बच्चों में अपने बचपन की
प्रतिमा दिखती है
चंचल कोमल जिद की
लघुतम महिमा दिखती है।
माँ के अंचल से न सुरक्षित
धरती का कोना
खाना पीना और सिकुड़
जैसे तैसे सोना
माँ के मन की बातों में ही
अणिमा दिखती है।
क्रंदन में ही भूख- प्यास की
गाथाएँ रचतीं
किलकारी भुस्कानों में
सारी दुनिया वसती
क्या जानें सुख दुख क्या
अपनी गरिमा दिखती है।
माँ के आँगन से बढ़कर
संसार भला क्या हो
नुक्का चोरी के आगे
अभिसार भला क्या हो
मुट्ठी मे जितना आ जाए
वरिमा दिखती है।
बचपन से घर-आँगन मधुवन
खुशियों की सरिता
लोरी ,गीत नाध मे रामायण
भगवद् गीता
माँ के पुलकित आनन में
हर सुषमा दिखती है।रामकृ्ष्ण
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