इस बार तो फडणवीस ही जीते

इस बार तो फडणवीस ही जीते

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
महाराष्ट्र में 29 जून की रात में उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया, तब लोगों को 22 नवम्बर 2019 की रात का महानाटक भी याद आया होगा। राज्य में 24 अक्टूबर 2019 को विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो 288 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। उसको 106 विधायक मिले थे। शिवसेना को 56 विधायक मिले थे। दोनों मिलकर आसानी से सरकार बना सकते थे लेकिन शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे शिवसेना की सरकार बनाने पर अड़ गये। पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस भाजपा की सरकार बनवाना चाहते थे। उन्हांेंने सियासी तिकड़म किया और शरद पवार की पार्टी के 35 विधायकों को तोड़कर रातोरात मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। शरद पवार के भतीजे अजित पवार को डिप्टी सीएम बना दिया। इस सरकार को 13 निर्दलीय विधायक भी समर्थन दे रहे थे। राजनीति के सबसे चतुर खिलाड़ी कहे जाने वाले शरद पवार ने फडणवीस की पूरी बाजी पलट दी। शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी की मदद से सरकार बना ली। देवेन्द्र फडणवीस की बहुत किरकिरी हुई थी। उसी का बदला लेने में उनको लगभग ढाई वर्ष का समय लगा और इस बार मोहरा बनाया गया शिवसेना को। शिवसेना के एकनाथ शिंदे महत्वाकांक्षी नेता हैं लेकिन भाजपा ने उनको भी डिप्टी सीएम तक सीमित रखा है। अब देवेन्द्र फडणवीस ने बदला ले लिया। इसके साथ ही लगभग 55 साल की शिवसेना बिखर गयी है। उद्धव ठाकरे की मार्मिक अपील भी बेअसर साबित हुई है। राजनीति में जब निष्ठा ही नहीं बची तो मार्मिक अपील क्या कर सकती है।

उद्धव सरकार के बारे में 29 जून को सुप्रीम कोर्ट ने 30 जून को फ्लोर टेस्ट का फैसला सुनाया, इसके बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। वहीं राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने उद्वव ठाकरे सरकार से बहुमत सिद्ध करने के लिए 30 जून को एक दिन का सत्र बुलाया था लेकिन बाद में अब पत्र जारी कर कहा है कि- जिस प्रयोजन के लिए सत्र बुलाया था उसकी अब जरूरत नहीं । 30 जून को सत्र बुलाने का आदेश स्थगित किया जाता है। ठाकरे के इस्तीफे के बाद राज्य में बीजेपी के सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया है। शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे कुछ भी कहें लेकिन भाजपा परदे के पीछे की बजाए फ्रंटफुट पर आकर खेलने लगी। इसी बीच उद्धव ठाकरे ने एक बार इमोशनल कार्ड खेला। उद्धव ने बागी विधायकों से मार्मिक अपील की। उद्धव ठाकरे ने अपने पत्र में लिखा बीते कुछ दिनों से आप सभी गुवाहाटी में फंसे हुए हैं आपके बारे में हर दिन नई जानकारी सामने आ रही है। आप में से कई लोग मेरे संपर्क में ही है। मैं जानता हूं कि आप अभी भी दिल से शिवसेना में ही हैं। आप में से कई विधायकों के परिजनों ने मुझसे संपर्क किया है। मुझे अपनी भावनाओं से अवगत कराया है। शिवसेना परिवार के मुखिया के रूप में मैं आप सभी की भावनाओं की कद्र करता हूं। परिवार का मुखिया होने के नाते मैं पूरी इमानदारी के साथ आपसे यह निवेदन कर रहा हूं कि अभी भी समय है। आप सब वापस लौट आइए। मैं आप सभी से गुजारिश करता हूं कि आप सब मेरे सामने बैठें और शिवसैनिकों समेत अन्य लोगों के मन में जो भ्रम है, उसे दूर कीजिए। किसी की गलतियों और बहकावे में न आएं... इसका कोई असर नहीं हुआ क्यांेकि इस बार का नाटक बहुत सोच-समझकर खेला जा रहा था

शिवसेना की ओर से हिंदुत्व का मुद्दा अपनाने और बालासाहब की निजी छवि ने महाराष्ट्र के बाहर भी खासकर उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में कई युवाओं को आकर्षित किया था। यूपी में उन्होंने 1991 के चुनावों में अकबरपुर से एक सीट भी जीती। उप्र के स्थानीय चुनावों में भी उसने अपनी मजबूती दर्ज की। एक जमाने में भारतीय जनता पार्टी से बगावत करने के बाद शंकर सिंह वाघेला भी अपने समर्थकों के साथ शिव सेना में आना चाहते थे लेकिन उसमें बाल ठाकरे ने कोई दिलचस्पी नहीं ली। बाल ठाकरे या ठाकरे परिवार को बार बार महाराष्ट्र से बाहर चुनावों में प्रचार के लिए बुलाया जाता रहा लेकिन उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया।

अब 56 साल पहले बनी शिवसेना की सरकार महाराष्ट्र में गिर चुकी है। 09 दिनों के नाटकीय घटनाक्रम के बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया। शिवसेना को अपने 05 दशक से ज्यादा समय की सियासी यात्रा में इतना तगड़ा झटका शायद कभी लगा हो, जैसा इस बार शिवसेना के दोफाड़ होने के साथ ही सत्ता से बाहर होने पर लगा है। निश्चित तौर पर शिवसेना के सियासी भविष्य पर इसने एक बड़ा सवाल लगाया है।

अक्टूबर 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव हुए तो शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। तब शिवसेना को 56 और बीजेपी को 106 सीटें मिलीं थीं लेकिन ये गठबंधन इसलिए टूटा, क्योंकि शिवसेना हर हालत में मुख्यमंत्री की गद्दी चाहती थी। इसी बिना पर शिवसेना ने कांग्रेस और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन बनाया, जिसकी कुल ताकत 169 विधायकों की थी। उद्धव ठाकरे की सरकार ढाई साल से कुछ ज्यादा चल पाई। महाराष्ट्र में चुनाव को अभी 02 साल से कुछ ज्यादा बचे हैं। शिवसेना को अब फिर जनता के बीच जाना होगा। तब ये देखना दिलचस्प होगा कि जनता उसे किस तरह समर्थन देती है। जब बाल ठाकरे जिंदा थे तो राज ठाकरे शिवसेना के दमदार नेता थे। अपने चाचा ठाकरे के दाएं हाथ लेकिन जब पार्टी के सियासी वारिस की बात आई तो बाल ठाकरे ने भतीजे की बजाए बेटे उद्धव को तरजीह दी। बस यहीं से पार्टी में दरार पड़नी शुरू हो गई। ठाकरे के जिंदा रहते ही राज ठाकरे शिव सेना से अलग हो गए। राज ठाकरे ने अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई। लेकिन ऐसा लगता है कि जनता ने उन्हें नकार दिया। मनसे के लिए आगे की राह बहुत मुश्किल है। यहां तक कि मुंबई में बीएमसी चुनावों में ही उन्हें तगड़ा झटका लगा। उनके पास करिश्माई नेताओं का अभाव है, क्योंकि शिवसेना आमतौर पर एक परिवार द्वारा संचालित पार्टी है। ये साफ नजर आने लगा है कि उद्धव ठाकरे के बाद पार्टी की कमान उनके बेटे आदित्य ठाकरे के हाथों में होगी, जो महा विकास अगाड़ी गठबंधन सरकार में मंत्री भी थे। हालांकि शिव सेना को अगले चुनावों में सबसे बड़ी परीक्षा देनी होगी जबकि वो बीजेपी के बगैर अकेले चुनाव लड़ेगी। साथ ही उसे उन नेताओं का भी सामना करना पड़ेगा, जो उससे टूटकर अलग हो गए। चुनावों में उसका गठबंधन कांग्रेस और राकांपा से भी नहीं होने वाला। हालांकि कहना चाहिए कि मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ने एक नई छवि बनाई है। उन्हें पसंद करने वाले लोग रहे हैं। वो पिता के उलट कम बातें करने वाले और शालीन राजनेता हैं। अगला चुनाव शिव सेना के लिए चुनौती भी होगा और एक बड़ा अवसर भी।
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