मखौटा देखने को ललायत है
ललायत रहत है अँखियांतुम्हें रोज देखन को।
जो दिख जाएँ तुमरो
सुंदर चेहरा सुबेहरे मुझेखो।
तो दिन मोरो निकलत है
बहोतई नो नो नो सो।
तबाई तो व्याकुल रहात है
मोरी अँखियाँ रोजाई।।
बहोताई मैं सोचत हो
अब तुमरे बारे में।
कैसे लागाऊ दिलखो
अब तुमरे प्यारे दिलसे।
अँखियाँ तो मिलन लगी
हर रोज दोनों की।
बस अब बाकी है
बतिया करन की।।
बहोताई तुम सुंदर हो
और फूलो सी कोमल हो।
एसो लगत है मुझखो
जैसे उतर आई है अप्सरा।
इस नर बस्ती धरा पर
जो चांदनी बिखरी रही है।
पेड़ पौधे जीव जंतु आदि
बोहताई खुश है बगिया के।।
वो बहोतई खुशी सी होकर
आ गई आज वो बगिया में।
मिल जाएँ अगर आज वो तो
मोरे ह्रदय खिल जावे।
और हमरे गीतों की तब वो
प्यार सरगम बन जाएं।
फिर गूँज उठेंगी शाहनाइयाँ
मोहब्बत करने वालो के दिलमें।।
जय जिनेंद्र,संजय जैन "बीना" मुंबई
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