अदालत

अदालत

अदालत यानी जहां न्यायिक प्रणाली से फैसला होता है ।इसे ईश्वर का मंदिर भी कहा जाता है ,जहां ईश्वर स्वयं मुख्य न्यायाधीश के रूप में विराजमान रहते हैं और अन्य न्यायाधीश उनके पार्षद के रूप में न्यायिक प्रणाली को संभाले रहते हैं । इसका स्तर ग्राम चौपाल ग्राम कचहरी ग्राम पंचायत आदि निचले स्तर से शुरू होकर लोअर कोर्ट हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक फैला हुआ है ।पहले छोटे-मोटे झगड़े चाहे वह दीवानी हो या फौजदारी हो उसका निदान ग्रामीण स्तर पर ही हो जाता था । उन दिनों बात बात पर अदालत जाने की नौबत नहीं आती थी ।
उन दिनों जब ग्राम चौपाल में फैसले होते थे तो उसका बहुत बड़ा असर समाज पर पड़ता था । फैसला देने वाले प्रधान भी तब ईश्वर का प्रतिनिधि होने के नाते काफी सूझबूझ के साथ जमीनी स्तर को देखते हुए और समझते हुए फैसला देते थे । इसका एक उदाहरण यहां प्रस्तुत है :-
किसी गांव में गांव का रास्ता एक आम बागान से होकर गुजरता था । आम का सीजन था और आम पकने लगे थे ।कोई राहगीर उस रास्ते से गुजर रहा था और उसने रास्ते पर एक पका हुआ आम पड़े हुए देखा । उसने आम को उठाया और खाने लगा । इतने में बागान मालिक ने उसे देखा और चोरी के जुर्म में उसे पकड़ कर ग्राम कचहरी में मुकदमा चलाया । पंचायत ग्राम चौपाल में बैठी और मुकदमा पेश किया गया । दोनों पक्षों और चौपाल के अन्य सदस्यों को सुनने के बाद विचार विमर्श कर प्रधान ने यह निर्णय लिया कि यह चोरी का मामला नहीं बनता है , क्योंकि उस राहगीर ने आम को चोरी कर बागान मालिक के पेड़ से नहीं तोड़ा है । वह रास्ते से जा रहा था और पका आम रास्ते पर पड़ा देखा । चुकी आम एक लालची फल है अतः वह लालच बस उसे उठा लिया और खाने लगा । प्रधान ने पंचायत में यह भी कहा कि गांव इलाके में फलदार वृक्ष से गिरे हुए फल , खेत में लगा हुआ चने का झंगरी ,खेत में लगा हुआ गन्ने का पौधा आदि, यह सब लालची फल हैं और कोई राहगीर अगर एक फल ,एक गन्ने का पेड़ अथवा एक मुठ्ठी
चने का झंगरी आदि ,
अगर मालिक के अनुमति के बगैर खाने के लिए ले भी लेता है तो वह चोरी अथवा संगीन अपराध की श्रेणी में नहीं आता है । ऐसे व्यक्ति को चोर अथवा अपराधी न करार देते हुए उसे माफ किया जाना चाहिए ।और समाज के प्रधान तथा हमारा भी यह दायित्व ह ।
आज बात बात पर ऊपरी अदालतों की दरवाजा न खटखटा कर समाज में छोटे-मोटे वारदातों के लिए सुझ बुझ और परहेज की आवश्यकता है और
तभी समाज जुड़ा रह सकता है । आज तो आदमी की महत्वाकांक्षा इतनी प्रबल हो गई है कि आज दीवानी , फौजदारी, आर्थिक , सामाजिक , राजनैतिक और धार्मिक आदि मामलों की बाढ़ सी आ गई है और आज हर मामले को उच्चतम न्यायालय तक घसीटा जा रहा है । इनमें धार्मिक और राजनीतिक मामलों की सुनवाई अदालतों द्वारा भी प्राथमिकता के आधार पर किया जा रहा है , जैसा कि समाचार अथवा मीडिया के माध्यम से देखा जाता है । अदालतों के कुछ फैसलों पर तो सामाजिक प्रतिक्रिया परवान चढ़ते जा रही है और ध्वनि तरंगों जैसा उसका असर समाज में दिनों महीनों तक चलते रहता है । इन तरंगों के प्रसारण में विभिन्न दलों के राजनेता और मीडिया वाले कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं और धीरे-धीरे समस्या तिल का ताड़ बनते दिखाई देता है । इसका गहरा असर समाज पर पड़ रहा है और समाज में धार्मिक आधार पर बिखराव होता नजर आ रहा है । आज चाहे वह आम आदमी हो , राजनेता हो , न्यायिक प्रणाली से जुड़ा हुआ कोई व्यक्ति हो या विभिन्न धार्मिक संस्थाओं से जुड़ा हुआ कोई उपदेश दाता हो , सभी का यह कर्तव्य होता है कि इस संभावित बिखराव को देश में होने से रोकने की ओर कदम उठाएं और काफी सुझ बुझ कर वक्तव्य अथवा निर्णय देने की कोशिश करें ताकि देश एकता के सूत्र में बंधा रहे । और समाज तथा देश में शांति व्यवस्था कायम रहे ।
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