दल-बदलुओं का साल 2021

दल-बदलुओं  का साल 2021

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
लगभग बीतने जा रहे वर्ष 2021 पर राजनीतिक दृष्टि डालें तो यह दल-बदलुओं का साल रहा है। राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए 1985 में देश में दल-बदल कानून लागू किया था। दरअसल, इस दल-बदल के चलते न सिर्फ राजनीतिक अस्थिरता पैदा होती है बल्कि उपचुनाव और मध्यावधि चुनाव तक कराने पड़ते हैं। सरकारी पैसे का अनावश्यक व्यय होता है। माना जा रहा था कि दल-बदल कानून लागू होने से आया राम और गया राम की कहानी रुक जाएगी। इस आया राम-गया राम की कहानी को भी हम बताएंगे लेकिन अभी कुछ खास दल-बदलुओं के कारनामे देखते हैं जिनके चलते 2021 में कितने ही उपचुनाव कराए गये। मध्य प्रदेश की तो सरकार ही बदल गयी। राजस्थान में भी ऐसी ही नौबत आने वाली थी लेकिन अशोक गहलोत ने किसी तरह मामला संभाल लिया। पश्चिम बंगाल में तो कई नेता विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी छोड़कर गये थे और चुनाव के बाद फिर ममता की शरण में आ गये।

देश में कई राज्यों में जिस तरह से विधायकों ने पाला बदलकर सरकारें बनवाईं या गिरवाईं, वो भारतीय राजनीति में नया तो नहीं है लेकिन अब बढ़ता जरूर जा रहा है। गोवा में इस पालाबदल ने रिकॉर्ड ही तोड़ दिया। वहां पिछले करीब 05 सालों में 50 फीसदी से ज्यादा विधायक पालाबदल कर आयाराम-गयाराम की राजनीति को चरितार्थ कर रहे हैं। गोवा में अगर सरकार बनते समय बड़े पैमाने पर ये खेल हुआ तो वो चुनावों के ठीक पहले तक भी जारी है। हालांकि इसका सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस को हुआ है। वर्ष 2017 में जब गोवा में चुनाव नतीजे आए तो कांग्रेस ने 17 सीटें जीतीं और बीजेपी ने 13 सीटें अन्य दलों में एनसीपी ने 01 और गोवा फारवर्ड पार्टी ने 03, निर्दलियों ने 03 सीटें जीतीं। बीजेपी का चुनाव पूर्व गठबंधन गोवा फारवर्ड पार्टी के साथ था। इस लिहाज से बीजेपी के पास 16 सीटें थीं लेकिन बहुमत के लिए उसको अब भी 04 सीटों की जरूरत थी। एकझटके में कांग्रेस के 10 विधायक टूटकर बीजेपी में चले गए और उनकी सरकार बन गई। अब बीजेपी के विधायक टूटकर तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में जा रहे हैं तो कांग्रेस के विधायकों का भी टूटकर दूसरी पार्टी में जाना जारी है। ये ऐसी राजनीति है, जिससे वह दौर याद आ रहा है, जिसके बाद भारतीय सियासत में आयाराम-गयाराम के नाम मुहावरा ही गढ़ दिया गया। हालांकि ये तो पक्की बात है कि जिस तरह की राजनीति अब देश में शुरू हो चुकी है, उसमें इन 05 राज्यों में पालाबदल का खेल तब और बढ़ा मिलेगा, जब यहां चुनाव के बाद नतीजे सामने आएंगे। आयाराम-गयाराम का किस्सा भी जान लें, जो हमेशा के लिए भारतीय राजनीति में एक पर्याय बन चुका है। विधायकों के जोड़तोड़ के साथ सरकारें गिराने और बनाने का सिलसिला 40 साल पहले शुरू हुआ था और ये मुहावरा प्रचलन में आया। राजनीति के जानकार या पिछली पीढ़ी के लोग इन किस्सों से वाकिफ हैं। बात करीब 40 साल पहले की है, जब 1979 में हरियाणा में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल था। जनता पार्टी से जुड़े चैधरी देवीलाल की हरियाणा में सरकार थी, लेकिन राजनीतिक संकट था और ऐसे में राज्य सरकार में मंत्री रहे भजनलाल ने देवीलाल की आंखों से सुरमा चुराते हुए न केवल मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली थी, बल्कि पार्टियों और विधायकों की ऐसी उठापटक की थी, जो इतिहास में दर्ज हो गई।

चैधरी देवीलाल को अपनी सरकार संकट में नजर आ रही थी, इसलिए उन्होंने अपने 40 विधायकों को नजरबंद कर लिया था और घर को किला बना दिया था। विधायकों को बाहर जाने की इजाजत नहीं थी और बंदूक की नोक पर बंद विधायकों से उनके परिवार को मिलने के लिए भी खास इजाजत लेना होती थी। ऐसे में भजनलाल चूंकि मंत्री थे, तो उनका वहां आना जाना रोका नहीं जा सका। भजनलाल ने कैद विधायकों के परिवारों से खुसर फुसर कर अपने प्रपोजल विधायकों तक पहुंचाए। दो खेमे बन चुके थे, भजनलाल और देवीलाल। बताया जाता है कि उस किले में कैद विधायक रात भर जागते और टहलते रहते थे, यही सोचकर कि किस खेमे में जाएं। आखिर भजनलाल के प्रस्ताव ज्यादा लालच देने वाले थे और 40 विधायक कुछ ही समय में उनके साथ हो गए। भजनलाल ने देवीलाल की सरकार गिरा दी और खुद सीएम बन बैठे। भजनलाल के बारे में कहा जाता है कि उनके पास खास कला थी कि वो जल्दी भांप जाते थे कि किसी की जरूरत क्या है। देवीलाल की लोकप्रियता के आगे भजनलाल की यही कला बीस साबित हुई थी कि वो लोगों को लालच देना खूब जानते थे। किसी को सरकारी नौकरी, तो किसी को प्लॉट तो किसी को कैश, सबकी जरूरत के मुताबिक भजनलाल के पास हर रास्ता था। राजनीति में आने से पहले वो घी बेचने के धंधे से जुड़े थे और उनकी कुशलता साबित होती है कि वो सिर्फ 8 साल के राजनीतिक करियर में सीएम बन गए थे। ‘बड़े लोगों’ को घूस देने के भजनलाल के तरीके अनोखे थे। कभी उन्होंने मोरारजी देसाई के पास घी के पीपे भिजवाए तो कभी वरुण गांधी के जन्म पर संजय गांधी के पास सोने का पत्तर चढ़ा ऊंट भिजवाया। कांग्रेस छोड़कर भजनलाल जनता पार्टी से जुड़े थे और इमरजेंसी के बाद जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी, तो वो देवीलाल सरकार का तख्तापलट कर खुद मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए थे। इसके बाद 1980 में केंद्र में तख्तापलट हुआ और फिर इंदिरा गांधी सरकार बनी। भजनलाल ने फौरन समझ लिया कि जनता पार्टी का जहाज डूब गया और वो फौरन अपने 40 विधायकों को लेकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। देश ने पहली बार इतना बड़ा दलबदल देखा था। इस दलबदल के बाद भी हरियाणा में राजनीतिक अस्थिरता जारी रही और 90 के दशक के अंत तक यही चलता रहा कि कभी देवीलाल की सरकार बनती, कभी भजनलाल की। दूसरे नेताओं और मीडिया में बाद में दोनों लालों के बीच पॉलिटिकल फिक्सिंग भी करार दिया गया।

भजनलाल ने जब पहली बार हरियाणा में तख्तापलट किया था, उस दौरान एक विधायक थे गया लाल, जो भजनलाल खेमे के करीबी माने जाते रहे। तब कई विधायकों, जजों और सरकारी अधिकारियों को दिल्ली, चंडीगढ़ और पंचकूला में प्लॉट बांटे जाने के आरोप लग रहे थे। गया लाल को भी दो प्लॉट दिए जाने के आरोप थे। ये वही गया लाल थे, जिन्होंने राजनीतिक उठापटक के दौरान 15 दिनों के भीतर तीन बार पार्टी बदल ली थी। इस विधायक के दलबदल के चलते ये कहावत राजनीतिक गलियारों में गूंजी और भजनलाल के कारनामे चर्चित होने लगे थे। सत्ता के समीकरण साधने वाले भजनलाल के बारे में एक सरकारी अधिकारी ने उस दौरान कहा था कि भजनलाल भगवान को ठग सकने का हुनर रखते थे।

बहरहाल, ये कहानी सियासत में कुर्सी के लिए हर संभव रास्ता खोज निकालने, हर कानून में लूपहोल खोज लेने और हर नैतिकता को दरकिनार कर देने की कहानी है, जो कर्नाटक में देखी गयी, मध्य प्रदेश में देखी गयी और जब तक कोई सख्त कानून नहीं बनेगा, आया राम-गया राम की कहानी चलती रहेगी। (हिफी)
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