काश! कांग्रेस संगठन की कब्र पर सत्ता की राजनीति न की होती तो शायद ये दिन देखने न पड़ते:-डॉक्टर विवेकानंद मिश्र

काश! कांग्रेस संगठन की कब्र पर सत्ता की राजनीति न की होती तो शायद ये दिन देखने न पड़ते:-डॉक्टर विवेकानंद मिश्र

कार्यकर्ताओं की बदौलत ही संगठन की शिराओं में रक्त का प्रवाह होता है, किंतु आश्चर्य एवं चिंता का विषय है कि जिन निष्ठावान एवं समर्पित कार्यकर्ताओं की बदौलत संपूर्ण भारत वर्ष में कांग्रेस ने अपना तिरंगा फहराया उन्हें समुचित मान सम्मान न देकर नाहक अपमानित कर परेशान करने की कार्रवाई बरसों से निरंतर की जाती रही है। कांग्रेस के हर बुरे दिनों में खिलाफत करने वाले स्वार्थी, जातिवादी, वर्चस्ववादी नेतागण जब- जब जनता से ठुकराए जाते हैं तब सत्ता से बेदखल होकर संगठन पर कब्जा कर कर लेते हैं। सत्ता और संगठन के खेल में महारत वाले ये नेता मात्र अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए संगठन की कब्र पर सत्ता-सुख प्राप्ति का लक्ष्य लेकर राजनीति करने वाले ये लोग शीर्ष नेताओं को घेर कर येन- केन-प्रकारेण अपने इच्छानुकूल मकसद में सफल भी रहे हैं। ऐसे गगनबिहारी और बड़बोले तथाकथित नेताओं को शीर्ष नेताओं द्वारा ही पुरस्कृत भी किया जाता रहा है। सर्वोच्च्य नेताओं द्वारा उन्हें जरूरत से ज्यादा तरजीह दी जाती भी रही है। उल्लेखनीय है कि ऐसे लोग जिनकी आत्मा कहीं और, तथा शरीर से इनकी उपस्थिति यहां रहती है।
यह कथन है विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े गया जिला कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ नेता डॉक्टर विवेकानंद मिश्र का।
डॉ मिश्र ने कांग्रेस अध्यक्ष सहित कई शीर्ष नेताओं को लिखे अपने पत्र में लोगों का ध्यान आकृष्ट करते हुए आगे लिखा है कि सचमुच कांग्रेस को मजबूत एवं गतिशील बनाना है तो आज जमीन पर चलकर, जनसमस्याओं से अवगत होकर, उसके निराकरण के लिए ईमानदारी से आगे आना होगा, जनाधार को बढाना होगा किंतु यह तभी संभव है जब कांग्रेस के बड़ी संख्या में वर्षो से उपेक्षित कार्यकर्ताओं को उचित मान- सम्मान एवं सत्ता में भागीदारी तथा संगठन में समुचित स्थान मिले। मेरा मानना है कि कांग्रेस केवल एक राजनीतिक दल ही नहीं है, बल्कि भारत का प्रतिनिधित्व भी करती है। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस जिसका सुदूर गांवों से लेकर केंद्र तक सीधा संबंध था, किंतु तब आधार वोट बैंक रहे दलित, मुस्लिम, ब्राह्मण एवं अति पिछड़े दबे- कुचले वर्ग के लोग ही इनका जनाधार थे। किंतु दुर्भाग्य की शुरुआत तब से शुरू हुआ है जब से उपर्युक्त वर्गों के नेताओं एवं उनके सूत्रधारों को लगातार एक- एक कर निकाल बाहर किया गया। मैं आज भी दावे के साथ कह सकता हूं कि उपरोक्त वर्गों में कांग्रेस के प्रति आज गुस्सा अवश्य है किंतु नफरत नहीं, बशर्ते आज भी शीर्ष नेतृत्व इस बात को स्वीकार करे तो कांग्रेस अपनी खोई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कर सकती है, क्योंकि भारतयात्रा कार्यक्रम ने सुप्त पड़ी कांग्रेसी जनों में नयी जान फूँक रही है। वहीं हिमाचल की जीत से कार्यकर्ताओं मे नई ऊर्जा का संचार भी अवश्य हुआ है। लोग उत्साहित हैं । यही अनुकूल समय है कांग्रेस को सशक्त, मजबूत व गतिशील बनाने का। आम लोगों में भी इस बात की चर्चा रहती है कि कांग्रेसी गांधीवादी विचारधारा को दरकिनार कर सिद्धांत और मूल्यों की राजनीति को ताक पर रखकर बेमेल गठबंधन करके अपनी इस ऐतिहासिक दुर्दशा के लिए अपनी जिम्मेदारी से खुद को अलग नहीं कर सकते। आज इस पर भी गंभीरता से विचार- विमर्श करने की आवश्यकता कांग्रेस के व्यापक हित में होगा।
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