बहुत ही अच्छा लगता है।
और लोगों से अंजानो की
समझ लेते है परिभाषा।।


जय जिनेंद्रसंजय जैन "बीना" मुंबई
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