हँसुली के सरधा
रामकृष्ण,गयाजी
ईबात सुनै में जरूर उटपटांग निअन लगऽ हे कि भला हॄसुलिओ दरद पीरा दे सकऽ हे, बाकि हे सच ,सचे नऽ सवा सोलह आना सच। आझ भले हॄँसुली गोड़ाँव जैसन जेवर के मान एकदम से निघटल हे नयका नयका हलकहवा जेवर के आगू ओकर कोई पूछ नऽ त मत रहो तइओ जे पुरनिया आजी ,बूढी मामा के पौती ढुँढ़ाय त उन्हकर जान पश्रान नियन खूबे हिफाजत से कपड़ बाँन्ह के धरल मिलिए जाएत।
जउन घड़ी सोना के सस्ती हल ,माँग से सर के कान ,नाक तक आते आते निघट जा हल फिन तो चाँदिए हल जे गला से गोड़ के बिछिया तक बन के अगराइत रहऽ हल। अब तो नया -नया फैसन चलल हे,तब के न तो बाजू बहुँटा,पहुँची ,बाला कमरधंनी गोड़ाँव ,छाडा ,लरछा सब के दिन उपह गेलो,
आझ भले कोई कुछ से कुछ कहो बाकि पहिले तो नीमन घर में तराजू बटखारा से जोख के लगनमें गुड़हथी के घड़ी गनेसजी के छुआ छुआ के मँड़वा में रखायलगनं हल तखनी भरल अँगंआ देखवैया के आँख। में मटमटी समा जा हल। ई बात हे कि कनेया के सास बन गेलइ पर ऊ सब गहना पौती के सोभा के आगे न जा सकल।
कदमिया तर के मामा(दादी) बड़ी गुनी अउ सब लूर के आगर हलथी,सीए फारे बूटी काढे में उन्हकर गाँवे जे्आरे नाम खिलल हल, हलाकि गाँव के धिया माईं लोग सीखे के नीयत से उनका घेरले रहऽ हलन,,औसो करके गीत नाध सीखे के चाव ऊ घड़ी खूब रहऽ हल ,से उनखा कखनिओं असगरे बइठल कोई न देखलक । गाँव भर के काज परोजन में कउन बिध कइसे होएत ई जाने ला उनकर पुछाई में जरिको कमी न भेल। एही नऽ केकरो कोई से मन मोटाव इया मनफरक के सुनगुन होए त तुरंत उनका फोरन पड़ जाए कि फलना घर अइसन बात हो रहल हे। बेस चाहे बेजाय सब तरह के लुतरी के लुंड़ी उहइने सोझ रावल जाए। उ मामा के नाम आझ तक दूसर का उन्हकर बालो बच्चा के मालुम न हल, बस फलनमा के माय, कदमिया तर के दादी छोड़ के आउ दोसर कोई। नाम न जनाएल उ तो धन हलन विरिछ बाबा जे उनका मरला पर नाम खोजाए ल त बतौलन कि उकर दू कट्ठा जमीन जे रेहन धरयल इन हल ओकर कागज देख के बतयधन --कपूरी कुअॄर।
खैर इ तो दोसर बात भेल , काम केबात ई है कि बिना उनकर पैरा पड़ले का मजाल कि कोई घर कुछ बिन हो जाए। हलाँ कि उनका आदर सनमान मे कनहूँ कमी न हल त इओ कभी कभी उन्हखा लगऽ हल कि केउ किहाधं बिन अॄगेआ बीजे के जानि
कुकुर सूअरबरोबर हे से जबलगि दू तीन बेर के बोलज्ञटा न आवे तबलगि अपने मे रमल रहथ।
अइसने तो लोग कहवे करॄ हथ कि जनानी के जेवर आइ मरद जीभ चटोरी के कमजोरी हे से ई बातकदमियाॄ तर के मामा के हलइन ,उघड़ी के जमाना मे गला के सिंगार हधंसुली जादे परचलित हल अनखा के पहिरले देखते लग जाहल कि हमरोरहित हल,ईबात सभे जनानी के साइत होवॄ होत इ। एकरे पर पदुम चा एगो खिस्सा कहलन कि एगो मेहरारू हल जे काम धाम में एक दमें कोढनी, ,अपने से एक लोटा पानिओ ले के न पी सकॄ हल सहजो काम मे दोसरा के अरहा दे हल। गहना जेव के सौख तो गजवे हल,हलूक ,कम ओजन वाला जेवर सोहयवे न करे से एकदिन ओकर मरदाना बडी दुलार से कहलक कि ,हम तोरा ला एगो अइसन हॄसुली बनावल चाहित ही जेकर हमेसे गला में ढुलकौले चल। ओकर खुसी का ठेकाना
पंदरह दिन बाद पाँच किलो के पत्र चाँदी में मढ़वाके घरे आएल बड़ी परेम से दे देलक। अब ऊ कनियाँ ऊ जेवर के परेम से ढूलकौले चले लगल। एतना मारी गहना के नाम पर पत्थर लटकचले छरफरो बन गेल मने खुसी में आलाय बहुरिआ काम धंधा करे लगलം
ईतो खास्सा के बात हे बाकि कदमिया तर के मामा सीए फारे बूटी काढ़े में जे कुछ जमा हल बटुआ में उ प इसा से एगो हँसुली गढ़ावे ला अपन बड़का बेटा के देलन कि एकरा से एगो हँसुली गढ़ा के तुरते ला दे। माय क कहना बेटा न करे उ बेटा कइसन?से लह लह दुपहरिआ मे पैदले बजार जाके सोनार के दोकान में हँसुली के गढाई बनाई के मोल जोल करके माय के देल पइसा दोकानदार के जिमा करके आ गेल। हिंआँ मामा बेचारी सभे आएल गेल के अषन खुसी के बात हॄसुली के अवाई के बारे में बता के मगन हल। बेटा जे आएल से छूछे हाथ।
हॄसुलिया लौलें? पुछलक
नऽ,कहलकउ पाॄच दिन लगत उ बनावे में,चाॄदी कटयतौ ,गलैतौ पीटतौ फिन फूल गढ़तउ तब दैत उ।
मामा के मुहे झाम हो गेल
अच्छा पाँचे दिन न।
पाँच दिन बीतल कि तगादा सुरू। बेटा के हुरपेट हुरपेट के बजार भेजलन ऊ दिन बजारे बंद दोकानों बंद ,अब का होवे? माय के का जबाब देल जाएत सोचित कुँढ़ित घरे आके सब हाल फरिआ के कहलक बेटा , मामा के मन तो छोट होइए गेल ऊपर से जे बटुआ के पइसा सरक गेल एकरो मलाल न मिंझाइत हे त का करल जाए, सबर करे के सिवाय चारा भी तो नऽ
रात भर तो कइसहूँ कूँढ़ कलप कलप के रात बीतल ,विहान होते बिलुक झोले फोले उठ रे ,चल रे आझ हम देखब इ कि कौन अइसन अरखा सोनार हे जेकरा हधंसुली बना के प इसा लेलो पर तीन दिया तेल जरित हइ ? पेर पार के बेटा के साथ लेके मामा चललन बज। जतरा नीमन हल से बजार अभी खुलिए रहल हल सोनारो अपन दोकान खोलते हल कि माय बेटा के देते घिघिआए ऋगल ,आदर से ब इठौलक अपं गलती के माफी मागित कहृक कि,अपने के आवे केकाम न हल ,हम घरे पहुँचा देती हल। ई सुनते मामा केएड़ी केलहर कपार पर चढ़ गेल,अन तेवर मे ज इया मिचाई के रस घोर खुब फटकारलन ,फिन दोकानदार के हाथे लाल लाल कागज मे लपेटल हँसुली लेके पहिले करेजा में साटलन फिन अँचरा में बान्ह के घरे दने सोझ भेलन ,गाॄव के बहरही पीपरतरके बरहम बाबा के आगू माय नेवा के घरे आ गेलन,
सकपकाएल बेटा बोललक कि तनि पहिल के देखतहींहल ,
मामा कहलन कि तू एकदमे बौध के बोधे हें �अइसहीं पहिनब इ, काजनी क इसश पानी आग से बनौलक हे त तनी धो धा कर लेंउ गंहथूप कर लेउ तब नॄ
मामा के नहान धोवन भेल तुसी पिंडा पर गन्ह धूप देखा के हँसुली धोवाजल, धूप के धुआँ में हंँसुली तपावल गेल जाके मामा धारन कयलन। अब तो उन्हकर खुसी के का कोई बरनन करत
गँव के अहाली महाली जान गेलन ,बिलुक देखवैया के भीड जुटे लगल,खूब परसंसा होए अउ देखवैअन के आवभगत इ में कहिओ न। जे मामा के हॄसुली देखे ओकर मुह से बड़ाई छोड़ तनिको उनैस विनैस बात न।
मामाभी पूश्रा गलगद गल।
एक बेर दुलरिया के आजी कोई काम से अऋथी ,एने ओने के ढ़ेर बतकही भेल ओकर बाद कहलथी कि मामा एगो बात कही थी अपने पुरनियाँ ही बुरा मत मानथी ई हसुली के गढ़ाई कढ़ाई एतना बेस हे कि केहू के नजर लग सकऽ हे ई से एकरा झुलवा केतरे नुका के तखथी त ठीक रहत हल। मन के सक सुभा के गांज मेएते दिया सलाई के तितकी जादे हल। दोसरे दिन हँसुलिया रहे तो गलवे मे लेकिन झुल्ला के तरे अब कोई डर के बात न रहल।
एक दिन मामा के बुझाएल कि काहेन एकरा कपड़ा मे लपेट के पेन्हल जाए झुलवा तर अनकुराह लगऽ हे से का कयलन कि एगो लाल गमछी निकाललन जेकरा से हॄसुलिया एतना बढिया से लपेटलन कि एगो डिजाइन बन गेल इ ,ई बात के चरचा गउँओ में होवे गलल।
अइसहीं केतनन बरस बीत गज
अबकी मामा बीमार पड़ गेलन ,एकदम से खटपरू होगेलन ,उनका लगे लगल कि अब न बचतन तब बेटा के बोला के कहलथी कि अगर जो हम मर गेली त ई हसुलिया हमरा साथे चितखवा पर चढ़ा दिहें,इसे हमर सरधा हे।
रामकृष्ण,गयाजी
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