हिन्दू और हिन्दुत्व पर मतभेद

हिन्दू और हिन्दुत्व पर मतभेद

(मनीषा स्वामी कपूर-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी हिन्दुओं को मानना जरूरी है। ये तो धर्म से ज्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है और न ही कोई पोप। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों मंे आत्मा होती है। यही भाव हिन्दुत्व है।

इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि हिन्दू और हिन्दुत्व पर मतभेद किसी गैर हिन्दू ने नहीं जताए बल्कि हिन्दुओं के बीच ही उभरे हैं। इसके मूल में राजनीति है। हिन्दू धर्म मूलरूप से भारत का सनातन धर्म है और उसके अनुयायी हिन्दू हैं। इस सनातन धर्म का विस्तार पूर्व मंे व्यापक रहा है। इसीलिए भारत से इतर कई देशों मंे सूर्य उपासना की जाती है। इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देश मंे रामलीलाओं का मंचन होता है। इसलिए हिन्दुत्व को हिन्दू से अलग नहीं किया जा सकता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रख्यात नेता भैयाजी जोशी ने गत 21 दिसम्बर को यही समझाने का प्रयास किया। यह विवाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के एक बयान से पैदा हुआ जब उन्हांेने हिन्दू और हिन्दुत्व मंे फर्क बताया। उन्होंने स्वयं को हिन्दू माना और कहा कि हिन्दू का सही अर्थ यह है जो केवल सत्य के मार्ग पर चलता है और अपने भय को कभी भी ंिहंसा, घृणा और क्रोध मंे परिवर्तित नहीं करता। राहुल गांधी की इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की हिंदुत्ववादी टिप्पणी की आलोचना करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रख्यात नेता सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि ‘हिंदू’ और ‘हिंदुत्व’ एक ही हैं। उन्होंने कहा कि दोनों को अलग-अलग बताकर एक गलत धारणा पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है। एक उदाहरण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति हिंदू है, तो हिंदुत्व उसके चरित्र को इंगित करता है। इसलिए हिंदू और हिंदुत्व अलग-अलग चीजें नहीं हैं। जोशी ने कहा, कुछ लोग मामले को लेकर अफवाह फैलाने में लगे हैं। जो लोग विवाद फैलाने में लगे हैं, वे अफवाहों के आधार पर इसकी आधारशिला रख रहे हैं। इससे पहले 18 दिसंबर को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हिंदू और हिंदुत्ववादी के बीच अंतर के बारे में बात की थी। उन्होंने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि एक हिंदुत्ववादी गंगा में अकेले स्नान करता है, जबकि एक हिंदू वह होता है जो करोड़ों लोगों को साथ लेकर चलता है। अपने पूर्व लोकसभा क्षेत्र अमेठी के जगदीशपुर में एक रैली को संबोधित करते हुए, कांग्रेस सांसद ने कहा कि एक हिंदू का सही अर्थ वह है जो केवल सत्य के मार्ग पर चलता है और अपने भय को कभी भी हिंसा, घृणा और क्रोध में परिवर्तित नहीं करता है।

सच्चाई यह है कि हिन्दू धर्म का इतिहास सबसे प्राचीन है। इस धर्म को वैदिक काल से भी पूर्व का माना जाता है, क्योंकि वैदिक काल और वेदों की रचना का काल अलग-अलग माना जाता है। यहां शताब्दियों से मौखिक (तु वेदस्य मुखं) परंपरा चलती रही, जिसके द्वारा इसका इतिहास व ग्रन्थ आगे बढ़ते रहे। उसके बाद इसे लिपिबद्ध (तु वेदस्य हस्तौ) करने का काल भी बहुत लंबा रहा है। हिन्दू धर्म के सर्वपूज्य ग्रन्थ हैं वेद। वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल का आरंभ 2000 ई.पू. से माना है। यानि यह धीरे-धीरे रचे गए और अंततः पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया- ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद जिसे वेदत्रयी कहा जाता था। मान्यता अनुसार वेद का विभाजन राम के जन्म के पूर्व पुरुरवा राजर्षि के समय में हुआ था। बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि अथर्वा द्वारा किया गया। वहीं एक अन्य मान्यता अनुसार कृष्ण के समय में वेद व्यास कृष्णद्वैपायन ऋषि ने वेदों का विभाग कर उन्हें लिपिबद्ध किया था। मान्यतानुसार हर द्वापर युग में कोई न कोई मुनि व्यास बन वेदों को 4 भागों में बाटते हैं। ऋग्वेद का भूगोलीय क्षितिज जिसमें नदियों के नाम दिये हैं, ये हिन्दूकुश और पंजाब क्षेत्र से ऊपरी गांगेय क्षेत्र तक फैला हुआ था। हिंदू धर्म की उत्पत्ति पूर्व आर्यों की अवधारणा में है जो 4500 ई.पू. मध्य एशिया से हिमालय तक फैले थे, इसमें भी डॉ मुइर जैसे वैज्ञानिकों में मतभेद हैं। माना जाता है कि आर्यों की ही एक शाखा ने सनातन धर्म की स्थापना भी की। इसके बाद क्रमशः यहूदी धर्म 2000 ई.पू., बौद्ध धर्म और जैन धर्म 500 ई.पू., ईसाई धर्म सिर्फ 2000 वर्ष पूर्व और इस्लाम धर्म आज से 1400 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ।

धार्मिक साहित्य अनुसार हिंदू धर्म की कुछ और भी धारणाएँ हैं। रामायण, महाभारत और पुराणों में सूर्य और चंद्रवंशी राजाओं की वंश परम्परा का उल्लेख उपलब्ध है। इसके अलावा भी अनेक वंशों की उत्पति और परम्परा का वर्णन आता है। उक्त सभी को इतिहास सम्मत क्रमबद्ध लिखना बहुत ही कठिन कार्य है, क्योंकि पुराणों में उक्त इतिहास को अलग-अलग तरह से व्यक्त किया गया है जिसके कारण इसके सूत्रों में बिखराव और भ्रम निर्मित जान पड़ता है, फिर भी धर्म के ज्ञाताओं के लिए यह भ्रम नहीं है, वो इसे कल्पभेद से सत्य मानते हैं। हिन्दू शास्त्र ग्रंथ याद करके रखे गए थे। यही कारण रहा कि अनेक आक्रमण जैसे नालंदा आदि के प्रकोप से भी अधिकतर बचे रहे।

हिंदू धर्म के इतिहास ग्रंथ पढ़ें तो ऋषि-मुनियों की परम्परा के पूर्व मनुओं की परम्परा का उल्लेख मिलता है जिन्हें जैन धर्म में कुलकर कहा गया है। ऐसे क्रमशः 14 मनु माने गए हैं जिन्होंने समाज को सभ्य और तकनीकी सम्पन्न बनाने के लिए अथक प्रयास किए। धरती के प्रथम मानव का नाम स्वयंभू मनु था और प्रथम स्त्री सतरुपा थी। महाभारत में आठ मनुओं का उल्लेख है। इस वक्त धरती पर आठवें मनु वैवस्वत की ही संतानें हैं। आठवें मनु वैवस्वत के काल में ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था। हिन्दू धर्म की कालमापनी सबसे बड़ी है। पुराणों में हिन्दू इतिहास का आरंभ सृष्टि उत्पत्ति से ही माना जाता है। हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी हिन्दुओं को मानना जरूरी है। ये तो धर्म से ज्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है और न ही कोई पोप। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों मंे आत्मा होती है। यही भाव हिन्दुत्व है।

हिन्दुत्व के प्रमुख तत्त्व इस प्रकार हैं गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात- गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो-वही हिन्दू है। मेरुतन्त्र 33 प्रकरण के अनुसार हीनं दूषयति स हिन्दु अर्थात जो हीन (हीनता या नीचता) को दूषित समझता है (उसका त्याग करता है) वह हिन्दू है। लोकमान्य तिलक के अनुसार- असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात- सिन्धु नदी के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु (हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू (अथवा मातृ भूमि) तथा पुण्यभू (पवित्र भूमि) है, (और उसका धर्म हिन्दुत्व है) वह हिन्दू कहलाता है। हिन्दू शब्द मूलतः फारसी है इसका अर्थ उन भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थों, वेदों, पुराणों में वर्णित भारतवर्ष की सीमा के मूल मंे पैदा हुए एवं पैदायशी निवासी हैं। (हिफी)
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