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नहीं जाना दुनियाँ को

नहीं जाना दुनियाँ को

किसी के दर्द को तुम
कभी मेहसूस करो तुम।
तो जिंदगी की सच्चाई
तुम्हें समझ आयेगी।
तभी तुम दुनियाँ को
सही में जान पाओगें।
फिर हो सकता की तुम
खुदको पहचान पाओगें।।


बहुत जालीम है लोगों
हमारी ये दुनियाँ।
जिसे अबतक कोई भी
सही में जान नहीं पाया।
जो देखा देखी में अक्सर
बहक जाया करते है।
बड़ी मुसीबत में वो ही
उलझते चले जाते है।।


नहीं छोड़ा जमाने ने
बड़े बड़े विद्वमानों को।
न छोड़ा उस विधाता को
बनाई जिसने ये दुनियाँ।
तभी तो राम को भी
उठाना पड़ा था कष्ट।
जिसे हम सब कथाओं में
आज तक पढ़ रहे है।।


जय जिनेंद्रसंजय जैन "बीना" मुंबई
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