हमारी संतुलित विदेश नीति

हमारी संतुलित विदेश नीति

(बृजमोहन पन्त-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
किसी देश की विदेश नीति ऐसी होनी चाहिए जो विश्व के सभी देशों से मधुर सम्बन्ध करने में सहयोग दे और पारस्परिक सहयोग व सहअस्तित्व के आधार पर अपनी विदेश नीति तैयार करे। कोई देश चाहे सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक रूप से कितनी ही अलग हो विदेश नीति का इससे कोई लेना-देना नहीं होता है।

विश्व के सभी देश सांस्कृतिक व संगीत के आदान-प्रदान, हथियारों, सैन्य सामग्रियों, औद्योगिक, शैक्षिक, व्यापारिक दृष्टि से एक दूसरे पर निर्भर हैं। भारत को अपने वैज्ञानिक, औद्योगिक, व्यापारिक व शैक्षिक कार्यकलापों के सफलतापूर्वक संचालन के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। अगर कोई देश किसी वस्तु का अधिक मात्रा में निर्माण करता है तो उससे उस वस्तु का देश में आयात होता है। अनाज, फल सब्जियां, जड़ी बूटियांे व औषधियों को हम बाहर भेजते है और आवश्यकता पड़ने पर अन्य देशांे से मंगाते भी हैं। तेल की कीमतें अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर तय होती हैं। हमें कच्चे तेल के लिए अन्य देशों पर निर्भर हैं। अगर देश मे अनाज का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में नहीं होता तो हमें बाहर से मंगवाना पड़ता है। ताकि मांग के अनुसार आपूर्ति सुनिश्चित हो सके। अन्तरराष्ट्रीय संबंध कुपोषण समाप्त करने में सहायक हैं।

रूस यूक्रेन युद्ध में भारत ने गेहूं व अन्य चीजें यूक्रेन भेजी थी। रूस से भी भारत के मधुर सम्बन्ध है। इसको भी बनाये रखना है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था बिगड़ने से उत्पन्न स्थितियों से निपटने के लिए भारत को श्रीलंका की मदद करनी पड़ी। नेपाल में भूकम्प व आपदा प्रभावित क्षेत्रों में मदद के लिए भारत ने सेना व खाद्य सामग्रियां भेजी। भारत में पाकिस्तान से भी व्यापार होता है। चीन के साथ शैक्षिक, औद्योगिक, व्यापारिक व प्रौद्योगिक संबंधी हमारे सम्बन्ध समाप्त नहीं हो सकते। चीन के पास अत्याधुनिक तकनीक है। इलैक्ट्रोनिक स्पेयर पार्टस के लिए हम अभी चीन पर निर्भर है। भारत में बना माल चीनी स्पेयर पार्टस के साथ ‘‘मेड इन इण्डिया’’ के नाम से बिकता है।

अपनी व्यापारिक चतुरता से चीन ने सारे विश्व में अपना व्यापार बढ़ा रखा है। यदि चीन किसी देश से व्यापारिक सम्बन्ध विच्छेद कर दे तो देश में सम्बन्धित वस्तुओं की किल्लत शुरू हो जायेगी। इसलिए सभी देश चीन से व्यापारिक संबंध बनाये रखते हैं। इस कारण युद्ध व तनाव के बीच व्यापारिक गतिविधियां जारी रहती हैं।

भारत की विदेश नीति कितनी सफल है। इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने इसकी सराहना की है। उन्होंने अपने मुल्क की विदेश नीति की आलोचना की है जिस कारण उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। मुल्क में सभी वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही है। जनाक्रोश चरम सीमा पर है।

भारत की सफल नीति की मिसाल यह है कि उसके अमेरिका से अच्छे सम्बन्ध हैं। हमारे रूस से भी सौहार्दपूर्ण संबंध हैं।

भारत व अमेरिका के बीच राजनयिक, सैन्य, औद्योगिकी व शैक्षणिक, वैज्ञानिक इंजीनियरिंग क्षेत्र में सहयोग है। अमेरिका में भारतीय अपनी प्रतिभा व योग्यता का डंका बजा रहे हैं। इंजीनियर्स, रिसर्च स्कालर्स, प्रोफेसरों, वैज्ञानिकों व प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों व डाक्टरों की मदद के बिना अमेरिका विकास नहीं कर सकता। वहां स्किल्ड को बेहतर पैकेज मिलता है। अमेरिका चाहता है कि भारतीयों की बुद्धि, योग्यता, प्रतिभा व अनुभव का पूर्ण उपयोग किया जाये।

अरब देशों से भारत के अच्छे सम्बन्ध हैं। अरब देश तेल निर्यातक देश हैं। भारत व अन्य सभी देशों को कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए अमेरिका, रूस व अरब देशों की मदद लेनी होती है। इस कारण देश में तेल के मूल्यों में अधिक वृद्धि नहीं होती है। राजनयिक कुशलता के बदौलत हमारी अर्थव्यवस्था प्रगति की ओर अग्रसर हैं। हम अन्य देशों की सहायता से कई क्षेत्रों में प्रगति कर रहे हैं।

नेपाल हमारा पड़ोसी देश है। इससे हमारे सांस्कृतिक, आर्थिक व्यापारिक सम्बन्ध हैं। भारत के लिए नेपाल का सामरिक महत्व है। भारत जल विद्युत परियोजनाओं में नेपाल की मदद कर रहा है। नेपाल से भी ऊनी वस्त्र, कम्बल व औषधियों, इलैक्ट्रोनिक का व्यापार होता है

कुल मिलाकर भारत की विदेश नीति सफल कही जा सकती है। भारत की अर्थव्यवस्था की अमेरिका व अन्य देशों ने सराहना की है। भारत के रक्षा व व्यापार के क्षेत्र में सम्बन्ध हैं। भारत की विदेश नीति पारस्परिक सहयोग व सह अस्तित्व पर आधारित है। विदेश नीति में बेहतर संतुलन है।

भारत विकसित देशों से तकनीकी मदद ले रहा है। सैन्य व व्यापार के क्षेत्र में विकास की ओर अग्रसर है। भारत ने कोरोनाकाल में अपनी अर्थव्यवस्था का कुशल ढंग से संरक्षित किया विदेशी मुद्रा भण्डार बढ़ा। भारत ने कोरोना वैक्सीन द्वारा दूसरे देशों की मदद की है। भारत आगे भी सभी देशों से मधुर व सौहार्दपूर्ण संबंध बनाये रखेगा, ऐसी आशा है। विश्व में भारत अपनी शक्ति व योग्यता का परिचय देने में सक्षम साबित होगा और विश्व का एक शक्ति सम्पन्न राष्ट्र होगा।

नेपाल के विदेश सचिव भरत राज पौड्याल अगले हफ्ते भारत दौरे पर जाएंगे। इस दौरान वह अपने भारतीय समकक्ष विनय मोहन क्वात्रा के साथ द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत करेंगे, जिसमें दोनों देशों के बीच बहुआयामी सहयोग से जुड़े सभी मुद्दे शामिल हैं। नेपाल के विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि 13 से 14 सितंबर के बीच अपनी दो दिवसीय भारत यात्रा पर पौड्याल अप्रैल और मई में नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेपाल दौरे के दौरान घोषित पहलों पर हुई प्रगति की समीक्षा भी करेंगे। उनका 15 सितंबर को काठमांडू लौटने का कार्यक्रम है।

मई में प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल के लुंबिनी का दौरा किया था, जिसे गौतम बुद्ध की जन्मस्थली माना जाता है। लुंबिनी में उन्होंने नेपाल के प्रधानमंत्री के साथ मिलकर बौद्ध विहार की आधारशिला रखी थी, जिसका निर्माण भारत के सहयोग से किया जा रहा है। द्विपक्षीय बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने शिक्षा और सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग के लिए छह समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए थे।

भारत के सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे की नेपाल यात्रा हाल ही में समाप्त हुई है। इस दौरान उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों को और बढ़ावा देने के तरीकों पर देश के शीर्ष असैन्य और सैन्य नेतृत्व के साथ व्यापक बातचीत की थी। नेपाल भारत का एक अहम पड़ोसी है। अपनी भौगोलिक स्थिति, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व तथा आर्थिक संबंधों के चलते नेपाल भारत की विदेश नीति में एक विशेष अहमियत रखता है। नेपाल पांच भारतीय राज्यों-सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के साथ कुल 1,850 किलोमीटर से अधिक की सीमा साझा करता है। वह माल ढुलाई और विभिन्न सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भारत पर बहुत अधिक निर्भर है।
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