संस्कार, संस्कृति वनाम सभ्यता
डॉ सच्चिदानंद प्रेमी
आज जब टहल कर लौट रहा था तब पुल पर बैठे 18 से 22 वर्ष के कुछ लड़के आपस में बातें कर रहे थे -मोदिया कहिना मरतइ हो ! तंग तंग करके छोड़ देलकइ हे । कुछ संभ्रान्त लोग वहीं बैठे सुन रहे थे जिनमें मैं भी था जो उनका उत्तर दिए बिना या बिना उनसे पूछे आगे बढ़ गया ।
मोड पर चाय की दुकान में एक कप चाय की प्याली में तूफान मचा हुआ था ।चाय की प्याली अधर से लगी थी या नहीं, नहीं कहा जा सकता परंतु क्रोध में आंखों की लाली अधरों पर अवश्य उतर आई थी -मोदी है तो मुमकिन है ।
पान का तीसरे बीड़े की आहुति अपने मुख गुहा कुण्ड में समर्पित करते हुए नागो चा ने निष्पक्ष भाव से कहा- कोउ नृप होउ हमें का हानी !परंतु दाबत्त गज बदन जी ने खिलाया है तो हमें तो उनका साथ देना ही पड़ेगा । भले ही वे सर्वजन दुखाए एवं सर्वाधिक जन रुलाए ही क्यों न हों !
भारत गाँवों का देश है परन्तु इसकी सभ्यता शहरी हो गई है। गाँव अब गाँव नहीं रहे ।कुछ लोग ऐसा भी कहते सुने जाते हैं कि शहर से ऊब कर लोग गाँव में जा रहे हैं। मेरा मानना है कि वे गाँव में नहीं जा रहे हैं बल्कि गाँव की तड़पन को शहर की सभ्यता से शान्त करना चाहते हैं ।
गाँव गाँव होता है। गाँव में जातियाँ होती हैं, संप्रदाय भी होता है, बड़े भी होते हैं, छोटे भी होते हैं ,कुछ दोस्त भी होते हैं ,कुछ दुश्मन भी होते हैं ,सब कुछ होता है ,परंतु सभी मणिकाएँ एक सूत्र में गुंथी होती हैं इन्हें प्रेम कहा जाता है ।इसी प्रेम से रिश्ता जुड़ता है ।
बाबा- दादी ,चाचा -चाची ,भैया- भौजी ,दीदी -जीजा ये नहीं तो किसी संप्रदाय के हैं नहीं किसी जाति विशेष के । ये सभी विषमताओं के होते हुए गाँव के धरातल पर आपसी प्रेम और मर्यादा से सने हुए सुगंधित -सम्बन्ध होता है जो लाज लिहाज के साथ इतना प्रबल और गाढ़ा होता है कि इसके आधार पर दूसरे गाँव से झगड़े हो जाया करते हैं, यही गाँव होता है। जहाँ यह नहीं है वह गाँव नहीं है ,वही शहर है ।
उस वार मुंबई जब गया तो सोचा मिस्टर गायक भारत -प्रसिद्ध गायक है, कहीं भी पूछने पर कोई उनके बारे में बता ही देंगे जैसे गांव में बता देते हैं ।उन्हें खोजता हुआ मैं मुहल्ला तो ढूँढ़ पाया ।घर घर ढूँढ़ा,पता नहीं चला ।संयोगवस घुनाक्षर न्याय से ठीक उनके बगल वाले घर तक पहुँच गया । बगल वाले से पूछा, उन्होंने कहा कि मिस्टर गायक तो अंतरराष्ट्रीय स्तर के गवैया हैं, मैं उन्हें जानता हूँ, पर क्या वे यहीं रहते हैं ?
मैं ने माथा ठोका - हे भगवान् ! अंतरराष्ट्रीय गवैया की यह गति ! मैं तो निराशा को गोद में लेकर लौटने की तैयारी ही कर रहा था कि वे मुड़ेड़ पर से झांकते हुए दिख गए ।उन्होने बड़े प्रेम से पूछा-किसको खोज रहे हो भैया?एक स्वरलहरी गूंज गई-जिसको खोज रहा तू बन्दे वो तो तेरे पास मैं। फिर क्या था ,
मैंने नीरज जी का परिचय देकर उनसे मिला। यह परिचय है शहर का।
इसी तरह इस बार लौटते समय एक निर्जन स्थान में गाड़ी खराब हो गई। बहुत प्रयास के बाद भी ठीक नहीं हुई ।हम लोगों को पता चला कि बगल में ही एक गाँव है ।गाड़ी को चालक के भरोसे छोड़ कर गांव में चला गया । पता चला कि उस गांव का एक व्यक्ति शिक्षक हैं । हो सकता था उनको मैं जानूँ या वे मुझे जानें।परन्तु पता चला कि संजोग से वे गाँव से बाहर गए हुए हैं । उनसे मुलाकात नहीं हो सकी ।संयोग ठीक नहीं समझ कर मैं लौटने लगा । गांव वालों ने मुझे घेर लिया और क्या कहें ,ऐसा स्वागत किया कि मैं ह्रदय हार कर लौटा ।दूसरी गाड़ी से भेज दिया और गाड़ी बनवा कर मेरे पास भेजा, मैं जब राशि देने लगा तो कहा -इसमें कुछ सामान नहीं लगा है ,मात्र सफाई और मिस्त्री का काम था ,वह खर्चा हमारे गाँव वालों ने अपने बल पर उठा लिया ।यह है गाँव ।
हमारे गाँव में घर के ठीक बगल में रामधनी चाचा का घर था।वे परम्परा के अनुसार चाक चला कर घड़े ,दीये ,सुराही भी बनाते और कपड़े भी ।दोपहर में घर से बाहर जाने की आजादी नहीं थी।घर की छत से उनका ठोक-ठोक कर घड़ा बनाते देखता था ।एक दिन किसी तरह छुपते छुपाते घर का ड्योढ़ी लांघ
गया ।उनके पास पहुंचा ।वे चाक चला रहे थे और उसी समय चाक पर मिट्टी डाले ही थे ,मैं वहाँ पहूँचा और उनकी थापी उठाई । वे देखते ,तब तक अपनी सोई हुई प्रतिभा का प्रदर्शन छण भर में कर दिया । वे चिल्लाते हुए चाक छोड़कर दौड़े तबतक तो चार- पांच घड़े को थपथपा कर बड़ा कर दिया था । आय बउआ ! ई का कयलऽ ,ई तो सब गगरिए फोड़ देलऽ ! मेरा हाथ पकड़े हुए बोल रहे थे । मुझे अपनी सफाई देने का मौका मिला और मैं ने कहा कि मैं तो उनके काम में हाथ बटाने गया था ।सुनकर वे हँसने लगे ।उन्होने बड़े प्यार से कहा - सबके अपन अपन काम होबऽ हे बऊआ ,सब कोई सब काम नऽ कर सके । अब जा घरे। ई दुपहरिया में तू आ कइसे गेलऽ ।मैं उसी प्रकार सिर पर भय और डर को लादे घर का दरवाजा खोला, अंदर आया, सभी लोगों को सोया देखकर राहत की सांस ली ।यह है गाँव ।
गर्मी की दुपहरी बड़ी याद आती है ।छुट्टियों में सभी शिक्षक गाँव आ जाते थे । संभ्रान्त शिक्षकों एवं अन्य लोगों की एक टोली बनी हुई थी ।वह घर से मुझे भी बुला कर ले जाते थे। अमझोरे की पार्टी होती थी । किसी के बगीचे के आम का चुनाव होता ,किसी के घर से जीरा नमक मिर्चा दियासलाई ,तो कहीं से हाँड़ी हम जुड़ा बनाने का बर्तन कहीं से बाल्टी रस्सी आदि की व्यवस्था होती है पूर्व चयनित बगीचे में लोग जमा होते हैं हम तोड़ा जाता पत्तों को जमा कर पकाया जाती, कुल मिलाकर अमझोरा तैया होता ।बर के पत्ते का दोना बनता ,समय के अनुसार छक- छक कर लोग पीते। कोई अनजान व्यक्ति भी आ जाता तो वह भी उसका स्वाद भरपूर लेता था। क्या था गाँव !
गाँव में अगुआ आता था अपनी बेटी ब्याहने ।गाँव की बेटी व्याही जाती थी दूसरे गाँव में।गाँव के संस्कार-संस्कृति ,रीति- रिवाज ,कुल-खानदान ,रहन -सहन ,खान-पान आगत- स्वागत सब देखा जाता था । विवाह की धूम पूरे गाँव में होती थी । दोनों गाँव सभी लोग रिश्तेदार हो जाते थे ।शादी-विवाह के अवसर पर भोजन गीत की परंपरा थी। वह गीत क्या था -मधुर मधुर गारी होती थी ।खाने का आसन बिण्डी होती थी ।जैसे ही बारात वाले लोग आंगन में आते और गाली शुरू हो जाती थी, गालियों की बौछार होती थी, तरह-तरह की गालियाँ गाई जाती थीं ।इससे भोजन का स्वाद और बढ़ जाता था ।
खाने वाले बड़े आनन्द से प्रेम- प्रसाद पाते थे ।कहते हैं कि त्रिलोकी नाथ राम जी को भी,चक्रवर्ती महाराज दशरथ जी को भी और गुरु महर्षि वशिष्ट जी को भी मिथिला में ऐसी गारी का आनन्द भरपूर मिला था ।
आज हमारी सभ्यता विकसित हुई है या विकृत हुई है ,इसका निर्णय स्वयं किया जा सकता है । किसी भी संस्कार ,पर्व ,तिथि पर सारा गांव आनंदित होंता था वहाँ आज किसके यहाँ क्या हो रहा है यह बहुत लोग जान भी नहीं पाते । तरह तरह की बृतियों- कुरीतियों का साया थामकर संस्कार लम्बित हो रही हैं ।जहाँ चूड़िहारिन , दहिहारिन आदि की सहायता से विवाह पूर्ण लड़कियों का पता लगाया जाता था ,कुल खानदान देखा जाता था , वहाँ अब शादी के पूर्व कन्या निरीक्षण के वहाने रिंग शिरोमणि और फिर प्रीवेडिंग ऐसी कुरीतियाँ आ गई हैं। इसके फलस्वरूप समाज में तरह-तरह की घटनाएँ घट रही हैं ।लिव इन रिलेशनशिप इन्हीं कुरीतियों का प्रतिफल है ।भोजन वस्त्र शिक्षा रहन-सहन हम सब विदेशी पसन्द करने लगे तो फिर संस्कार भारतीय कैसे रहेगा !उसके साथ घटनाएँ भी विदेशी ही होंगी और उसे स्वीकार करना होगा। आए दिन दिल दहलानेवाली अमर्यादित अशोभन अतिनिन्दनीय घटनाएँ इसी का प्रतिफल है । इसमें एक पक्षीय दोस पर ही विचार नहीं किया जा सकता बल्कि नारी स्वतंत्रता की जगह स्वच्छंदता भी विचारणीय है ।यहाँ एक स्त्री की मर्यादा नहीं ,भारत की मर्यादा खंडित हो रही है ।इस पर ज्यादा चर्चा ठीक नहीं है परंतु समाज को आईना दिखाने का काम तो करना ही पड़ेगा ।
आइए हम फिर से भारत को भारत बनाएँ, सभ्यता संस्कृति संस्कार को मूल्यवान समझकर उसका मूल्य ढूँढें और आर्ष ग्रन्थों का अनुसरण करें ।हमारे ग्रन्थ व्यापक हैं,ज्ञापक हैं ;हम उनके कारक बनें।
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