आचार्य श्री से जाने दुनियां
आचार्य श्री से जाने दुनियां,
ऐसे गुरु हमारे हैं I
नयनों में नेहामृत जिनके,
अधरों पर जिनवाणी है ।।
कर का पावन आशीष जिनका,
कंकर सुमन बनाता है I
पग धूली से मरुआंगन भी,
नंदनवन बन जाता है।
स्वर्ण जयंती मुनिदीक्षा की,
रोम रोम को सुख देती I
सारे भेद मिटा, जन जन को,
सुख शांति अनुभव देती।।
आचार्य श्री से जाने दुनियां,
ऐसे गुरु हमारे हैं I
नयनों में नेहामृत जिनके,
अधरों पर जिनवाणी है।।
अकिंचन से चक्रवर्ती तक,
चरण शरण जिनकी आते I
कर के आशीषों से ही बस,
अक्षय सुख शांति पाते I
योगेश्वर भी, राम भी इनमें,
महावीर से ये दिखते I
सतयुग, द्वापर, त्रेता के भी,
नारायण प्रभु ये दिखते I
युग युग तक रज चरण मिले,
यही संजय मन नित मांगे।
आचार्य श्री विद्यासागर का,
सदा हो आशीष मम माथे।।
आचार्य श्री से जाने दुनियां,
ऐसे गुरु हमारे हैं I
नयनों में नेहामृत जिनके,
अधरों पर जिनवाणी है।।
आचार्य श्री से जाने दुनियां,
ऐसे गुरु हमारे हैं I
नयनों में नेहामृत जिनके,
अधरों पर जिनवाणी है ।।
आज अक्षय तृतीया के उपलक्ष्य में उपरोक्त भजन गुरुवर आचार्यश्री विद्यासागर जी के चरणों में समर्पित है।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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