उत्तराखण्ड तैयार करेगा ‘ड्रोन बहादुर’

उत्तराखण्ड तैयार करेगा ‘ड्रोन बहादुर’

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)

जनरल मानेकशाॅ जैसे अदम्य साहसी सैनिक पैदा करने वाला उत्तराखण्ड अब युद्धनीति की नयी विधा में खास भूमिका निभाने वाले ड्रोन बहादुर पैदा करेगा। उत्तराखण्ड के युवाओं को देश की रक्षा में सहभागिता निभाने के लिए इन दिनों पुष्कर सिंह धामी की सरकार ड्रोन पायलट की ट्रेनिंग दिला रही है। हाथों में रिमोट लेकर ड्रोन को लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए उत्तराखण्ड के युवा ट्रेनिंग ले रहे हैं और देश ही नहीं विदेशों में भी अपना हुनर दिखाएंगे। इससे उत्तराखण्ड में बेरोजगारी भी कम होगी। बेरोजगारी के चलते ही पहाड़ से युवाओं का पलायन बहुत तेजी से हुआ है। कितने ही गांव पूरे के पूरे खाली हो गये। पुष्कर सिंह धामी की सरकार राज्य में सीमित संसाधनों से ही विकास कार्यों के साथ युवाओं को रोजगार भी देना चाहती है। राज्य में ड्रोन पायलट तैयार करना इसी दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। पायलट रहित ड्रोन की उपयोगिता कुछ ही समय में बहुत बढ़ गयी है और युद्ध के मैदान में इसका उपयोग सबसे ज्यादा सुरक्षित माना जा रहा है। उत्तराखण्ड देश की सुरक्षा के लिए सैनिक देने में अग्रणी रहा है। यहां पर इंडियन मिलेट्री एकेडमी से कितने ही जांबाज सैनिक निकले और देश का नाम रोशन किया है। अब ड्रोन की ट्रेनिंग में भी उत्तराखण्ड की महत्वपूर्ण भूमिका होने जा रही है। देश में अभी 32 ड्रोन ट्रेनिंग सेंटर हैं। उत्तराखण्ड 13 ड्रोन ट्रेनिंग स्कूल खोलने जा रहा है।

उत्तराखंड के युवाओं को अब रोजगार से जोड़ने के लिए ड्रोन पायलेट की ट्रेनिग दी जा रही है। हालांकि अभी तक प्रदेश में एक भी ड्रोन स्कूल नहीं है, लेकिन आने वाले समय में प्रदेश के सभी जिलों में ड्रोन स्कूल खोलने की तैयारी है। फिलहाल इन स्कूलों के लिए ट्रेनर्स को आईटीडीए तैयार कर रहा है। हाथों में रिमोर्ट लिए ये वो युवा है, जिन्होंने ड्रोन इंडस्ट्री में काम करने के लिए ट्रेनिग ली और अब ये युवा देश ही नहीं विदेशों में भी अपने इस हुनर को बिखेरने के लिए तैयार बैठे हैं। फिलहाल प्रदेश में खुलने वाले ड्रोन स्कूल के लिए तैयार हो रहे है। इन युवाओं का मानना है कि आज के दौर में ड्रोन इंडस्ट्री लगातार बढ़ रही है और आने वाले समय में विभागों के अलावा ड्रोन इंडस्ट्री से युवाओं को रोजगार मिलेगा। इसके अलावा प्रदेश एक आपदाग्रस्त राज्य है, यहां पर ड्रोन पायलटों की अधिक आवश्यकता है। देश में अभी तक 32 ड्रोन ट्रेनिंग सेंटर हैं, जिसमे उत्तर प्रदेश में केवल 2 ट्रेनिंग सेंटर हैं। ड्रोन इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड अब 13 ड्रोन स्कूल खोलने जा रहा है। इसकी शुरुआत ऋषिकेश के आईडीपीएल स्कूल से शुरू होगी। आईटीडीए निदेशक एडीजी अमित सिन्हा के अनुसार इस वर्ष के अंत तक राज्य के सभी पुलिस और सिविल वयस्क छात्रों के लिए सभी जनपदों में एक स्कूल खोलकर ड्रोन प्रशिक्षण शुरू किया जाएगा। बाजार में ड्रोन इंडस्ट्री के बढ़ते कदमों को देखते हुए अब प्रदेश के युवाओं को भी इस इंडस्ट्री में रोजगार के साथ जोड़ने की तैयारियां जोरो पर हैं, जिसमे हर साल 100 से अधिक ड्रोन पायलेट बनेंगे।

दुनिया के बेहतरीन सैन्य अफसर तैयार करना कोई आसान काम नहीं है। दून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) यह काम लगातार 90 साल से बखूबी कर रही है। देश का गौरव यह संस्थान अब तक देश-विदेश के 64 हजार 145 सैन्य अफसर दे चुका है। भारतीय सैन्य अकादमी का गौरवशाली इतिहास है। आज जहां भारतीय सैन्य अकादमी है, नौ दशक पहले वहां रेलवे स्टाफ कालेज हुआ करता था। कालेज का 206 एकड़ कैंपस और अन्य ढांचागत सुविधाएं भारतीय सैन्य अकादमी को हस्तांतरित की गईं और वर्ष 1932 में 40 कैडेट के साथ अकादमी का सफर शुरू हुआ। आइएमए की स्थापना एक अक्टूबर 1932 को हुई। ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस प्रथम कमांडेंट बने। संस्थान के पहले बैच को ‘पायनियर बैच’ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें फील्ड मार्शल सैम मानेक शा, म्यांमार के सेनाध्यक्ष स्मिथ डन एवं पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष मोहम्मद मूसा शामिल थे।फील्ड मार्शल सर फिलिप डब्ल्यू चैटवुड ने 10 दिसंबर 1932 को भारतीय सैन्य अकादमी का औपचारिक उद्घाटन किया। उन्हीं के नाम पर आइएमए की प्रमुख बिल्डिंग चैटवुड बिल्डिंग के नाम से विख्यात है। वर्ष 1933 में आइएमए को किंग्स कलर प्रदान किया गया। स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) की कमान पहली बार किसी भारतीय के हाथ में सौंपी गई। वर्ष 1947 में ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह इसके पहले कमांडेंट बने। वर्ष 1949 में परिवर्तन हुआ और यह सुरक्षा बल अकादमी बनी।इसका एक अलग विंग क्लेमेनटाउन में खोला गया, जहां सेना के तीनों विंगों को ट्रेनिंग दी जाती थी। बाद में इसका नाम नेशनल डिफेंस एकेडमी रख दिया गया। वर्ष 1954 में एनडीए के पुणे (महाराष्ट्र) स्थानांतरित हो जाने के बाद इसका नाम मिलिट्री कालेज हो गया। वर्ष 1956 में ब्रिगेडियर एमएम खन्ना पहले ऐसे कमांडेंट बने, जो स्वयं भी आइएमए से पास आउट थे। वर्ष 1960 में संस्थान को भारतीय सैन्य अकादमी का नाम दिया गया। चीन से युद्ध के दौरान नवंबर 1962 से लेकर नवंबर 1964 तक चार हजार से अधिक जेंटलमैन कैडेट्स को अधिकारी के रूप में कमीशन प्रदान किया गया।

भारतीय सैन्य अकादमी ने देश-दुनिया को एक से बढ़कर एक नायाब अफसर दिए हैं। यहां प्रशिक्षण लेने वालों में न केवल देश बल्कि विदेशी कैडेट में शामिल रहते हैं। ड्रोन शब्द किसी के लिए नया नहीं है। आपने भी ड्रोन को उड़ते हुए जरुर देखा होगा। ड्रोन एक फ्लाइंग रोबोट होता है जिसे मनुष्य द्वारा रिमोट से कंट्रोल किया जाता है। इसका आविष्कार मनुष्य द्वारा अपने कार्यों को संपादन करने के लिए किया गया है। ड्रोन को बनाने का मुख्य मकसद, उन कामों को आसान बनाना है जो इंसानों के लिए जोखिम भरे होते हैं। आज ड्रोन का इस्तेमाल बहुत सारे कार्यों के लिए किया जाता है। इसलिए उत्तराखण्ड के ड्रोन वीरों का भविष्य उज्ज्वल है।
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