तेजस्वी के लिए ओवैसी सिर दर्द!

तेजस्वी के लिए ओवैसी सिर दर्द!

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)

कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने एआईएमआईएम नेता असदउद्दीन ओवैसी को भाजपा की बी टीम बताया है। ओवैसी से भाजपा को नुकसान नहीं पहुंचता लेकिन अप्रत्यक्ष लाभ जरूर मिलता है। बिहार में तो राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लिए वे सिरदर्द ही बन गये हैं। अभी हाल में गोपालगंज विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में राजद प्रत्याशी को ओवैसी के चलते ही पराजय का सामना करना पड़ा और भाजपा प्रत्याशी को लगभग एक हजार वोटों से जीत हासिल हुई। अब वहां कुढनी में भी उपचुनाव होने हैं और ओवैसी ने अपना प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर दी है। राजद का प्रमुख वोट बैंक मुसलमान और यादव ही माना जाता है। इसलिए सबसे ज्यादा परेशानी तेजस्वी यादव को हो रही है। ध्यान रहे कि बिहार में सबसे बड़ी पार्टी राजद है लेकिन ओवैसी की सक्रियता अगर इसी तरह बढ़ती रही तो राजद कमजोर पड़ जाएगी। तेजस्वी की पार्टी ने हालांकि एनडीए सरकार के दौरान ओवैसी के पांच में से चार विधायकों को तोड़कर अपने दल में शामिल कर लिया था लेकिन अब ओवैसी अपना आधार वहां बढ़ा रहे हैं। तेजस्वी को 2024 के लोकसभा चुनाव की चिंता है क्योंकि ओवैसी उनकी गणित को बड़बड़ा सकते हैं।

बिहार में राजद के सबसे प्रमुख वोट बैंक माई (एमवाई) यानी मुस्लिम-यादव समीकरण में से एक मुसलमानों के बीच ओवैसी की पार्टी का बढ़ता झुकाव मुसीबत खड़ी करने वाला है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम बिहार में हुए उपचुनाव के दौरान गोपालगंज चुनाव में राजद की हार की सबसे बड़ी वजह बनी। इसके बाद कुढ़नी में हो रहे उपचुनाव में उतरने का ऐलान किया। इतना ही नहीं ओवैसी की पार्टी एमआईएमआईएम ने पटना यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव में भी एंट्री मार ली है। पीयू छात्र संघ चुनाव में पहली बार ओवैसी की पार्टी की एंट्री होती दिख रही है।

एआईएमआईएम पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव में पहली बार समर्थित शबा कुतुब को उपाध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाया गया है। ऐसे में एआईएमआईएम के इस कदम से आरजेडी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। गौरतलब है कि पटना विश्वविद्यालय के छात्र चुनाव में राजद छात्र संगठन या फिर ओवैसी का मजबूत दबदबा रहा है। ऐसे में अगर एआईएमआईएम अपना उम्मीदवार खड़ा करता है तो तेजस्वी की पार्टी राजद की मुश्किलें बढ़ेंगी क्योंकि उसका आधार वोट भी वही है जिसकी दावेदार अब ओवैसी पार्टी है।

दरअसल, बिहार में जब एनडीए सरकार में बीजेपी और जेडीयू साथ-साथ थी, उस समय विधानसभा सत्र के दौरान ही तेजस्वी ने ओवैसी के पांच में चार विधायकों को तोड़कर अपने पार्टी में मिला लिया था। इन चार विधायकों के राजद खेमे में चले जाने के बाद राजद विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी। एआईएमआईएम के विधायकों के टूटने के बाद ओवैसी को बड़ा झटका लगा था। इसके बाद से ही ओवैसी की पार्टी राजद पर लगातार हमलावर है। अब असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम बिहार में मुस्लिम वोटबैंक पर पकड़ मजबूत कर तेजस्वी यादव की पार्टी राजद को झटका देने की कोशिश में है। गोपालगंज उपचुनाव के नतीजों को देखें तो साफ पता चलता है कि एआईएमआईएम द्वारा मुस्लिम वोटबैंक में सेंधमारी के कारण राजद उम्मीदवार की हार हुई थी। ऐसे में कहा जा रहा है कि आने वाले समय में तेजस्वी के लिए ओवैसी नई चुनौती बनकर उभरने वाले हैं।

यह राजनीतिक मजाक ही सही लेकिन आधा सच भी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) की भाजपा के साथ सांठ-गांठ है और वह केवल उनकी पार्टी का वोट काटती है। रमेश ने यह बात असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के गढ़ हैदराबाद में कांग्रेस की ‘भारत-जोड़ो’ यात्रा पहुंचने पर की। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि एआईएमआईएम को भाजपा से ‘ऑक्सीजन मिलता है’ और बदले में वह भगवा पार्टी को ‘बूस्टर डोज’ देती है।

ओवैसी के गढ़ माने जाने वाले हैदराबाद में कांग्रेस की यात्रा के पहुंचने और भविष्य में ओवैसी की पार्टी के रुख के बारे में पूछने पर रमेश ने कहा कि वह राजनीतिक पार्टी है और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) का हिस्सा थी, पहले वह कांग्रेस का इस्तेमाल करती थी और उसके लिए हमारी पार्टी ऑक्सीजन सिलेंडर थी और अब भाजपा उसके लिए ऑक्सीजन सिलेंडर है। चुनाव के समय बिहार में मुस्लिम वोट को लेकर रणनीति बनाई जाती है। राज्य की कई विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में होते हैं। यानी उनका वोट ही उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करता है। ऐसे में भाजपा को छोड़कर सभी राजनीतिक पार्टियां या गठबंधन मुस्लिम वोट को अपने पक्ष में करने के लिए एड़ी-चोटी का पसाना बहाते रहते हैं। कई बार माय समीकरण दरकता भी रहा है। बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से तीन दर्जन से अधिक सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं। इन क्षेत्रों में मुस्लिम वोटर 20 से 40 फीसदी या इससे भी अधिक हैं। राज्य की 11 के करीब ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम मतदाता 40 फीसदी के करीब है। 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार की कुल आबादी 10409952 है। मुसलमानों की कुल आबादी 16.9 थी।बिहार में मुस्लिम वोटरों की अच्छी खासी तादाद है। राज्य कई लोकसभा सीटों पर अल्पसंख्यक वोटर निर्णायक भूमिका में होते हैं। उनके वोट के आधार पर ही उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला होता है। ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां या गठबंधन मुस्लिम वोट के समर्थन के लिए दिन रात एक करती हैं। राज्य में 2019 के लोकसभा चुनाव का नतीजा,मुस्लिम मतदाताओं की वोट का रुख पर बहुत कुछ निर्भर करता है। राजद मुस्लिम-यादव यानी माई समीकरण की रणनीति के तहत मुस्लिम वोट का झुकाव अपने पक्ष में होने का दावा करती है, तो कांग्रेस और जदयू भी मुस्लिम वोट पर अपना पुरजोर दावा करती है। नीतीश कुमार की सरकार ने अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए न केवल कई योजनाएं चलाई, बल्कि उनकी पार्टी ने एनडीए का पार्ट होते हुए भी अपनी पार्टी में मुस्लिम वर्ग नेताओं को उचित स्थान भी दिया था। बिहार में सर्वाधिक मुस्लिम वोटर वाला लोकसभा क्षेत्र किशनगंज है, यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 67 फीसदी है, वहीं दूसरे स्थान पर कटिहार है, जहां मुस्लिम वोटर की संख्या 38 फीसदी, अररिया में 32 फीसदी, पूर्णिया में 30 फीसदी, मधुबनी में 24 फीसदी, दरभंगा में 22 फीसदी, सीतामढ़ी में 21 फीसदी, पश्चिमी चंपारण 21 फीसदी और पूर्वी चंपारण 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। ओवैसी इनमें से कितने मुस्लिमांे को अपने साथ जोड़ पाते हैं यही देखने की बात होगी।
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