अहंकार
स्वर्ण नगरी का राजा था रोक ना सका मन को
बहुत बड़ा अहंकार हुआ लंकापति दशानन को
प्रकांड पंडित शास्त्र ज्ञाता वो शिवभक्त महान था
आसुरी शक्तियों का मद वैभव का अभिमान था
तेज बल बुद्धि दानवी बैर राम से जब बांध लिया
मायावी ने माया रचकर हर ली रामजी की सिया
अनाचार जब-जब बढ़ता पाप धरा पर बढ़ जाता
अहंकार का अंत करने ईश्वर खुद धरती पर आता
अभिमानी सुनहरे पल को अंधा हो खो देता है
एक आखरी अवसर भी भगवान सबको देता है
पांव जमाया रामदूत ने लंका का बल खेंच लिया
रामचंद्र ने अंगद को जब दूत बनाकर भेज दिया
हर बुराई का अंत होता है अहंकार चकनाचूर सारा
रामचंद्र के हाथों अभिमानी रावण गया बेचारा मारा
रमाकांत सोनी नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
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