गुजरात में चुनाव तारीख पर सियासत

गुजरात में चुनाव तारीख पर सियासत

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
चुनाव आयोग ने 14 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान कर दिया है। हिमाचल में 12 नवम्बर को मतदान होगा। इस दौरान अनुमान लगाया जा रहा था कि गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों का भी ऐलान साथ ही किया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पिछले महीने कहा था कि केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ कराने से चुनाव पर किया जाने वाला खर्च बचाया जा सकता है। इसके साथ ही बार बार होने वाले चुनाव के चलते जो प्रशासनिक व राजनीतिक अस्थिरता आती है उस पर भी रोक लगेगी। आयोग ने सिर्फ हिमाचल के चुनाव की तारीख का ऐलान किया, यह आश्चर्यजनक था, क्योंकि दोनों राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल छह महीने के भीतर समाप्त हो रहा है। ऐसे मामलों में चुनाव आयोग एक साथ ही संबंधित राज्यों में चुनावों की तारीखों की घोषणा करता है और परिणाम भी एक ही दिन घोषित किए जाते हैं। चुनाव की तारीख घोषित होते ही आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है। विपक्षी दल गुजरात को लेकर यही आरोप भी लगा रहे हैं कि चुनाव आयोग ने केन्द्र सरकार के दबाव में आकर ऐसा फैसला किया है । केन्द्र सरकार कोई जवाब देती, उसके पहले चुनाव आयोग ने ही सफाई दे दी है। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि हिमाचल प्रदेश चुनाव के लिए मतगणना आठ दिसंबर को होगी और लोकतंत्र के त्योहार में मतदाताओं की अधिक से अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए व्यापक इंतजाम किए गए हैं। गुजरात चुनाव की तारीखों के सवाल पर राजीव कुमार ने कहा, चुनाव आयोग चुनावों की घोषणा करने के लिए परंपरा के अनुसार चलता है। आयोग ने उस अधिनियम को अपनाने का फैसला किया है. जिसका आखिरी बार पालन किया गया था। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक राज्य में चुनाव दूसरे में चुनाव को प्रभावित नहीं करेंगे, क्योंकि हिमाचल प्रदेश और गुजरात की विधानसभाओं के कार्यकाल की अंतिम तारीखों में 40 दिनों का अंतर है। यह पूछे जाने पर कि क्या गुजरात के लिए मतगणना भी आठ दिसंबर को होगी। कुमार ने कहा, जब हम गुजरात के लिए यहां आएंगे, तो हम आपको यह बताएंगे। हिमाचल प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल 8 जनवरी 2023 को समाप्त हो रहा है वहीं गुजरात विधानसभा का कार्यकाल 18 फरवरी, 2023 तक है। हालांकि, माना जा रहा है कि नवंबर-दिसंबर की अवधि में ही गुजरात में चुनाव कराना अभी भी संभव है, ताकि वोटों की गिनती हिमाचल प्रदेश के साथ ही की जा सके, जैसा कि 2017 में हुआ था।

विपक्षी नेताओं का आरोप है कि गुजरात चुनावों की घोषणा बाद में करने से मौजूदा सरकार को आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले और अधिक कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने का अवसर मिल जाएगा। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, जाहिर तौर पर यह प्रधानमंत्री को कुछ बड़े वादे करने और उद्घाटन करने के लिए और समय देने के लिए किया गया है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। संभव है कि गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान भी इन पंक्तियों के प्रकाशित होने से पहले हो जाए। राज्य में विधानसभा की कुल 182 सीटें हैं। पिछले 24 साल से राज्य में भाजपा की सरकार है। ऐसे में सबकी नजर इस बार के चुनाव पर टिकी हैं। इस बार गुजरात में क्या कोई बदलाव होगा या भाजपा का जादू बरकरार रहेगा? राज्य में हमेशा कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला होता था। इस बार आम आदमी पार्टी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में लगी हुई है। गुजरात में पिछली बार दो चरणों में चुनाव हुए थे। 25 अक्टूबर 2017 को चुनाव तारीखों का एलान हुआ। पहले चरण के लिए 14 नवंबर को अधिसूचना जारी हुई थी और दूसरे चरण के लिए 20 नवंबर को। पहले चरण का चुनाव नौ दिसंबर 2017 और दूसरे चरण का चुनाव 14 दिसंबर को हुआ था । पहले चरण में 89 और दूसरे चरण में 93 सीटों पर वोटिंग हुई थी। 24 साल से गुजरात की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी ही काबिज है, लेकिन इस बार समीकरण बदले नजर आएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि दिल्ली और पंजाब जीतने के बाद आम आदमी पार्टी ने गुजरात में भी पूरी ताकत लगा दी है। ऐसे में मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है।

कांग्रेस में 2017 के कई बड़े चेहरे इस बार पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं। इसमें सबसे बड़ा नाम हार्दिक पटेल का है। हार्दिक ने हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा जॉइन कर ली है। 2017 में हार्दिक ने गुजरात में पाटिदार आंदोलन करके बड़ा नाम कमाया था। उनके साथ जिग्नेश मेवानी जैसे कई युवा कांग्रेस के साथ जुड़ गए थे। अब हार्दिक भाजपा में शामिल हो चुके हैं। भाजपा के मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल सीएम पद की रेस में सबसे आगे हैं। अगर भाजपा चुनाव जीतने में कामयाब होती है, तो भूपेंद्र भाई पटेल को फिर से मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। 2017 में भी ऐसा ही हुआ था। चुनाव से 15 महीने पहले विजय रूपाणी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था। उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव हुए थे और पार्टी ने जीतने के बाद उन्हें फिर से सीएम बनाया था। उधर, जगदीश भाई मोतीजी ठाकोर गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। जगदीश भाई भी कांग्रेस की तरफ से सीएम पद की रेस में हैं। हालांकि, अभी पार्टी ने किसी भी नाम का एलान नहीं किया है। जगदीश भाई के अलावा कांग्रेस सांसद शक्ति सिंह गोहिल, जिग्नेश मेवानी व कुछ अन्य नेता भी इस दौड़ में शामिल हैं।

आम आदमी पार्टी ने इसबार गुजरात विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है। आप के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया भी सीएम पद की रेस में हैं। अगर आम आदमी पार्टी को जीत मिलती है तो गोपाल इटालिया पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं। गोपाल इन दिनों काफी विवादों में हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कथित रूप से अपशब्द का प्रयोग किया। इसके बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया था। गुजरात में पिछले दो साल से राष्ट्रीय स्तर पर किसानों का मुद्दा भी हावी है। कृषि कानून के बाद से इसमें ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। गुजरात में भी ये बड़ा मुद्दा बन रहा है। विपक्ष का आरोप है कि भाजपा सरकार उद्योगपतियों का कर्ज माफ कर रही है, लेकिन किसानों का नहीं। इसी को लेकर विपक्ष लगातार सरकार को घेरने में जुटा है। चुनाव रैलियों के दौरान विपक्ष बेरोजगारी का मुद्दा उठा सकता है। युवाओं में रोजगार के कम अवसर की वजह से असंतोष की बातें में लगातार की जा रही हैं। भर्ती परीक्षाओं में देरी का भी मुद्दा हावी रह सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर महंगाई का मुद्दा हावी है। इसका असर गुजरात चुनाव में भी देखने को मिलेगा। अभी से विपक्षी दलों के नेता महंगाई पर सरकार को घेरने में जुटे हैं। पेट्रोल-डीजल की कीमतों, सब्जियों और खाद्य पदार्थों की महंगाई को लेकर भी सरकार निशाने पर है। भाजपा ने विकास, राष्ट्र सुरक्षा, आम लोगों की सहूलियत, गरीबों-किसानों को मजबूत बनाने के मुद्दे पर चुनावी मैदान पर उतरने का फैसला लिया है। भाजपा हर जगह अपने विकास कार्यों की गिनती करा रही है। एम्स, आईआईटी जैसे राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों को बनाने की बात कह रही है। हाईवे, पुल, अंडर ब्रिज, टनल, मेट्रो जैसे अन्य कार्यों को बताकर लोगों से भाजपा के पक्ष में वोट करने की अपील की जा रही है।
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