मद, मोह और अहंकार से परे व्यक्ति ही प्राप्त कर सकता है मुक्ति-डॉक्टर प्रभाकर त्रिपाठी.
शहर के सत्येंद्र नगर स्थित गायत्री भवन में मुरलीधर पांडेय एवं देवेंद्र पांडेय के संयोजन में गायत्री के परम उपासक स्वर्गीय सुरेश पांडेय की तीसरी पुण्यतिथि पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता सच्चिदानंद सिन्हा महाविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉक्टर सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह तथा संचालन डॉ रामाधार सिंह ने किया।
बनारस से पधारे पंडित प्रभाकर त्रिपाठी ने आत्मा की अमरता पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आत्मा अजर-अमर और अविनाशी है, परंतु हमारा शरीर क्षणभंगुर है। यह बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था से होते हुए अंततः विनाश को प्राप्त करता है। मनुष्य के ऊपर अहंकार, काम, क्रोध, मद, मत्सर का आवरण चढ़ा हुआ है। इसी आवरण के कारण उसका असली रूप प्रकट नहीं हो पाता। उन्होंने बतलाया कि स्वर्गीय पांडेय की मृत्यु एक साहित्यिक कार्यक्रम के दौरान हुई है जो अपनी मृत्यु के कुछ ही क्षण पूर्व माता गायत्री, भगवान राम एवं भगवान श्रीकृष्ण के गुणों की चर्चा कर रहे थे। मैं तो यही समझता हूं कि उन्हें सायुज्य मुक्ति प्राप्त हुई है।
डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि मनुष्य ने अपने को सीमित बंधनों में बांध लिया है। जाति, देश, संप्रदाय के बंधनों में घिरा मनुष्य पूर्ण ब्रह्म को नहीं प्राप्त कर सकता। इन्हीं विचारों के कारण ही उसे अनेक प्रकार के कष्ट उठाने पड़ते हैं। मेरी समझ से स्वर्गीय पांडेय ने अपने आप को उपरोक्त बंधनों से मुक्त कर लिया था।
डॉक्टर शिवपूजन सिंह के शब्दों में- यह एक स्वयंसिद्ध सत्य है कि मृत्यु के अनंतर शरीर की सारी तन्मात्राएं समाप्त हो जाती हैं। जो प्राणी अपने शरीर से कुछ समय पूर्व तक चलता-फिरता, खाता-पीता, मल-मूत्र उत्सर्जन करता, सोचता, बोलता, दया और प्रेम आदि सभी क्रियाएं करता दिखता है वहीं प्राणवायु के निकलते ही वह शरीर मिट्टी के एक पुतले के अलावा कुछ नहीं रह जाता।उक्त बैठक में भैरव नाथ पाठक, चंद्रशेखर पांडेय, पुरुषोत्तम पाठक, धनंजय जयपुरी, शिव नारायण सिंह,अमरंजय पांडेय, अनिल कुमार सिंह, सुरेश विद्यार्थी इत्यादि मौजूद थे।
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