माँ चरणों में प्रभु का वास

माँ चरणों में प्रभु का वास

तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा
पर प्रभु दर्शन नहीं मिल पाये है। 
किये थे पूर्व जन्म में अच्छे कर्म। 
इसलिए मनुष्य जन्म तुम पाये हो।। 
तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा..। 

तुझसे पहले कितने भक्तगण
यहाँ आकर देखो चले गये। 
पर वो भी शायद प्रभु के दर्शन
बिना ही यहाँ से लौट गये। 
वो भी मनुष्य पर्याय को पाये है
तू भी मनुष्य गति को पाये हो। 
पर लगता तुम्हारी श्रध्दा भक्ति में
कुछ तो कमी जरूर रही गई।। 
तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा...।

एक दिन एक भविष्य वाणी को
सुनकर तू ह्रदय घात को सह गया। 
तेरी आत्मा उन शब्दो को सुनकर
अंदर ही अंदर से हिल गई। 
तू यहाँ वहाँ क्यों भटक रहा
हे अज्ञानी मानव तू सुन। 
तेरी ही घर में प्रभु है और
तू यहाँ वहाँ उन्हें खोज रहा।। 
तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा...।। 

कहते है माँ के चरणों में
चारों धाम के तीर्थ है। 
जो माँ की सेवा करते है
वो ही सुख संमति पाते है। 
जो माँ के दिलको दुखते है
वो निश्चित ही नरक में जाते है। 
तो तू क्यों मानव जीवन को
व्यर्थ में यू ही गमा रहा।। 
तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा
पर प्रभु दर्शन नहीं मिल पाये है।
तेरे ही माँ के चरणों में तुझे
अब प्रभु दर्शन मिल जायेंगे।। 


जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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