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अमेरिका के एसपीपी में नहीं शामिल होगा नेपाल

अमेरिका के एसपीपी में नहीं शामिल होगा नेपाल

काठमांडू। नेपाल एक बार फिर दो बड़ी महाशक्तियों के बीच फंसा हुआ नजर आ रहा है। चीन से नजदीकी रिश्तों के बीच नेपाल ने अमेरिकी सहयोग से इनकार कर दिया है। नेपाल ने अमेरिका के स्टेट पार्टनरशिप प्रोग्राम (एसपीपी) में शामिल न होने का फैसला किया है, जिसके लिए चीन ने उसकी पीठ थपथपाई है।
चीन ने अमेरिका के स्टेट पार्टनरशिप प्रोग्राम का हिस्सा न बनने के नेपाल के फैसले का समर्थन किया है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि एक दोस्त, नजदीकी पड़ोसी और रणनीतिक सहयोगी होने के नाते चीन नेपाल की सरकार के फैसले की सराहना करता है। उन्होंने कहा, ”नेपाल को उसकी संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने में चीन अपना समर्थन करना जारी रखेगा और स्वतंत्र और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति के प्रति नेपाल की प्रतिबद्धता का समर्थन करेगा। चीन नेपाल के साथ मिलकर क्षेत्रीय सुरक्षा, स्थिरता और साझा समृद्धि की रक्षा के लिए काम करने को तैयार है।”
अमेरिकी दूतावास के मुताबिक एसपीपी के तहत अमेरिकी नेशनल गार्ड और दूसरे देश की संस्था एक-दूसरे की मदद करते हैं। नेशनल गार्ड आपदा की स्थितियों में राहत और बचाव कार्य करता है। ऐसे में नेपाल ने भी इसका सहयोग लेने के लिए एसपीपी में शामिल होने का आग्रह किया गया था।
एसपीपी को अमेरिका और चीन के बीच सैन्य सहयोग भी बताया जा रहा है जिसका लोगों और राजनीतिक दलों दोनों के बीच विरोध देखा गया। विरोध करने वालों का कहना था कि इसका असर नेपाल की गुटनिरपेक्ष और संतुलित विदेश नीति पर पड़ेगा। एसपीपी पर नेपाल में लंबे समय से बहस चल रही थी। हालांकि, नेपाल ने साल 2015 और 2017 में अमेरिका से खुद इसमें शामिल होने का आग्रह किया था। साल 2015 के भूकंप के बाद कई देशों की सेनाओं ने नेपाल को राहत और बचाव कार्यों में मदद की थी। अमेरिका ने साल 2019 में इसे मंजूरी दी थी। उस समय ये बताया गया था कि नेपाल की सेना ने अमेरिकी सरकार को एसपीपी के तहत मदद देने का आग्रह किया है ताकि आपदा प्रबंधन में उससे मदद मिल सके। प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा पर विपक्षी सीपीएन-यूएमएल और अपनी पार्टी का भारी दबाव था। संघीय मामलों के मंत्री राजेंद्र श्रेष्ठ ने भी फैसले के बाद ये साफ भी किया था कि अमेरिकी सरकार को इस फैसले की सूचना दी जाएगी और सभी बातचीत केवल विदेश मंत्रालय के जरिए होंगी। सेना के जरिए की गई सीधी बातचीत सही नहीं है। नेपाल के फैसले से पहले अमेरिकी दूतावास ने भी ट्वीट करके सैन्य सहयोग की बात को गलत बताया था। अमेरिका ने कहा था, ”इसे अमेरिका और नेपाल के बीच सैन्य समझौता दिखाने वाले कुछ जगहों पर प्रकाशित दस्तावेज झूठे हैं।
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