बहुआर पेड़ का भूत
जय प्रकाश कुंवर यह कहानी सच्ची घटनाओं पर आधारित है! हमारा गाँव मुख्य मध्य गाँव के अलावा और चार टोलों में विभक्त है! गाँव के उत्तर- पुरब टोले में कोईरी, लोहार आदि बिरादरी के लोगों का घर है; जहाँ बचपन से ही कामवश अक्सर हमलोगों का आना जाना लगा रहता था! मुख्य गाँव और उस टोले के मध्य सड़क के किनारे दायें तरफ एक विशाल बहुआर का पेड़ हुआ करता था! बहुआर के पेड़ से 20-25 गज की दूरी पर एक आम बागान और श्मशान हुआ करता था! उस बहुआर पेड़ के आस पास खेती योग्य जमीन थी जो खुब उपजाऊ थी! गाँव के उन मृत बच्चों और बड़ों के लाशों को उस श्मशान भूमि में जलाया अथवा गाड़ दिया जाता था, जिनकी अकाल मृत्यु होती थी और जिन्हें शोकातुर लोग सुदूर गंगा किनारे तक नहीं ले जा पाते थे!
उन दिनों हम स्कूल के छात्र हुआ करते थे! अक्सर गाँव के लोग कहा करते थे कि उस बहुआर के पेड़ पर भूत- प्रेतों का निवास है और उसे भूतहा पेड़ कहते थे! गाँव और घर के लोग संध्या और रात्रि के समय उधर अकेला जाने से हमलोगों को बर्जित करते थे! उस पेड़ के आस पास जिन लोगों की खेती होती थी, वे भी दिनों दिन ही खेती का काम निपटा कर चले आते थे! रात के समय उधर का रास्ता लगभग बंद हो जाया करता था!
रात के समय उधर से अजीब अजीब डरावनी आवाजें आती सुनाई पड़ती थी! कभी कभी तो दिन के समय भी बहुआर के पेड़ की डालियाँ और पत्ते इतना तेज झकझोरें से हिलते थे, जिससे लगता वह पेड़ ही जड़ से उखड़ जायेगा! हालांकि उस समय वातावरण में कोई तेज हवा अथवा आंधी- तूफान का नामों निशान भी नहीं होता था! कुछ देर के लिए अगर यह भी माना जाय कि कोई मनुष्य उसे झकझोर रहा है तो वह पेड़ इतना विशाल था कि 10-20 आदमी भी मिलकर उसे रत्ती भर भी हिला नही सकते थे! उस समय जब वह पेड़ हिलता था तब पास के आम बागान के पेड़ों का एक पत्ता भी हिलते हुए नहीं दिखाई पड़ता था! बहुतों समय तो हमलोगों ने ख़ुद उस पेड़ की डालियों-पत्तों को झकझोर मारकर हिलते हुए देखा था, जब हवा का नामों निशान भी वातावरण में नहीं था! हालांकि एक दो मामूली घटनाओं को छोड़कर कोई बड़ी घटना वहाँ नहीं देखी सुनी गई थी! दो चार बार कुछ साइकिल सवारों को उस पेड़ के सामने रास्ते पर पटखनी खाते हुए देखा सुना गया था! इसके अलावा शाम के वख्त एक किसान को, जिसकी खेती उस पेड़ के पास ही थी, अनायास पटखनी खाकर अपना हाथ पैर तुड़वाते सुना गया था! गाँव के लोगों का ऐसा मानना था कि उस बहुआर के पेड़ पर पास के श्मशान के भूत- प्रेतों का निवास है! परन्तु आज तक उनके चलते गाँव के किसी को भी जान नहीं गवाना पड़ा है!
अब वक्त के साथ वह पेड़ गिरकर खत्म हो चुका है! अब वहाँ खेती होती है! लेकिन वह पेड़ एक प्रश्न चिन्ह अपने पीछे छोड़ गया है कि अगर हम भूत- प्रेत को न मानें, तो आखिर वह कौन सी शक्ति थी जो पेड़ को उस तरह झकझोरती थी! और वह अजीब अजीब आवाजों का श्रोत क्या और कहाँ था! गाँव देहात के लोग कुत्ते, सियार, घोपड़ास निलगाय, उल्लू आदि पशु पक्षियों के आवाज अच्छी तरह पहचानते हैं और इनसे भिन्न वो आवाजें किसकी रही होगी! उस समय गाँव देहात में किसी और जीव जन्तु का आना सुना नहीं जाता था! भयवश गाँव के किसी आदमी का वहाँ जाना और निरूदेश्य उस तरह का भयानक आवाज निकालना असंभव था! इन सब बातों से तो यही लगता है कि भूत-प्रेत योनि का भी अपना अस्तित्व होता है और कहीं न कहीं उनका निवास स्थान भी रहता है, जब तक उस योनि से अवधि पूरी होने के बाद दूसरी योनि में नहीं चले जाते हैं! हमारे धर्म शास्त्र भी इस भूत-प्रेत योनि को मानते हैं! आज के वैज्ञानिक युग में इसे नकारा जा रहा है, परंतु यह भी सत्य है कि इस तरह की घटनाओं का कभी समुचित अनुसंधान किसी स्तर पर कभी भी नहीं हुआ है, ताकि गहराई तक जाकर सत्य को उजागर किया जा सके!
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