जिसकी गोद में खेलने को भगवान तरसते हैं

जिसकी गोद में खेलने को भगवान तरसते हैं,

जिसकी आँख से ममता के बादल बरसते हैं।
दुख न मिले माँ को कभी बच्चों की बात से,
माँ के पवित्र आँचल में मेरे पाँव पसरते हैं।
तेरे क़दमों के सहारे चलना सीखा,
तेरी दुवाओं से मैंने बढ़ना सीखा,
दिलाता हूँ भरोसा तुमको ऐ माँ
क़दमों के निशां बनाकर आऊंगा
तेरे प्यार की सौगंध, कुछ कर दिखाऊंगा।
माँ! तुम कहीं भी रहो
तुमको भुला न पाऊँगा ।

चोट लगती थी जब मुझको कहीं
दर्द तेरे चेहरे पर उभर आता था
भूखा न सो जाऊं मैं कहीं
सोचकर तेरा कलेजा भर आता था।
जब भी थक कर चूर होता था
तेरी गोद में आ जाता था।
तेरा प्यार से बालों को सहलाना
नींद के आगोश में चला जाता था।

तेरे जाने के बाद इस जहां से
सोचकर मैं परेशान हूँ
कौन मेरे बालों को सहलायेगा
किसकी गोद में मैं सो पाउँगा?
कौन समझेगा हाले दिल मेरा
किसको मैं दर्द बता पाउँगा?
माँ तुम कहीं भी रहो
तुमको मैं भुला न पाउँगा।

देर हो जाती थी मुझको रात आने में
बैठी रहती थी दीवान खाने में
चौकन्नी हो जाती थी हर आहट पर
निगाहें मुझको ढूंढती हर जाने अन्जाने में।
सोचता हूँ कौन तकेगा अब राह मेरी
मिल नहीं सकता माँ सा प्यार जमाने में।
माँ! तुम कहीं भी रहो, लेकिन
सदा याद रहोगी मेरे अफसानो में।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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