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ऑख को कर गई है सजल चाँदनी

ऑख को कर गई है सजल चाँदनी

बिन तुम्हारे ना होती गज़ल चाँदनी
और दिखता नहीं कोई हल चाँदनी 

मेरी तन्हाई  गुमसुम रही  रात फिर
ऑख को कर गई है सजल चाँदनी 

साथ देने का वादा किया रात दिन
दूर  जब से  गई हो  बदल  चाँदनी 

मिल सितारों से तुम खिलखिलाने लगी
मुझसे  कहती  अकेले  टहल चाँदनी 

हॅसते गाते  हुए  गुनगुनाता था मन 
अब वो करता नहीं है पहल चाँदनी 

दिल से तुमने  सजाया-संवारा जिसे 
छोड़  करके  गई हो  महल चाँदनी 

'जय' तो भूले नहीं दिन  पुराने अभी
याद के रोज खिलते  कमल चाँदनी
                      *
~जयराम जय
पर्णिका,बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,
कल्याणपुर,कानपुर-208017 (उ०प्र०)
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