बच्चों में नफरत के बीज

बच्चों में नफरत के बीज

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)ं
झारखण्ड के स्कूल सेे एक खबर आयी कि प्रिंसिपल ने मुस्लिम समाज के दबाव के कारण प्रार्थना में बदलाव कर दिया। स्कूल में मुसलमान बच्चों की संख्या ज्यादा है। बताया गया कि वहां के मुस्लिमों ने कहा ‘हमारी आबादी अब 75 फीसदी, इसलिए स्कूल के नियम हम तय करेंगे। प्रिंसिपल ने दयाकर दान विद्या का.... प्रार्थना को बंद करवाकर ‘तू ही राम है, तू रहीम है... प्रार्थना शुरू करवा दी। प्रधानाचार्य का यह भी कहना था कि प्रार्थना के दौरान बच्चे हाथ भी नहीं जोड़ते। उन्हांेने कहा कि मेरे कई बार कहने के बाद भी बच्चों ने हाथ जोड़कर प्रार्थना नहीं की तो मैंने कहना ही छोड़ दिया। बहरहाल, खुशी की बात यह है कि मामला सुलझाने के लिए शिक्षा विभाग के अधिकारी पहुंचे और बच्चों को समझाया कि प्रार्थना करने का सही तरीका यही है। स्कूल में हाथ जोड़कर ही प्रार्थना करनी चाहिए। अधिकारियों के समझाने पर बच्चों ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की और राष्ट्रगान गाया। इससे उम्मीद बंधी कि अभी सुधरने की गुंजाइश है। बच्चों में नफरत के बीज बोये जा रहे हैं, इसका यह एक उदाहरण भर है। मदरसों के बारे में जो कहा जा रहा है, उसमें भी काफी हद तक सच्चाई है। इन दिनों नूपुर शर्मा के मामले को लेकर जिस तरह की कट्टरता और नफरत देश भर में देखने को मिल रही है, उसके बीज भी बच्चों के मन में बोये गये हैं। मदरसों को लेकर केन्द्र से लेकर राज्य सरकारें तक सतर्क हुई हैं और वहां धार्मिक शिक्षा के साथ आधुनिक शिक्षा देने की भी व्यवस्था की जा रही है। उम्मीद है इससे बच्चों में नफरत की जगह सद्भाव के अंकुर निकलेंगे।

झारखंड के गढ़वा जिले के सदर प्रखंड में आने वाले कोरवाडीह में स्थित राजकीय उत्क्रमित विद्यालय में मजहब के नाम पर एक नया विवाद खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। आरोप हैं कि इलाके में बहुसंख्यक आबादी वाले मुस्लिमों ने मनमानी करने की कोशिश की है और उन्होंने स्कूल की प्रार्थना तक बदलवा दी है। मुस्लिम समाज के लोगों पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने प्रार्थना में यह बदलाव सिर्फ इसलिए करवा दिया क्योंकि यहां मुसलमानों की संख्या ज्यादा है। बताया जाता है कि स्कूल के बच्चे सालों से एक ही प्रार्थना करते आ रहे थे। आरोप है कि इस बीच मुस्लिम समाज के लोगों ने कहा कि स्थानीय स्तर पर उनकी आबादी 75 प्रतिशत हो गई है, इसलिए नियम भी उनके मुताबिक ही बनने चाहिए। मुस्लिम समाज के लोगों के दबाव के कारण प्रिंसिपल ने प्रार्थना में बदलाव कर दिया। यहां दया कर दान विद्या का... प्रार्थना को बंद करवा दिया गया था और श्तू ही राम है, तू रहीम है... प्रार्थना शुरू कर दी गई थी। सिर्फ इतना ही नहीं, प्रार्थना के दौरान बच्चों को हाथ जोड़ने से भी मना कर दिया गया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रशासन ने एक बार फिर से नियमानुसार प्रार्थना शुरू करवा दी है। बताया जा रहा है कि मीडिया द्वारा इसकी जानकारी मिलने पर अधिकारियों की टीम सतर्क हुई और विद्यालय पहुंची। अधिकारियों ने गत 5 जुलाई को विद्यालय पहुंचकर इस मामले की गहराई से छानबीन की, जिसमें यह बात सामने आई कि यहां पिछले कुछ सालों से हाथ बांधकर ही प्रार्थना की जाती है। स्कूल के प्रिंसिपल ने बताया कि यहां अधिकतर बच्चे मुस्लिम समुदाय से आते हैं, और यहां जब प्रार्थना होती है, तो बच्चे हाथ नहीं जोड़ते। उन्होंने कहा कि मेरे कहने के बाद भी जब बच्चे नहीं माने तो मैंने कहना छोड़ दिया।

मामले को सुलझाने के लिए स्कूल पहुंचे जिला शिक्षा पदाधिकारियों ने बच्चों को अपने पास बुलाया और उन्हें प्रार्थना करने के सही तरीके के बारे में समझाया। अधिकारियों ने बच्चों को बताया कि स्कूल में हाथ जोड़कर ही प्रार्थना करनी चाहिए। बताया जा रहा है कि अधिकारियों द्वारा समझाने के बाद बच्चों ने हाथ जोड़कर ही प्रार्थना की और राष्ट्रगान गाया।

मुस्लिम बहुल क्षेत्र के स्कूलों का जब यह हाल है तो मदरसे कैसे होंगे? इसीलिए उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के एक फैसले को मदरसों में तालीम के मूल स्वरूप को खत्म करने की कोशिश करार दिए जाने के बीच राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री दानिश अंसारी ने कहा कि उनकी सरकार का एजेंडा इन संस्थाओं में शिक्षा के स्वरूप को बदलना नहीं, बल्कि उसे और बेहतर बनाना है।

अंसारी ने मदरसा शिक्षा का स्वरूप बदलने और उसका मूल उद्देश्य खत्म करने की कोशिश संबंधी आरोपों पर कहा, सरकार ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाने जा रही। सरकार का एजेंडा है कि जो भी छात्र-छात्राएं मदरसों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, उन्हें और बेहतर शिक्षा कैसे मिले, इस दिशा में काम किया जाए। मदरसा बोर्ड द्वारा उर्दू, अरबी, फारसी और दीनियात को अलग-अलग के बजाय एक विषय के रूप में पढ़ाने संबंधी फैसले के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, जो अच्छी चीजें हैं, सिर्फ उन्हें ही लागू किया जाएगा। मदरसा बोर्ड को जहां से अच्छा इनपुट मिलता है, उसे सामने रखा जाता है। कुछ चीजें अभी विचार-विमर्श के दौर में हैं तो उन्हें अंतिम न माना जाए। जो भी अंतिम निर्णय लिया जाएगा, वह आम जनता के हित में ही होगा।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद ने 24 मार्च को हुई अपनी बैठक में फैसला लिया था कि सेकेंडरी (मुंशी/मौलवी) कक्षाओं में अरबी एवं फारसी साहित्य के साथ-साथ दीनियात को शामिल करते हुए सिर्फ एक विषय बनाया जाएगा। वहीं, बाकी विषयों-हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के प्रश्नपत्र अलग-अलग होंगे। उत्तर प्रदेश में कुल 16,461 मदरसे हैं, जिनमें से 560 को सरकार से अनुदान मिलता है। इन मदरसों में 32,827 शिक्षक हैं। वहां उर्दू, अरबी, फारसी और धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ हिंदी, अंग्रेजी, विज्ञान, गणित व सामाजिक विज्ञान विषय भी पढ़ाए जाते हैं। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रमुख कार्यक्रमों का जिक्र करते हुए अंसारी ने कहा, हम मदरसा पाठ्यक्रम का मोबाइल एप्लीकेशन विकसित कर रहे हैं, जिससे मदरसा छात्रों की शिक्षा में और आसानी हो सके। उस एप्लीकेशन के माध्यम से छात्र घर पर भी अच्छी तरह से पढ़ाई कर सकेंगे। अंसारी के मुताबिक, अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम के माध्यम से आईटीआई बनाए जाएंगे। इसके अलावा अस्पतालों और स्कूलों का भी निर्माण कराया जाएगा, ताकि वहां रहने वाले लोगों को सीधा लाभ हो और उनका जीवन स्तर सुधर सके। इसी तरह झारखंड में भी सुधार की जरूरत है। बिहार से अलग बनाये गये राज्य झारखंड में मदरसों को मिलने वाले अनुदान पर 2017 में रोक लगा दी गयी थी। उस समय 183 मदरसों का अनुदान बंद कर दिया गया था जबकि एकीकृत बिहार के समय से मदरसों को अनुदान मिल रहा था। यह उल्लेख इसलिए भी जरूरी था क्योंकि मदरसों को लेकर राजनीति भी ज्यादा होने लगी लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वहां बच्चों को एक दूसरे से नफरत करना सिखाया जाए। झरखंड में जैक बोर्ड की बैठक में जांच रिपोर्ट को स्वीकृति मिली और सितंबर 2021 से मदसों को अनुदान देने का रास्ता भी साफ हो गया। इसलिए वहां स्कूलों और मदरसों में बच्चों को अगर साम्प्रदायिकता का पाठ पढ़ाया जाता है तो सरकार को सख्त कदम उठाने पड़ेंगे। प्रधानाचार्य का भी यह कहने से दायित्व नहीं समाप्त हो जाता कि बच्चे उनकी बात नहीं सुनते।
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