उग आया सांप
---भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र'अणु'
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बडी तादाद में
उग आये हैं यहाँ
सांप
और यहाँ के लोग
बजा रहे हैं
अलग-अलग चैन की वंशी
बैठकर चुपचाप
वो अपनी वामी से निकल
रात दिन मिलाकर
नियम से रोज पांच वक्त
देने अपने लोगों को
अलाप पर अलाप
इधर हमसब
न जाने कहाँ मसगूल हैं
हमें चारा और बेचारा बना दिया
फिर भी झूठी भाईचारा कबूल है
भूलकर अपनी पीडा परिताप
वो काट रहा है अब
खुलेआम निर्पराध मानव को
समझ अपना प्रतिद्वंद्वी
हो निःशंक न कुछ पश्चाताप
अरे ओ मानव
अब जरा ठोक अपना भुजबल
जाकर जहरीले नागों के बीच
दिखा तेजबल
जा उसका फण कुचल
उसकी सारी परिधि माप
नहीं तो उसका जहर
हरते रहेगा प्राण
नहीं तो ये मानव जाति का
मिटाने पर आमाद है प्रमाण
तुम्हे चौकस होकर हर पल
पहचानना होगा पदचाप
यदि आज उसे
नहीं मारोगे तुम
उसके वामी पर घुम घुम
तो रख लो इसे याद
तुमसब हो जाओगे बर्वाद
और लगेगा फिर तुम्हें
अकर्मण्यता का पाप
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