वेंकैया की यात्रा का सांस्कृतिक सन्देश

वेंकैया की यात्रा का सांस्कृतिक सन्देश

(डॉ. दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू की यूपी यात्रा सांस्कृतिक व वैचारिक रूप में महत्वपूर्ण रही। वह ट्रेन से अयोध्या व काशी पहुंचे थे। इन दोनों पौराणिक स्थलों का भव्यता के साथ विकास हो रहा है। निर्माण कार्य केवल धार्मिक क्षेत्र तक सीमित नहीं है। इससे भी आगे बढ़ते हुए विश्व स्तरीय पर्यटन सुविधाओं का विकास किया जा रहा है। हजारों करोड़ रुपये की विकास योजनाओं का क्रियान्वयन चल रहा है। अयोध्या में केवल श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य नहीं हो रहा है। बल्कि मेडिकल कॉलेज व अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी बन रहा है। कुछ वर्ष पहले तक अयोध्या के ऐसे विकास की कल्पना तक संभव नहीं थी। योगी आदित्यनाथ सरकार इसको चरितार्थ कर रही है। यहां पांच सौ वर्षों की उपेक्षा अब अतीत की बात हुई। ये बात अलग है सेक्युलर सियासत के दावेदारों को आज भी श्री राम जन्म भूमि से परहेज है लेकिन देश की राजनीति बदल चुकी है। इसमें छद्म पंथ निरपेक्षता के प्रति आग्रह कम हो रहा है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भूमि पूजन में सहभागी हुए थे। गत वर्ष अगस्त में देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद यहां दर्शन करने आये थे। आज देश के उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने श्री राम लला के दर्शन किये। श्री रामजन्म भूमि के दर्शन हेतु पहुंचने वाले रामनाथ कोविंद पहले राष्ट्रपति व वेंकैया नायडू देश के पहले उप राष्ट्रपति है।
वैंकेया नायडू व उनकी पत्नी ऊषा नायडू यहां चार घण्टे तक रहे। उन्होंने रामलला व हनुमानगढ़ी में दर्शन पूजन के साथ श्रीराम मंदिर के निर्माण कार्य का प्रजेंटेशन देखा। उप राष्ट्रपति ने मंदिर निर्माण कार्य को भी देखा। वहां कार्य कर रहे श्रमिकों व अन्य लोगों से भी उन्होंने संवाद किया। अयोध्या व काशी का आध्यात्मिक महत्व सर्वविदित है। इन तीर्थों की यात्रा आस्था के अनुरूप होती है। किंतु पिछले कुछ समय में इन दोनों स्थलों पर ऐतिहासिक कार्य हुए है। अयोध्या में पांच सौ वर्षों के बाद भव्य श्री राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। काशी में ढाई सौ वर्षों के बाद भव्य धाम का निर्माण किया गया। इसके बाद यहां पहुंचने वाले तीर्थ यात्रियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। कुछ ही दिनों के अंतराल पर यहां नेपाल के प्रधानमंत्री व भारत के उप राष्ट्रपति सहित लाखों की संख्या में दर्शनार्थी पहुंचे है। इन सभी की प्रतिक्रिया लगभग एक जैसी थी। लगभग ढ़ाई सौ साल बाद नरेन्द्र मोदी व योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से यह स्थल भव्य दिव्य रूप में प्रतिष्ठित हुआ है।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू दशाश्वमेध घाट पर काशी की विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती में भी अपनी पत्नी ऊषा के साथ सहभागी हुए। इस अवसर पर राज्यपाल आनंदी बेन पटेल व उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक भी उपस्थित थे। सभी लोगों ने विधि विधान से पूजा अर्चना कर मां गंगा का दुग्धाभिषेक भी किया। उपराष्ट्रपति गंगा सेवा निधि की विशेष महाआरती,लयबद्ध गायन के बीच परम्परागत वेशभूषा में अर्चकों को देखते रहे। आरती के समय शंख और डमरूओं की ध्वनि भी गूंज रही थी। उपराष्ट्रपति व अन्य अतिथियों का काशी की परम्परा के अनुरूप हर हर महादेव के उद्घोष से स्वागत किया गया। उपराष्ट्रपति नायडू अपने दो दिवसीय वाराणसी दौरे पर शाम को अयोध्या से विशेष ट्रेन के द्वारा वाराणसी के बनारस रेलवे स्टेशन पर पहुंचे थे। यहां संस्कृति विभाग के कलाकारों ने भी भरतनाट्यम, अयोध्या रामरथ फरवारी नृत्य,गाजीपुर का धोबिया नृत्य,बुंदेलखंड का राई लोकनृत्य प्रस्तुत कर उपराष्ट्रपति का पारम्परिक ढंग से स्वागत किया गया। वेंकैया नायडू ने पत्नी एम उषा नायडू के साथ काशीपुराधिपति के भी दर्शन किये। ज्योतिर्लिंग का विधि विधान ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उपराष्ट्रपति ने षोडशोपचार विधि से अभिषेक किया। उन्होंने काशी विश्वनाथ धाम के नव्य और भव्य विस्तारित स्वरूप का अवलोकन भी किया।
उन्होंने काशी के कोतवाल बाबा कालभैरव के दरबार में भी दर्शन पूजन किया। दूसरे दिन पड़ाव स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति उपवन में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तिरसठ फुट ऊंची प्रतिमा पर श्रद्धांजलि दी। उपवन की दीवारों और भित्ति पर अंकित चित्रों के माध्यम से पंडित जी के जीवन दर्शन को जाना।
उपवन परिसर में गोल्फ कार्ट से भ्रमण कर उप राष्ट्रपति ने दीनदयाल उपाध्याय के जीवन चरित्र पर बनी थ्रीडी फिल्म का अवलोकन किया। सत्रह मिनट की लघु फिल्म व मॉडल शो केश का अवलोकन किया। उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के दर्शन करने के बाद,भगवान शिव की नगरी काशी पहुंचना सुखद रहा। मां गंगा के पश्चिमी तट पर बसी यह नगरी विश्व के सबसे प्राचीन जीवित शहरों में से एक है। श्रद्धालुओं के मन में काशी के प्रति विशेष आस्था रहती है। यह स्वयं ईश्वर की भूमि है। यह संस्कृति और संस्कारों का स्थान है। काशी भक्ति और मुक्ति की भूमि है। बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी के दर्शन करना सौभाग्य का विषय है। दशाश्वमेध घाट पर होने वाली विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती अलौकिक लगती है। यहां अविस्मरणीय दैवीय अनुभूति होती है। जिसको शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था कि पुण्य सलिला गंगा उस भावनात्मक सूत्र का जीवंत प्रतीक है जो भारत की एकता को बनाता है। हिमालय से निकली,देश के एक बड़े भाग से होकर गुजरती हुई,यह बंगाल के सागर में जा कर समाहित हो जाती है। इस विशाल नदी के नीले पानी की लहरों में भारत की सांस्कृतिक एकता का रूप निखर आता है। नदियां मानव सभ्यता की जीवनदायिनी रही हैं। भगवान शिव का विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग, महादेव के पवित्रतम पीठों में से एक है। काशी विश्वनाथ मंदिर सिर्फ अपने आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व के लिए ही विख्यात नहीं है बल्कि यह मंदिर भारतीय संस्कृति की अंतर्निहित शक्ति और उसकी जिजीविषा को भी प्रतिबिंबित करता है। काशी विश्वनाथ मंदिर हमारी सनातन परंपरा, हमारी आस्थाओं और आततियों के विरुद्ध हमारे संघर्ष का गौरवशाली प्रतीक है। कॉरिडोर निर्माण से काशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा के तट तक पहुंचने का रास्ता सीधा और सुगम हो गया है। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत श्रद्धालु पर्यटकों के लिए अनेक सुविधाएं बनाई गई हैं। इसमें पर्यटक सुविधा केंद्र, वैदिक केंद्र, मुमुक्षु भवन, भोगशाला, नगर संग्रहालय, फूड कोर्ट आदि शामिल हैं। मंदिर का क्षेत्रफल जो पहले मात्र तीन हजार वर्ग फुट था, वह अब बढ़ कर लगभग पांच लाख वर्ग फुट हो गया है। अन्नपूर्णा मंदिर का भी अपना समृद्ध इतिहास है। सौ वर्ष पहले चोरी हुई प्रतिमा को मूल मंदिर में स्थापित कर दिया गया है। भगवान काल भैरव, जो भगवान शिव के ही रौद्र रूप हैं। वेंकैया नायडू ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत दीनदयाल उपाध्याय के विचारों से प्रेरित होकर की थी। काशी यात्रा के दौरान वह पड़ाव स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति स्थल पर भी गए। यहां उनकी तिरसठ फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है। स्मारक में थ्री डी प्रदर्शन की सुविधा भी है। जिसके माध्यम से दीनदयाल जी की जीवनयात्रा को आभासी रूप से प्रस्तुत किया जाता है। वेंकैया नायडू ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय भारतीय संस्कृति और सभ्यता में रचे बसे थे। जिसके आधार पर ही उन्होंने अपनी एकात्म मानवतावाद की अवधारणा विकसित की। इसमें उन्होंने मनुष्य, समाज और प्रकृति की अंतर्निहित एकता प्रतिपादित की है। यह अवधारणा भारत की ज्ञान परंपरा से ही जुड़ी हुई है। समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान के लिए अंत्योदय का विचार, दीनदयाल जी के दर्शन के केंद्र में रहा है। वर्तमान सरकार उनकी प्रेरणा से वंचित वर्ग को विकास की मुख्य धारा में लाने का प्रयास कर रही है।
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