गाँधी के पदचिह्नों पर अब, देश नहीं चलना चाहता

गाँधी के पदचिह्नों पर अब, देश नहीं चलना चाहता,

अत्याचारी का अत्याचार, सहन नहीं करना चाहता।
मन्दिर में क़ुरान की बातें, मस्जिद में हिन्दू पर आघातें,
बँटवारे की उन शर्तों पर, देश नहीं झुकना चाहता।


पहन लँगोटी आडम्बर की, महलों में विश्राम किया,
दूध पिया जिस बकरी का, खाने को बादाम दिया।
नैतिकता की बलि चढ़ाकर, ब्रह्मचर्य प्रयोग किये,
निज स्वार्थ में गाँधी तुमने, सनातन पर ही घात किया।


अंग्रेजों से कब कब तुमने, बैर कहाँ कहाँ ठानी,
पटेल सुभाष से नेताओं की, बात कभी नहीं मानी।
थोप दिया जवाहर लाल को, पटेल को धोखा देकर,
मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति, भारत ने अब जानी।


फिर भी कुछ तो बात थी तुममें, राष्ट्रपिता बन कर बैठे,
निज घर को सँभाल सके ना, राष्ट्रपिता बन कर बैठे।
निज बेटी से व्यभिचार कर रहे, तेरे अपने ही बेटे थे,
कभी बात पर अडिग रहे ना, राष्ट्रपिता बन कर बैठे।

अ कीर्ति वर्द्धन
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